Narayan Bareth
लोग अभिभूत थे
यह अभिवादन भी था ,अभिनंदन भी !
डॉ उमा मधुसूदन को एक सौ कारों ने सलामी दी!
वे अमेरिका के साउथ विंडसर हॉस्पिटल में नियुक्त है! कोरोना में डॉ उमा मधुसूदन ने जिस तरह अपनी खिदमत के काम को अंजाम दिया ,लोग भाव विह्ल हो गए। यह हॉस्पिटल कनेक्टिकट राज्य में है। प्रति व्यक्ति आमदनी के हिसाब से इसे धनी मानी इलाको में शुमार किया जाता है। कोरोना अब तक अमेरिका में 45 हजार लोगो की सांसे छीन चुका है। लोगो में घबराहट और बैचनी है। ऐसे में डॉ उमा ने जब बीमारों की इलाज और तीमारदारी में खुद को झोंक दिया। उनका सेवा भाव देख कर लोग बहुत प्रभावित हुए।
फिर वो घड़ी आई जब लोग अपने डॉक्टर के सम्मान में इक्क्ठे हुए। वे वाहनों में सवार थे। जुलुस के शक्ल में डॉ उमा के घर तक गए और डॉक्टर के प्रति सम्मान प्रदर्शित किया। डॉ उमा मैसूर से है। जे एस एस मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी पास करने के बाद अमेरिका चली गई। उनके प्रति यह सम्मान भारत और मानवता का सम्मान है।
भारत डॉ उमा का अपना देश है। यह सम्मान लोगो के दिल दरवाजो पर एक विनम्र दस्तक देता है। उनसे गुहार करता है ने केवल डॉक्टरों बल्कि नर्सिंग स्टाफ और पुलिस का भी सम्मान करे। सदियों पहले रोमन दार्शनिक सेनेका ने कहा ‘ बेशक लोग अपने मर्ज के निदान के लिए डॉक्टर को फीस देते है पर उनकी सेवा के लिए उम्र भर कर्जदार रहते है।
ब्रिटेन और अमेरिका में भारत के डॉक्टरों का बहुत सम्मान है। हर भारतीय जब किसी विदेशी धरती पर पैर रखता है लोग उसे सम्मान से देखते है। क्योंकि वो हजारो साल पुरानी सभ्यता की संतति है जिसने संसांर को करुणा, क्षमा, अहिंसा और प्रेम का पैगाम दिया। किसी भारतीय से रूबरू होते ही लोग गाँधी और बुद्ध का नाम लेने लगते है। अमेरिका में भारत की धूम है।
यह वर्ष 2008 की बात है। उस वक्त मानव संसधान की केंद्रीय राज्य मंत्री डी पुरंदेश्वरी ने राज्य सभा को जानकारी दी कि अमेरिका में 38 प्रतिशत डॉक्टर और 12 फीसद वैज्ञानिक भारतीय मूल के है। नासा में 36 साइंसिस्ट भारतीय है। यानि दस में से चार वैज्ञानिक भारतीय है। माइक्रोसॉफ्ट के 34 और आइ बी अम के 17 प्रतिशत भारतीय है। यह बारह साल पुरानी तस्वीर है।
भारत में डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ अपना सब कुछ भूल कर लोगो की जान बचाने में लगे हुए है। वे तब भी उफ़ नहीं कर रहे है जब उनके पास जरुरी सुरक्षा कवच नहीं है। सरकारी क्षेत्र के अस्पताल और डॉक्टर उल्लेखनीय काम कर रहे है। प्राइवेट ने काफी जगह अपने दरवाजे बंद कर लिए है। नफे नुकसान का हिसाब लगा रहे है। लेकिन उस भीड़ में भी उजले चेहरों की कोई कमी नहीं।
यह पिछले महीने की बात है जब भीलवाड़ा कोरोसा की जंग लड़ रहा था। मांडलगढ़ में आबिद मोह्हमद की आंख में कील घुस गई। डॉक्टरों ने उसकी कील तो निकाल दी मगर ऑपरेशन में बाधा आ गई। वो नीमच गया। लेकिन वहां भी डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए। वो मध्य प्रदेश और राजस्थान के तीन जिलों में भटकता रहा।
फिर किसी ने कोटा में डॉ सुधीर गुप्ता से गुहार की। डॉ गुप्ता ने उसे कोटा बुलाने की बजाय खुद अपनी टीम लेकर बिजोलिया पहुंचे और आबिद का ऑपरेशन किया। न फीस ली न आने जाने का खर्च। ऐसी बहुत सारे डॉक्टर सराहनीय काम कर रहे है।
फूल ना तो उम्मीद थे
पत्थर भी पसीजा होगा
जब तुम्हारे हाथो ने
एक पत्थर फेंका होगा।
आओ, उन डॉक्टरों का अभिन्दन करे अभिवादन करें। ठीक उसी भाव में जैसे अमेरिका में लोगो ने डॉ उमा का सम्मान किया है।
(नारायण बारेठ वरिष्ठ पत्रकार हैं और लंबे समय तक BBC में रहे। इस आलेख में उनके निजी विचार हैं)
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