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कोरोना काल ने त्रिवेंद्र को ‘रिवर्स पलायन’ नामक गीत में संगीत भरने का मौका दिया!

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Rahul Singh Shekhawat

उत्तराखंड में विभिन्न राज्यों से प्रवासियों की वापसी शुरू हो गई है। जिनमें अधिकांश राज्य के पहाड़ी इलाकों के निवासी हैं। बेशक स्थानीय लोगों का घर लौटना एक अच्छी बात है। लेकिन ये कड़वी हकीकत अवसरों की कमी के चलते वो पहले पलायन के लिए मजबूर हुए। अब कोरोना संकट की वजह से मजबूरी में प्रवासी घर वापसी कर रहे हैं। लेकिन महामारी के खौफ ने उत्तराखंड सरकार को एक मुश्किल चुनौती को मौके में तब्दील करने का पायदान दिया है।

पहली चुनौती का जिक्र तो खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत एक आशंका के रूप में जाहिर कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि प्रवासियों के आने के बाद राज्य में संक्रमितों का आंकड़ा 25 हजार तक जा सकता है। अगर ये आशंका सच में साबित हुई तो फिर पहाड़ में हालात काबू में करना मुश्किल होगा क्योंकि सामान्य स्वास्थ्य सुविधाओं का भारी टोटा है। लिहाजा सबसे पहला इम्तिहान तो ये सुनिश्चित करना है कि प्रवासियों की वजह से पहाड़ में कोरोना संकरण ना बढ़े।
उत्तराखंड में 9 पहाड़ी जिले संक्रमण से अछूते रहे हैं। सिर्फ शुरुआत में अल्मोड़ा और पौड़ी में एक-एक केस मिला, जो बाहर से आए थे। लेकिन हाल में गुजरात के सूरत से बाइक से उत्तरकाशी पहुंचा एक युवक पॉजिटिव पाया गया। जिससे स्थानीय स्तर पर भी चिंता बढ़ी है। वजह ये है कि कोरोना की दहशत देश के बाकी हिस्से की तरह पहाड़ में भी व्याप्त है। जिसके प्रति पलायन एक चिंतन नामक अभियान के संयोजक रतन सिंह असवाल आगाह कर चुके हैं।
दूसरी चुनौती कमोबेश 2 लाख प्रवासियों को उत्तराखंड में पहुंचने के बाद क्वारन्टीन करना है। जिसकी देखरेख की जिम्मेदारी सरकार ने पहाड़ों में ग्राम पंचायतों पर डाल दी। यह बेहद जोखिम भरा है क्योंकि अपवाद छोड़कर प्रधान अथवा पंचायत चिकित्सीय दृष्टि से दक्ष नहीं होंगे। लिहाजा इससे अशांति और परस्पर मनमुटाव की आशंका बनती है। इसलिए बेहतर संस्थागत  एकांतवास ही रहेगा।
गौरतलब है कि लॉकडाउन में अभी तक 1 लाख 98 हजार 584 प्रवासी उत्तराखंड वापसी के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं। कोरोना के मद्देनजर हुए अभी यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। अगर इनमें आधे लोगों ने भी रुकने का मन बना लिया, तो राज्य सरकार के लिए उन्हें रोजगार देना तीसरी मुश्किल चुनौती होगी। इसलिए यह बतौर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की व्यक्तिगत सबसे कठिन परीक्षा होगी।
कहने की जरूरत नहीं है कि रावत ‘रिवर्स पलायन’ का राग अलापते रहे हैं। जिसके मद्देनजर संवेदनशीलता दिखाते हुए उन्होंने एक पलायन आयोग गठित किया। आयोग के मुखिया एस एस नेगी का कहना है कि कोरोना की वजह से करीब दो लाख प्रवासी उत्तराखंड पहुंच सकते हैं। अभी स्थितियों को देखना होगा लेकिन राज्य स्तर पर रोजगार के अवसर मिलने पर करीब 30 फीसदी रुक सकते हैं।
फिलहाल मुख्यमंत्री ने प्रवासियों को रोककर रखने का नुस्खा तलाशने का जिम्मा पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे को सौंपा है। आशंका स्वाभाविक है कि अगर नौकरशाही इतनी संवेदनशील होती तो उत्तराखंड गठन के बाद पलायन रुक गया होता। बहरहाल, कोरोना ने राज्य सरकार को महामारी के खौफ को ‘रिवर्स-पलायन’ में तब्दील करने का मौका दिया है।
अगर सूबे के मुखिया इसमें सफल रहे तो वह ‘त्रिवेंद’ के मायने को चरितार्थ कर पाएंगे। दूसरी सूरत में पलायन गीत गाने वाले रावत के नेतृत्व पर अमिट सवालिया निशान दर्ज होंगे। वैसे भी तकदीर ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को उत्तराखंड में ‘अकल्पनीय’ प्रचंडतम बहुमत वाली सरकार मुखिया बनाया। फिलहाल कोरोना काल ने उन्हें बंद हॉल में ‘रैबार’ के प्रणेता का दाग धोकर इतिहास रचने का अकल्पनीय मौका दिया है।
(लेखक जाने माने टेलीविजन पत्रकार हैं, इस आलेख में उनके निजी विचार हैं।)

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