Rahul Singh Shekhawat
वैश्विक कोरोना संकट काल में RSS चीफ मोहन भागवत ने प्रबोधन दिया। देश के ‘130 करोड़ लोग भारत माता की संतान हैं’। इस वाक्य से लेकर अंत तक उन्हें मोबाइल पर लाइव स्ट्रीमिंग पर सुना। भागवत ने कहा कि समाज में कुछ लोगों की गलती की वजह से पूरे समूह पर अंगुली नहीं उठानी चाहिए। उन्होंने पालघर ने 2 साधुओं की निर्मम हत्या पर बात की। मोहन ने अपने प्रबोधन के आखिरी हिस्से में कोरोना संकट के समाज और देश पर दूरगामी प्रभावों का ज़िक्र भी किया।
आर एस एस के मुखिया ने मौजूदा हालात से जुड़े मुद्दों को संवेदनशीलता के साथ छुआ। लेकिन सवाल ये उठता है कि उनका इशारा किसकी तरफ था। या फिर कहूं कि भागवत की शिकायत अथवा सीख किसके लिए थी। महाराष्ट्र के पालघर की मोब लिंचिंग में निर्दोष साधुओं की हत्या की जवाबदेही तो उद्धव ठाकरे की बनती है। लेकिन बाकी विषय तो संघ संरक्षित, समर्थित सरकार अथवा उसके आभामंडल में बन रहे ‘न्यू इंडिया’ से जुड़े हैं। कथित ‘सेलेक्टिव सेकुलरिज्म’ खेमे से दो-दो हाथ करने के लिए एक पूरी स्वम्भू राष्ट्रवादी गाली ब्रिगेड तैयार हो गई है। जो हिंदू समाज की पारंपरिक पहचान को बदलने पर ही आमादा है।
भागवत ने कहा कि देश के 130 करोड़ भारत माता की संतान हैं। कोरोना काल से चंद दिनों पहले ही उन्होंने संघ के एक जलसे में कहा था कि भारत में रहने वाले सब ‘हिंदू’ हैं। जाहिर सी बात है उनके इस जुमले को हर धर्म के लोग नहीं स्वीकार कर सकते। वैसे भी भारत धर्म और जातियों की विविधता वाला देश है। भारत की सामाजिक एवं धार्मिक संरचना ऐसी है कि उस पर कोई विचार थोपना उचित नहीं है। अलबत्ता भागवत के नए ‘मोहनी’ वक्तव्य पर समाज चाहे तो विचार कर सकता है।
पालघर में लिंचिंग के दौरान पीटने के बाद भी निश्चल मुस्कराने वाला साधु तो सचमुच ईश्वर का रूप था। कोई पशु ही उनके हत्यारों की हिमायत कर सकता है। पूरे देश ने इस स्तब्धकारी घटना की निंदा की। बेशक महाराष्ट्र सरकार अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही से नहीं बच सकती। लेकिन क्या ये सच नहीं है कि इसके पहले तक विमर्श लिंचिंग शब्द के उदगम स्थल तक सीमित था। क्या वजह थी कि आपने उत्तरप्रदेश में लिंचिंग में मरने वाले सब इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के हत्यारोपियों का स्वागत करने वालों पर सवाल खड़े नहीं किए? खैर!
मैं इस बात के लिए मोहन भागवत की तारीफ करुंगा कि उन्होंने कतिपय घटनाओं के आधार पर एक पूरे समूह को कटघरे में खड़ा नहीं करने की नसीहत दी है। हालांकि, RSS चीफ ने नाम नहीं लिया लेकिन उनका इशारा मुसलमानों की तरफ था। जिनके खिलाफ पिछले 6 सालों के दौरान समाज में सुनियोजित तरीके से घृणा पैदा की गई। हालांकि इसके लिए मुस्लिम समाज में कतिपय घटनाएं अथवा कुछ लोगों की हरकतें भी एक हद तक जिम्मेदार रही हैं। इसके बावजूद पूरी मुस्लिम कौम को गद्दार तो नहीं कहा जा सकता। लेकिन ये कड़वी सच्चाई है कि हर छोटी-बड़ी बात पर हिंदू तुष्टिकरण के लिए मुस्लिमों को कठघरे में खड़ा करना सत्ता पक्ष का अघोषित एजेंडा बन गया है।
मेरा संघ से जुड़े अपने एक अजीज मित्र से वक्त बेवक्त सामाजिक चिंताओं पर स्वस्थ संवाद हो जाता है। अभी दो-तीन रोज पहले मैं उनसे गम्भीर मजाक कर रहा था कि आप लोग क्यों नहीं कहते हो कि सभी 130 करोड़ भारतीय हैं। ये इत्तेफाक है कि इस बीच मोहन भागवत का वक्तव्य आया कि 130 करोड़ लोग भारत माता की संतान हैं। लेकिन सवाल ये उठता है कि जब संघ की पाठशाला से निकला एक जिम्मेदार व्यक्ति ‘कपड़े’ की पहचान में माहिर हो जाए तो फिर शंका होती है। ये भी लगता है कि कहीं कोई ‘चतुर बनिए’ सरीखी कोई क्रोनोलोजी तो नहीं है।
बहरहाल, मोहन भागवत ने संवेदनशील विषयों पर अपने विचार रखें हैं। अगर उन्हें अमलीजामा पहनाने के दिशा में ईमानदार प्रयास होते हैं, तो यकीनन भारतीय समाज के भविष्य के लिए बेहतर होगा।
(लेखक जाने-माने टेलीविजन पत्रकार हैं)
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