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Rajasthan: गहलोत के बहाने भैरों सिंह शेखावत के राजभवन घेराव की यादें ताजा हुईं!

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(राजस्थान में कांग्रेस में बगाबत के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने सरकार बचाने की चुनौती है। उन्होंने केंद्र के राज्यपाल पर दबाव के मद्देनजर विधायकों के साथ राजभवन में धरना दिया। ठीक ऐसे भाजपा के भैरोंसिंह शेखावत ने सरकार बनाने के लिए भी घेराव किया था)

Narayan Bareth

मंच भी वही
मंडप भी वही
मौका भी कमोबेश वैसा ही
गोया जयपुर में इतिहास खुद को दोहराने वक्त की पगडंडियों पर चला आया !

1993 के चुनावो में न बीजेपी को बहुमत मिला ,न कांग्रेस को। नवंबर माह में धूप गुनगुनी थी। मगर यकायक सियासत का मिजाज गर्म हो गया। राजभवन में बलिराम भगत राज्यपाल थे। कांग्रेस के पास 76 विधायक थे और बीजेपी के पाले में 95 सदस्य थे। जनता दल के छह जीत कर आये। सी पी अम का एक विधायक विजयी होकर विधान सभा पहुंचा था।

राज भवन ने अपनी वफ़ादारी दिल्ली के प्रति दिखाना शुरू किया। तीन दिन तक यही चलता रहा। तब बीजेपी की कमान  भैरों सिंह शेखावत के हाथ में थी। उन्होंने जनता दल के दो विधायकों को अपने हक में किया और 11 निर्दलयो को भी साध लिया। मगर मौजूदा सूरते हाल की तरह राज भवन की निगाहे कहीं और देख रही थी।

शेखावत सक्रिय हुए। वे अपने साथ विधायकों को राजभवन ले गए। राज्य पाल तैयार नहीं हुये। उन्होंने  अपने समर्थन का दावा किया। लेकिन राज भवन दिल्ली से बंधा रहा।  शेखावत ने अपने समर्थको के साथ वही धरना शुरू कर दिया। नारे भी लगे। पल भर में सियासी पारा चढ़ गया। दिल्ली में वरिष्ठ बीजेपी नेताओ ने मोर्चा संभाला। श्री लाल कृष्ण अडवाणी विमान लेकर जयपुर चले आये। उधर अटल बिहारी वाजपेयी तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा से मिले। वाजपेयी ने राष्ट्रपति से व्यक्तिगत हस्तक्षेप का आग्रह किया।

इसका असर हुआ।  शेखावत को सरकार बनाने का न्योता मिल गया। राजभवन में 22 मंत्रियो ने शपथ ली। शेखावत ने 10 निर्दलीयों को भी अपने मंत्री मंडल में शामिल किया। जिनमें पांच कांग्रेस पृष्ठभूमि के थे। सरकार चली। कांग्रेस को यह तय करने में बड़ा वक्त लगा कि उनका नेता कौन होगा। तीन दावेदार थे। पूर्व मुख्य मंत्री हरिदेव जोशी ,उस वक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पारस राम मदेरणा और नवल किशोर शर्मा।कांग्रेस को विपक्ष में बैठना पड़ा। तब भी बहुत कुछ दिल्ली में तय होता था।

वक्त कभी किसी देहरी पर खड़ा नहीं रहता। वक्त बदलता रहता है। पर क्या मापदंड भी बदल जाते है।

(लेखक राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार हैं और लंबे समय तक BBC में कार्यरत रहे)

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