नजरिया

समकालीन नेताओं पर भारी पड़ते हैं बाबा साहेब अंबेडकर!

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Dr. Sushil Upadhyay

एक बार पढिये डॅा. अंबेडकर को……

आप यदि किसी पूर्वाग्रह के बिना डॅाक्टर अंबेडकर को पढ़ें तो जल्द ही समझ जाते हैं कि वे अपने समकालीन समय से बहुत आगे थे। समकालीन नेता भी उनके सामने नहीं ठहरते थे। गांधी, नेहरू, जिन्ना और सुभाष बाबू जैसे नेताओं की कतार में सबसे आगे खड़ा होने की हैसियत डॅा अंबेडकर की थी। उनके बारे में कुछ नई बातें और नए संदर्भाें में कुछ पुराने बातें जानने-पढ़ने का मौका मिला। मसलन,
-वे अपने समय के प्रतिष्ठित राजनेता ही नहीं, बल्कि विश्व स्तर के अर्थशास्त्री भी थे
-भारत के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने विदेशी विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॅाक्टरेट हासिल की थी
उनके पास चार डॅाक्टरेट उपाधि थी। सोचिये, एक पीएच.डी. में ही पसीने आ जाते हैं!-वे 1937 में ब्रिटिश भारत के श्रम मंत्री थे।
-वे भारत के रिजर्व बैंक के संस्थापकों में थे। उनकी दूरदृष्टि का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने पूंजी और मुद्रा संबंधी नीतियों के पालन के मामले में दो अलग मैकेनिज्म पर जोर दिया। इसी से यह संभव हो पाया कि भारत गलत आर्थिक नीतियों के ट्रैप में फंसकर दिवालिया नहीं हुआ। डॅा. अंबेडकर को सलाम कहिये कि उन्होंने वित्त मंत्री के बराबर में रिजर्व बैंक के गवर्नर को खड़ा किया। बीते दो सालों में इस व्यवस्था ने साबित किया कि ऐसा न होने पर किस तरह के परिणाम सामने आते।
-उन्होंने अपनी पार्टी खड़ी की और इस पार्टी ने महाराष्ट्र विधानसभा में उपस्थिति भी दर्ज कराई।

-ऐसा लगता है कि यदि डॅा अंबेडकर न होते तो इस देश के साथ दलितों का वैसा जुड़ाव न होता, जैसा कि आज है।
-वे छह भाषाओं, अंग्रेजी, मराठी, हिंदी, फारसी, गुजराती……में समान अधिकार के साथ काम कर सकते थे, धाराप्रवाह बोल सकते थे।
और हां, अल्पसंख्यकों को डॅा. अंबेडकर जैसा कोई नायक मिला होता तो देश में उनकी स्थिति ज्यादा बेहतर होती!
एक बात और, भारत में बौद्ध धर्म के पुनरूत्थान का श्रेय डॅा. अंबेडकर को ही है।

बोस, अंबेडकर और जिन्ना

मुझे इतिहास की गहन समझ नहीं है। पर कई बार लगता है कि गांधी जी को जिन तीन लोगों ने बौद्धिक चुनौती दी वे सुभाषचंद्र बोस, भीमराव अंबेडकर और मुहम्मद अली जिन्ना थे। तीनों का बौद्धिक स्तर ज्यादातर मामलों में गांधी जी से बेहतर दिखता है। तीनों ही हठी हैं। तीनों ने गांधी के दर्शन को खारिज किया। तीनों ने उस रूप में गांधी जी की छाया बनने से इनकार किया, जैसे कि नेहरू बने हुए थे। पर, इन तीनों में राष्ट्र के लिए सर्वाधिक अमूल्य योगदान डॅा अंबेडकर का है। गांधी को खारिज करते हुए भी वो देश को ऐसा संविधान दे गए जिसने प्रकारांतर से गांधी की सोच को अपने भीतर समाहित किया। जबकि, सुभाष बाबू और जिन्ना ऐसी दिशाओं में चले गए, जिनसे एक राष्ट्र के तौर पर भारत को नुकसान ही हुआ।

ये एक मोटी समझ है, इस पर कोई नया तथ्य आपके पास हो तो साझा कर सकते हैं। मेरी राय का आधार हाल के दिनों में पढ़ी गई सीमांत गांधी अब्दुल गफ्फार खां की जीवनी और उनके कुछ भाषण हैं।

(लेखक उत्तराखंड हिंदी अकादमी में डिप्टी डायरेक्टर हैं। वह लंबे समय तक मुख्यधारा के अखबारों में पत्रकार रहे हैं। इस आलेख में उनके निजी विचार हैं )

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