उत्तराखंड

Uttarakhand: लोक गायक हीरा सिंह राणा का निधन, नराई तो लगेगी!

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Rahul Singh Shekhawat

ये वाकया नैनीताल में संभवतः साल 2004 में शाम साढ़े नौ-दस बजे का रहा होगा। मैं खाना खाकर टहलने के लिए पंतपार्क के सामने से गुजर रहा था। अक्टूबर का महीना था और फ्लैट्स ग्राउंड शरदोत्सव से सराबोर था। स्टेज पर ‘धना धना धनुली…..’ गाया जा रहा था। साज और आवाज अच्छी लगी इसलिए थोड़ी देर कदम रोक दिए। फिर नगर पालिका के सामने मैदान के टॉप वाली रेलिंग (जहां घाम तपाई होती है) पर बैठकर सुनने लगा। उसके बाद ‘रंगीली लाल बिंदी…धोती लाल चुनरी….’ का नंबर आया।

दिलचस्प बात ये कि उस वक्त कुमाऊंनी बोली ज्यादा समझ नहीं आती थी। लेकिन हीरासिंहराणा की आवाज में, अपनेपन, अल्हड़ मस्ती और लोक रिदम का बेजोड़ संगम था। इसलिए अगली सुबह खास तौर उनसे सिर्फ मिलने गया और उनकी सहजता और पहाड़ीपन का कायल हो गया। खैर! उसके बाद जनकवि गिरीश तिवाड़ी गिर्दा से संपर्क हुआ और रिश्ता आत्मीयता में तब्दील ही गया। जिसने नए सिरे से पहाड़ की लोक संस्कृति की थोड़ी बहुत समझ विकसित करने का बड़ा अहसान किया।

दरअसल, गिर्दा के साथ बैठकी से ही मेरी कुमाऊंनी बोली सीखने का रास्ता तैयार हुआ। साथ ही उनके सानिध्य से ही लोक गायक हीरा सिंह राणा की अहमियत का अहसास हुआ। उसके बाद राणा से यदा कदा मेल मुलाकातें हुईं। इस कड़ी में हिरदा और लोक गायिका संगीता ढोंडियाल मेरे तत्कालीन चैनल के एक मशहूर सांस्कृतिक कार्यक्रम के निर्णायक बने थे। बेशक वह दिल्ली में रहे लेकिन उनके दिल में पहाड़ धड़कता रहा।

जिसकी झलक हीरा सिंह राणा के इस एक संजीदा गीत में मिलती है।

लश्का कमर बांधा, हिम्मते का साथा,

फिर भोउ उज्यालो होलो, कां तलक रौली राता,

यो नै हुन, उ नै हुन, कै बेर, के नै हुन,

शीर पाणी की वां फूटेली,जां मारुला राता,

लश्का कमर बांधा, हिम्मते का साथा।

आज सुबह उठने के बाद जैसे ही फेसबुक खोला तो वाल पर चारु तिवारी की पोस्ट पढ़कर स्तब्ध रह गया कि हीरा सिंह राणा अब नहीं रहे। मुझे लगता है जिस स्तर के वह लोक लोकगायक थे शायद उसकी मार्केटिंग नहीं कर पाए। अलबत्ता दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले स्थानीय सरकार सरकार ने हीरा सिंह राणा को एक संस्कृति परिषद में ओहदा दिया। लेकिन उत्तराखंड की तमाम सरकारों की उन पर नजर नहीं जा पाई। ये बात दीगर है कि संस्कृतिक कार्यक्रमों में उनकी मंचीय हाजरी लगती रही। कोई दो-तीन साल पहले राणा की बीमारी के वक्त पैसों की किल्लत की खबर सुर्खियों में आई थी। जो काफी कुछ बयां कर देता है।

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