Sushil Upadhayay
अमिताभ और उनके परिवार को कोरोना हुआ, इसके बाद हम सभी ने मीडिया के भीतर का माहौल देखा। कुछ लोगों को मलाल हुआ, कुछ को गुस्सा आया और कुछ लोग महानायक के स्वस्थ होने की कामना वाली खबरों में रम गए। यदि आपको ऐसा लगता है कि हमारा मीडिया अमिताभ को लेकर बहुत ही ज्यादा फिक्रमंद हो गया है तो ऐसा कतई नहीं है। मीडिया की एक मोटी समझ यही है कि लोग मनोरंजन चाहते हैं, चाहे वह खबरों के रूप में हो या किसी अन्य रूप में।
मनोरंजन ही केंद्रीय मूल्य है इसलिए अमिताभ बच्चन के बीमार होने के साथ-साथ रेखा का नाम उभरकर सामने आ गया। इस तरह की खबरें, कार्टून और मिम्स चारों तरफ फैल गए, जिसमें रेखा और अमिताभ के प्रेम की कहानी लोगों के सामने आ खड़ी हुई। इस सारी प्रक्रिया में जया बच्चन एक ऐसे पात्र की तरह उभरकर आई जो पति की बेवफाई से त्रस्त है। इस कहानी में अधिकतर ने रुचि ली, बहुसंख्य दर्शक भी इस कहानी को लेकर उत्सुक थे। प्रस्तुत करने वाले तो पहले से ही तैयार बैठे थे।
ऐसी कहानियों से एक बार फिर पुष्ट हुआ कि हमारे समाज और मीडिया में स्त्री के प्रति किस तरह की दृष्टि मौजूद है।
सोशल मीडिया पर लोगों ने मेन स्ट्रीम मीडिया पर तमाम तरह के उल्टे सीधे चुटकुले बनाए। यहां तक कहा गया कि अमिताभ बच्चन के पाजामे में कॉकरोच घुस गया और वे सारी रात इस कॉकरोच के कारण सो नहीं पाए। मीडिया ही बताता रहा कि आज अमिताभ बच्चन ने नाश्ता किया, आज उन्होंने कितनी बार थूका, आज उन्हें उल्टी हुई, आज उन्होंने लैट्रिन की।
लोगों को भी यहीं से दिशा मिली कि मीडिया क्या और कितना सोच सकता है! छोटी-छोटी वीडियो क्लिप यहां से वहां घूमने लगी, जिसमें कोई रिपोर्टर अमिताभ बच्चन के बेड के नीचे छिपा हुआ है और वहां से बता रहा है कि रात में अमिताभ बच्चन ने तीन बार करवट ली, तेरह बार टांगे सिकोड़ी और इक्कीस बार वे दर्द से कराह उठे। वस्तुतः इनमें से कोई भी सूचना नहीं है, ना ही इन सूचनाओं का कोई उपयोग अथवा मूल्य है। पर ये सूचनाएं कहीं ना कहीं हमारी दबी हुई इच्छाओं की प्रतिबिंब जरूर है।
आप जब भी मीडिया के बारे में सोचें तो यह ध्यान जरूर रख सकते हैं कि मीडिया कोई व्यक्ति नहीं है। यह एक समूहवाचक संज्ञा है। समूह का व्यवहार कब भीड़ में बदल जाए, कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता। इस दौर का मीडिया भीड़ ही है। उसे जो रम जाए या जो भा जाए, वह वैसा ही संगीत बजाने लगता है। जब तक लोग कोरोना से डर रहे थे, तब तक मीडिया पर कोरोना छाया हुआ था। उसके बाद कुछ वक्त के लिए पाकिस्तान फिर चीन ने मीडिया पर कब्जा कर लिया। आखिर में, नेपाल के प्रधानमंत्री केंद्र में आ गए। फिर रही-सही कसर विकास दुबे ने पूरी कर दी और आखिरकार अमिताभ बच्चन के पाजामे में कॉकरोच घुसने की खबर तक की यात्रा पूरी हो गई।
ऐसा नहीं कि अमिताभ-रेखा की प्रेम कहानी ही इन दिनों सुनाई दी हो। ऐसी ही कहानी नेपाल के प्रधानमंत्री और चीन की राजदूत को लेकर भी भारतीय मीडिया में प्रसारित की गई। इसका परिणाम यह हुआ कि नेपाल ने भारत के निजी चैनलों पर अपने यहां रोक लगा दी। लगता है, वह जमाना चला गया जब तथ्य को तथ्य की तरह ही प्रस्तुत किया जाता था। अब वह दौर है जब तथ्य को कथ्य की तरफ प्रस्तुत किया जाता है और यह कथ्य भी बहुत बुरे ढंग से प्रस्तुत होता है।
आप अपनी पसंद का कोई चैनल देख लीजिए वहां चीखते चिल्लाते रिपोर्टर मिल जाएंगे। मानो चीखकर बोले बिना खबर का संप्रेषण नहीं होगा। इन मीडिया माध्यमों, खासतौर से प्राइवेट चैनलों का कोई एक नीति नियंता नहीं है इसलिए यह कहना गलत होगा कि कोई एक व्यक्ति या कोई एक छोटा समूह ऐसा कर रहा है, पर जो भी लोग कर रहे हैं, उन्हें सच में अपने दर्शकों पाठकों के बारे में कुछ नहीं पता। वे उन्मत्त हैं और इसी उन्मत्तता के कारण बीते सालों में अपनी प्रतिष्ठा गवा चुके हैं।
वस्तुतः खबर का असर मनोरंजन तक सीमित हो गया है, यह थोड़ा और नीचे जाएगा तो यह दादा कोंडके की सी-ग्रेड फिल्मों जैसा हो जाएगा। संभव है, अमिताभ बच्चन के ठीक होने के बाद हम सभी ऐश्वर्या राय और सलमान खान के रिश्तो पर केंद्रित खबरें देखने लगें। बस इंतजार यह कीजिए कि सलमान खान का बंगला कब सील होता है। यदि ऐसा होगा तो पुरानी प्रेम कहानियां भी टीवी चैनलों पर उभर कर सामने आ जाएंगी।
हालात से उपजी हुई चिंता या कंसर्न को भूल जाइए। यह भी भूल जाइए कि वह जनसामान्य पीड़ा में है जो मीडिया से अब भी उम्मीद लगाए बैठा है। बस, खबरों को मनोरंजन की तरह देखिये। तब नाउम्मीदी नहीं होगी।
इन तमाम बातों के बावजूद ऐसा भी नहीं है कि सब कुछ नष्ट हो गया है या नष्ट होने जा रहा है। इसी मीडिया के भीतर कई सारे मजबूत स्वर भी मौजूद हैं। यह स्वर अक्सर लोगों की बात भी उठाते रहते हैं। फिलहाल, जब तक कोई सच्ची खबर सामने आए, तब तक अमिताभ बच्चन और रेखा की प्रेम कहानी मैं लिथड़ा मनोरंजन करते रहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और इस आलेख में उनके निजी विचार हैं)
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