Rahul Singh Shekhawat
शायद ही कभी ऐसा हुआ होगा जबकि कोई भारत का लाल सरहद पर शहीद हुआ हो और उसकी विदाई में सड़कों पर जनसैलाब ना उमड़ा हो। कम से कम मुझे अपने चैतन्यकाल में तो याद नहीं आता कि कभी ऐसा हुआ। अभी सेना के 5 जवान जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए। उनमें उत्तराखंड एवं हिमाचल के दो-दो और एक राजस्थान के मूल निवासी थे। शहीदों का पार्थिव शरीर अपनी जन्मभूमि पहुंचने पर सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार तो हो गया। लेकिन हालात के चलते वो जुनूनी भीड़ नदारद रही हर रणबाकुरें की शहादत के बाद उमड़ती आई है।
दरअसल, कोरोना की वजह से देशभर में 21 दिन का लॉकडाउन है और कई राज्य में तो कर्फ्यू भी है। फौज की गाड़ियों में तिरंगे से लिपटे शहीदों के ताबूत अपने-अपने शहरों से निकलते गए। लेकिन सुनसान सड़कों पर कोई उदघोष करने वाला नहीं दिखा। रास्ता पूरा नप गया लेकिन ‘जब तक सूरज चांद रहेगा… तेरा नाम रहेगा’ कालजयी नारे की गूंज सुनाई नहीं दी। ये कमबख्त कोरोना वायरस के खौफ की वजह से हुआ। बेशक फौजी साथियों ने बिगुल बजाया और सैन्य सम्मान की हर रस्म पूरी हुई।
मुझे पता नहीं कि इसे उन रणबांकुरों की बदकिस्मती कहूं या नहीं लेकिन ये उस सम्मान से महरूम रह गए, जिसका हर शहीद अपनी अंतिम यात्रा में बंद आखों में अहसास किया। हां, अगर उत्तराखंड की बात करूं तो मुख्यमंत्री राज्य दोनों शहीदों को सलामी देने पहुंचे। लेकिन शहादत के बाद उसकी चिता पर मेला भी ना लगे तो भला उसकी जिंदगी के बलिदान के क्या मायने? अरे यही तो वो मौका होता है जब लोग याद करते हैं कि कैसे वो फ़ौज की वर्दी में पिट्ठू लटकाकर तनकर अपने गांव पहुंचता था। फिर छुट्टी में वो अपनी जाबांजी के किस्से सुनाया करता था।
वैसे कोरोना की इस कदर अजब गजब माया है कि देश में वक्त से पहले दीवाली मनवा दी और मौत के खौफ के मंजर में भी सड़कों पर घन्टे और थालियां बजवा दीं। सुना था कि मुसीबत में लोग साथ हो जाते हैं, लेकिन इस कमबख्त ने हिंदू-मुस्लिम की लकीरें भी खींच डाली। अरे कोरोना ये तो बता दो कि इन 5 शहीदों से क्या दुश्मनी थी जो शहादत की गूंज ही दफ्न कर डाली। कहां तो हर शहादत की इबारत अखबारों पर कब्जा कर लेती थी। और टेलीविजन से देश और दुनिया में दिन भर कीर्ति गूंजती थी। लेकिन आज शहादत पन्नों में अपना स्थान और टीवी में कुछ मिनट तलाशती नजर आई है।
सच में कोरोना तुम बहुत कारसाज हो!
(लेखक जाने माने टेलीविजन पत्रकार हैं)
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