Sushil Upadhyay
नेपाल सरकार ने भारत के निजी न्यूज़ चैनलों पर रोक लगा दी है। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि अब भारत और नेपाल के लोगों के बीच और ज्यादा गलतफहमियां नहीं बढ़ेगी।। यह बात मैं बहुत गंभीरता के साथ कह रहा हूं की भारत और नेपाल के रिश्ते में खटास बोने में भारत के प्राइवेट न्यूज़ चैनलों की बहुत बड़ी भूमिका है।
जिस न्यूज़ चैनल ने नेपाल के प्रधानमंत्री और नेपाल में चीन की राजदूत के संबंधों को लेकर एक बेहद वाहियात स्टोरी प्रसारित की उसके कर्ता-धर्ताओं को शायद यह नहीं पता होगा कि इससे दोनों देशों की रिश्ते पर कितना घातक असर पड़ेगा। इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है की कुछ वक्त में नेपाल पुनः भारत के साथ होगा क्योंकि दोनों देशों के आम लोगों के रिश्ते इतने गहरे हैं कि उन रिश्तो की भरपाई चीन के साथ किसी भी तरह के संबंध से नहीं हो सकती।
नेपाल सरकार का यह कदम भी ठीक है कि उसने अपने यहां भारत के सार्वजनिक लोक प्रसारक दूरदर्शन और आकाशवाणी के प्रसारण को पूर्ववत जारी रखने का निर्णय लिया है। नेपाल के लोगों को भारत के बारे में जितनी सूचनाओं और समाचारों की जरूरत है, उतनी सूचनाएं और समाचार दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के माध्यम से प्राप्त हो सकते हैं और यह बात केवल भारत के प्राइवेट चैनलों के बारे में ही सच नहीं है, बल्कि नेपाल में भी कुछ प्राइवेट न्यूज़ प्लेयर्स ऐसी ही भूमिका निभा रहे हैं।
यह कोई पहली बार नहीं है कि नेपाल में भारतीय प्राइवेट न्यूज़ चैनलों की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं, बल्कि इससे पहले नेपाल में आए भूकंप के दौरान भी भारतीय प्राइवेट चैनलों ने जिस तरह की भूमिका निभाई, उससे आम नेपालियों के मन में गुस्से का भाव पैदा हुआ। यदि भारतीय प्राइवेट न्यूज़ चैनल नेपाल को भारत के दुश्मन की तरह प्रचारित करें तो इससे दोनों देशों के लोगों के बीच में मौजूद सद्भाव को गहरी चोट पहुंचेगी ही।
वास्तव में दोनों देशों का रिश्ता ऐसा है कि यहां सरकारों में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन लोगों के बीच मतभेद या मनभेद की संभावना बहुत कमजोर है। लेकिन कोई मतभेदों की बात को और लगातार हवा देने की कोशिश करें तो फिर यह आशंका रहेगी कि सरकारों के साथ-साथ आम लोगों में भी वैमनस्य पैदा हो जाए।
सूचना देना, जागरूक करना, शिक्षित करना जैसे उद्देश्य निजी चैनलों के ध्येय में शामिल नहीं है। यहां केवल सनसनी फैलाना, डर पैदा करना और गॉसिप को सत्य की तरह प्रस्तुत करना असली उद्देश्य दिख रहा है। एक दर्शक के रूप में मेरा मत है कि दूरदर्शन, राज्य सभा टीवी, लोक सभा टीवी चाहे कितने भी सरकार के हिमायती और भोंपू हों, लेकिन इनसे इस बात का डर नहीं है कि ये गॉसिप और सनसनी को अपनी खबरों का केंद्र बना देंगे।
दुनिया के जिन देशों में पॉलीटिकल पार्टीज द्वारा चैनल संचालित किए जाते हैं, वहां भी वैसी स्थिति नहीं है जैसे कि भारत में प्राइवेट न्यूज़ चैनलों की है। अपवाद छोड़ दीजिए तो सब में होड़ मची है कि कौन कितना अधिक सरकार की दाढ़ी खुजला सकता है।
कई बार लगता है कि केवल नेपाल ही नहीं, कुछ वक्त के लिए प्राइवेट न्यूज़ चैनल को भारत में भी बंद करके देखना चाहिए क्या पता कुछ अच्छे परिणाम आ ही जाएं और क्या पता मीडिया का कोई नया, अच्छा और संवेदनशील माध्यम सामने निकल कर आ जाए।
मैं, लंबे समय तक मुख्यधारा के मीडिया में रहा हूं इसलिए अपने उन मित्रों से माफी चाहता हूं जो इन न्यूज़ चैनलों या इस तरह के माध्यम का हिस्सा है। स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में संभव है, कई बार उनको भी यह लगता होगा कि पाठकों और दर्शकों के साथ एक गहरी साजिश और ज्यादती हो रही है। मुझे पूरा भरोसा है कि नेपाल में भारत के निजी न्यूज़ चैनलों पर रोक का भारत और नेपाल के संबंधों पर सकारात्मक असर पड़ेगा।
(Photo: साभार)
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और इस आलेख में उनके निजी विचार हैं)
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