By Rahul Singh Shekhawat
उत्तराखंड की राजनीति भाजपा और कांग्रेस के इर्द -गिर्द घूमती रही है। आलम ये है कि मौजूदा विधानसभा में दोनों के सिवा किसी अन्य दल का एक भी विधायक निर्वाचित नहींं हो पाया। शुरुआती 2 आम चुनावों में मैदान में तेजी से जनाधार बढ़ाने वाली बहुजन समाज पार्टी (BSP) का हाथी हाफ गया है। बीते विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) भी अंदरूनी कलह में निपट गया।
लेकिन अब 2022 के विधानसभा चुनाव की आहट में आम आदमी पार्टी (AAP) राज्य में अपना जनाधार बढ़ाने की जुगत में है। इस कड़ी में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की छवि और कार्यों से लोगों को लुभाकर पार्टी देवभूमि में पांव पसारने की कोशिशों में जुटी है। हालांकि पार्टी के पास अभी प्रदेश स्तर पर सर्वमान्य एवं लोकप्रिय चेहरा नहीं है। लेकिन प्रदेश अध्यक्ष एस एस कलेर समूचे उत्तराखंड में लगातार दौरे कर रहे हैं।
इस कड़ी में कलेर कार्यकर्ता जोड़ने और दूसरी पार्टी के नेताओं को AAP में शामिल करके जनाधार बढ़ाने की मशक्कत कर रहे हैं।आप को नैनीताल जिले में उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके सुरेश आर्य को पार्टी में शामिल कराने में कामयाबी मिली। इसी तरह उत्तराखंड बार काउंसिल की चेयरमैन रह चुकी देहरादून की रजिया बेग आप से जुड़ी हैं। सूत्रों के मुताबिक जल्द भाजपा-कांग्रेस के कुछ और नेता पार्टी से जुड़ सकते हैं।
‘आप’ के प्रदेश अध्यक्ष कलेर का कहना है कि राज्य गठन के बाद पिछले 20 साल से सत्ता में काबिज रही कांग्रेस-भाजपा ने लोगों को मायूस किया है। केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली में APP सरकार ने मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराकर विकास किया है। हम उसी विजन के साथ जनता के बीच जा रहे हैं। उनका दावा है कि 2022 के चुनाव में आम आदमी पार्टी सभी 70 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी और प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करेगी।
गौरतलब है कि उत्तराखंड में गैर भाजपा-कांग्रेस वोटो की खासी तादाद रही। BSP का तीसरे विधानसभा चुनाव तक 12 फीसदी वोट रहा। उसका हरिद्वार और उधमसिंहनगर जिलों में दबदबा रहा। बसपा के पहले चुनाव में 7, दूसरे में 8 और तीसरे में 3 विधायक चुनकर आए थे। वहीं पर्वतीय क्षेत्र में UKD का अधिकतम 5.5 मत प्रतिशत रहा। उसने पहले चुनाव में 4, दूसरे में 3 और तीसरे में 1 सीट जीती।पहले चुनाव में एक NCP और हर बार 3 निर्दलीय जीते।
उत्तराखंड में क्षेत्रीय अथवा तीसरे विकल्प की जरूरत तो महसूस की जाती रही है। लेकिन नेतृत्व और चेहरे के अभाव में कोई विकल्प नहीं बन पाया। जहां नेताओं के अहम की लड़ाई में UKD का जनाधार सिमट चुका है। वहीं, उत्तर प्रदेश के थोपे नेताओं की लीडरशिप के चलते BSP का भी जनाधार खिसकता गया। अब आम आदमी पार्टी दोनों की कमजोरी का फायदा उठाकर, उत्तराखंड में तीसरा विकल्प बनने का ख्वाब देख रही है। इसके पार्टी पूर्व में गोवा और पंजाब में पाव पसारने की कोशिशें कर चुकी है। लिहाजा उत्तराखंड को तासीर देखने हुए झाड़ू चलना असंभव तो नहीं लेकिन आसान भी नही है।
(लेखक जाने-माने वरिष्ठ टेलीविजन पत्रकार हैं)
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