News Front Live, Jaipur
राजस्थान में आज राजभवन और सरकार के बीच टकराव के हालात नजर आए। CM अशोक गहलोत ने कांग्रेस विधायकों के साथ राजभवन में धरना दिया। मुख्यमंत्री ने विधानसभा सत्र बुलाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि अगर जनता ने घेराव किया तो हमारी जिम्मेदारी नहीं होगी। जिस पर एतराज जताते हुए राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि विधिक राय के बाद फैसला करेंगे।
राजस्थान उच्च न्यायालय की कांग्रेस के बागी विधायकों को स्पीकर के अयोग्यता के नोटिस पर रोक लगते ही जयपुर में सियासी पारा चढ़ गया। अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस विधायकों ने राजभवन पहुंचकर करीब 4 घंटे धरना दिया। इस दौरान सत्र आहूत करने की मांग को लेकर नारेबाजी भी हुई।
एक बार फिर मुख्यमंत्री ने कांग्रेस सरकार के पास बहुमत होने का दावा किया। उन्होंने कहा कि ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ होना जरूरी है। जिसके लिए फौरन विधानसभा का सत्र आहूत होना चाहिए। लेकिन केंद्र के दबाव में गवर्नर हमारी मांग पर निर्णय लेने से बच रहे हैं। गहलोत ने कहा कि यदि राज्यपाल ने अपनी जिम्मेदारी नही निभाई तो प्रदेश की जनता घेराव कर सकती है। जिसकी हमारी जिम्मेदारी नही होगी।
कलराज मिश्र राजभवन में कांग्रेस विधायकों की धरने की शक्ल में अघोषित परेड के दौरान उनके बीच आए। उन्होंने कहा कि मैं विधिक राय के बाद इस पर फैसला लूंगा। फिर राज्यपाल में धरने पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि संवैधानिक मर्यादा से ऊपर कोई नहीं होता है । इस प्रकार राजनीतिक रंग देेेकर दबाव की राजनीति नहीं होनी चाहिए।
राजभवन सेे जारी मीडिया को लिखित बयान में कहा गया कि सामान्य प्रक्रिया में सत्र के लिए 21 दिन का नोटिस जरूरी है। राज्यपाल ने कहा कि कैबिनेट नोट में ना तो सत्र की तिथि और ना ही प्रस्तावित एजेंडा का कहीं कोई जिक्र है। प्रेसनोट में असंतुष्ट विधायकों की अयोग्यता के सुप्रीम और हाईकोर्ट में विचाराधीन केस और राजस्थान में बढ़ रहे कोरोना संक्रमण का भी जिक्र किया गया।
उधर, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत संविधान से ऊपर नहीं हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री का राजभवन के घेराव करने की धमकी देना शोभा नहीं देता। पुनिया ने कांग्रेस की आपसी फूट में भाजपा की भूमिका होने से इंकार किया।
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