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Uttarakhand: मदन कौशिक की बैठक में गैरहाजिर IAS अफसर, मंत्री ने गुस्से में बैठक छोड़ी, अफ़सरशाही की बददिमागी की एक नई मिसाल

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News Front Live, Dehradun

उत्तराखंड में अफसरशाहों की बददिमागी का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। जिसके ताजा शिकार शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक हुए हैं। दरअसल, उन्होंने कुंभ 2021 की तैयारियों की समीक्षा बैठक बुलाई थी। जिसमें सम्बंधित विभागों के सचिव नहीं पहुंचे और गुस्साए मंत्री बैठक छोड़कर चले गए।

आपको बता दें कि कौशिक कोई हल्के फुल्के मंत्री नहीं बल्कि  त्रिवेंद्र सरकार के अधिकृत शासकीय प्रवक्ता भी हैं। अगर IAS उनकी मीटिंग को हवा में उड़ा रहे हैं तो आप हालात खुद समझ सकते हैं। वैसे बेलगाम अफसरशाही का ये पहला किस्सा नहीं है।सत्ताधारी भाजपा विधायक राजेश शुक्ला ने हाल में विधानसभा अध्यक्ष को अपने विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया था।

दरअसल हाल ही में उधमसिंहनगर जिले के DM ने एक बैठक में शुक्ला के सवाल पूछने पर जवाब देने की बजाय उनकी याददाश्त पर ही सवाल खड़े कर दिए थे। दिलचस्प बात ये है कि खुद मदन कौशिक ही उस बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे।

शुक्ला बोले मंत्री जी अफसर हमारी सुनते नहीं आपकी मौजूदगी में हमारी बेज्जती कर रहे हैं। देखते ही देखते विधायक बैठक छोड़कर चले गए। लेकिन कौशिक एक मूकदर्शक की तरह आंखे टिमटिमाते रहे। इत्तेफाक देखिए आज खुद मंत्री जी को भी बेज्जती का ही शिकार होना पड़ा।

गौरतलब है कि पिछले दिनों मुख्यसचिव ने मातहतों को खत लिखकर ताकीद कर चुके हैं कि सांसद-विधायकों के सामने कुर्सी से उठकर प्रोटोकॉल पूरा करें। जिसके बाद खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि अफसर भूल जाते हैं कि वो जनप्रतिनिधि नहीं हैं, उन्हें याद दिलाना पड़ता है।

इस कड़ी में कैबिनेट मंत्री अरविंद पांडे ने कथित तौर पर निकम्मे अफसरों की केंद्र से शिकायत करने की बात कही थी। पिछले दिनों इलाज के अभाव में हुई एक महिला की मौत से गुस्साए भाजपा विधायक राजेश शुक्ला जिला अस्पताल के सामने ही धरने पर बैठना पड़ा था।

फिर हालिया प्रकरण में जिलाधिकारी ने भरी मीटिंग याददाश्त पर सवाल खड़े किए। लेकिन मुख्यमंत्री बोले थोड़ी बहुत नोकझोंक चलती रहती है। मजबूरन विधायक को स्पीकर को अपने विशेषाधिकार हनन का नोटिस देना पड़ा।

सवाल ये है कि वो बेलगाम हो गई या फिर त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार उस पर निर्भर है। या फिर जिल्ले इलाही के इशारे पर ही इरादतन अफसर साहेबान जनप्रतिनिधियों की बेइज्जती कर रहे हैं। सच जो भी हो लेकिन इन तीनों ही सूरत में सूबे की हकूमत के इकबाल पर सवाल खड़े होंगे।

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