Sushil Upadhyay
जिस बात की आशंका थी, हम लोग कोरोना के मामले में लगभग उसी जगह पहुंच गए। इस वक्त अमेरिका और ब्राजील को छोड़ दें तो रोजाना सामने आने वाले मरीजों की संख्या के लिहाज से भारत तीसरा बड़ा संक्रमित देश बन गया है। यह बात अलग है कि संक्रमितों की कुल संख्या के मामले में हम अभी सातवें नंबर पर हैं, लेकिन कब तक सातवें नंबर पर रहेंगे यह नहीं कहा जा सकता। वैसे भी, भारत एक महीने में 17वें से उठकर सातवें नंबर पर आ गया है।
इटली, ब्रिटेन और स्पेन को पीछे छोड़ने में भारत को 8 से 10 दिन लगेंगे। इटली और स्पेन में अब रोजाना सामने आ रहे नए मरीजों की संख्या 1000 से भी कम हो गई है। अलबत्ता,ब्रिटेन में रोजाना 3000 के आसपास नए के सामने आ रहे हैं। इस वक्त रूस में उतने ही मामले सामने आ रहे हैं, जितने कि भारत में। हालांकि, रूस में कुल संक्रमितों की संख्या भारत की तुलना में करीब दोगुनी है। भारत में जो रफ्तार इस वक्त चल रही है, उसके लिहाज से इस बात की आशंका बनी हुई है कि जून के आखिर तक भारत कुल मरीजों की संख्या में अमेरिका और ब्राजील के बाद तीसरा सबसे बड़ा संक्रमित देश बन जाएगा।
ये आंकड़े देखकर किसी को भी चिंता होना स्वाभाविक है। हालांकि हमारे बीच में अब भी ऐसे लोग मौजूद हैं जो देश की आबादी के आंकड़े को सामने रखकर यह साबित करने की कोशिश में जुटे हुए हैं कि भारत में संक्रमण की दर अब भी बहुत कम है। भारत मे जब 2000 मरीज थे, ये लोग तब भी आंकड़ों से यही निष्कर्ष निकाल रहे थे, 20 हजार होने पर भी इनकी एप्रोच यही थी और अब 2 लाख से ज्यादा पर भी इनके डायरेक्शन में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया और यदि दुर्भाग्य से ये मरीज 10 लाख हो गए तो भी इनके निष्कर्ष ये ही रहेंगे कि भारत में स्थितियां बहुत नियंत्रण में हैं।
अब इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है कि भारत कोरोना संक्रमण की तीसरी स्टेज पर पहुंच गया है। मेडिकल की दुनिया के बारे में मेरी समझ बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन इतना जरूर समझ में आता है कि यदि भारत में अमेरिका की तरह रोजाना 5 या 6 लाख लोगों की टेस्टिंग होने लगे तो यहां पर भी नए मरीजों की प्रतिदिन की संख्या 20 हजार पार कर जाएगी। इस वक्त अमेरिका और रूस ऐसे देश हैं, जहां रोजाना 5 लाख से अधिक लोगों की टेस्टिंग हो रही है, जबकि भारत में प्रतिदिन टेस्टिंग की संख्या दो लाख भी नहीं पहुंची है। ऐसे में, यह मान लेना शायद ठीक नहीं लगता कि भारत में कोरोना के प्रसार की दर अन्य देशों की तुलना में कम है।
जहां तक मरीजों के ठीक होने की दर की बात है तो इस मामले में भी जर्मनी, इटली, रूस, स्पेन, जापान, दक्षिण कोरिया आदि देश भारत से बहुत आगे है। देश में ठीक होने वालों का आंकड़ा अभी भी 50 फीसद पर नहीं पहुंचा है। आंकड़ों के इस खेल को जितनी तरह से समझने और देखने की कोशिश करते हैं तो परिणाम उतने ही अलग ढंग से सामने आते हैं। वैसे एक्सपर्ट मान रहे हैं कि यदि भारत अगले कुछ दिनों में ठीक होने वाले लोगों के आंकड़े को 60-65 फीसद तक ले जाए तो कोरोना के खतरे को काफी हद तक नियंत्रित हुआ माना जा सकता है। मौजूदा रफ्तार को देखकर तो यही लग रहा है कि भारत जुलाई के आखिर तक कोरोना संक्रमण के चरम को देख लेगा और फिर संभव है कि यहां भी इटली, स्पेन, जर्मनी, ब्रिटेन, तुर्की, जापान आदि की तरह स्थिति स्वतः ही नियंत्रण में आने लगे।
इस वक्त दुनिया में कोरोना को नियंत्रित करने के मामले में जितने भी तरह के मॉडल चर्चा में है, वास्तव में उनमें एक भी मॉडल ऐसा नहीं है जिसे संपूर्ण वैज्ञानिक ढंग से किसी दूसरे स्थान पर दोहराया जा सके। कोरोना को लेकर जहां भी स्थितियां नियंत्रण में आई हैं, अभी उनकी पूरी तरह व्याख्या नहीं हो सकी है। इस क्रम में यदि पाकिस्तान, ईरान जैसे देशों के बारे में सोचें तो वहां कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा हजारों में नहीं, बल्कि लाखों में होनी चाहिए थी, पर ऐसा है नहीं। इन देशों में भी संक्रमण और मृत्यु का लगभग वही अनुपात सामने आ रहा है जो दुनिया के विकसित देशों में सामने आया है। तो मान सकते हैं कि आने वाले दिनों में भारत मे कोरोना के मामले चाहे किसी स्तर तक बढ़ें, ये कम जरूर होंगे और एक वक्त के बाद इन पर नियंत्रण भी दिखाई देने लगेगा।
लेेेखक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और इस आलेख में उनके निजी विचार हैं)
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