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Khatima गोलीकांड: जुबां पर उत्तराखंड आंदोलन की दर्दभरी दास्तां चली आई !

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By Dipak Fulera, Khatima

उत्तराखंड में हर साल सितंबर महीने की शुरुआत दर्दभरे पुराने जख्मों को हरा कर देती है। साल 1994 में आज के रोज राज्य आंदोलन के दौरान हुए खटीमा गोलीकांड हुआ था। तत्कालीन उत्तर प्रदेश की पुलिस ने आंदोलनकारियों पर बर्बरता से गोलीयां चलाई। जिसमें शांतिपूर्ण सत्याग्रह कर रहे 7 आंदोलनकारी शहीद हो गए थे।

दरअसल, उस दौरान UP से अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर पूरे पहाड़ में आंदोलन परवान चढ़ रहा था। इस कड़ी में तराई के उधमसिंहनगर जिले के खटीमा में आंदोलनकारी सत्याग्रह कर रहे थे। लेकिन तत्कालीन मुलायम सरकार की गुलाम पुलिस ने उन पर क्रूरता के साथ फायरिंग झोंक दी। जिसके चलते 7 लोग शहीद हो गए थे।

गोलीकांड में ये आंदोलन कारी हुए थे शहीद:

  1. 1 अमर शहीद स्व० भगवान सिंह सिरौला, ग्राम श्रीपुर बिछुवा, खटीमा।
    2 अमर शहीद स्व० प्रताप सिंह, खटीमा।
    3 अमर शहीद स्व० सलीम अहमद, खटीमा।
    4 अमर शहीद स्व० गोपीचन्द, ग्राम-रतनपुर फुलैया, खटीमा।
    5 अमर शहीद स्व० धर्मानन्द भट्ट, ग्राम-अमरकलां, खटीमा
    6 अमर शहीद स्व० परमजीत सिंह, राजीवनगर, खटीमा।
    7 अमर शहीद स्व० रामपाल, निवासी-बरेली।

 

1994 के आंदोलन के दौरान यह पुलिसिया बर्बरता की यह पहली कड़ी थी। उसके ठीक अगले रोज यानी 2 सितंबर को मसूरी के झूलाघर में यही कहानी दोहराई गई। जहां पुलिस फायरिंग में 6 आंदोलनकारी शहीद हो गए थे। यानी एक सितंबर का दिन खटीमा गोलीकांड और 2 सितंबर मसूरी गोलीकांड की कड़वी यादों से जुड़ा है।

यही वजह है कि उत्तराखंड में हर साल सितंबर महीने की शुरुआत दर्दभरे पुराने जख्मों को हरा कर देती है। उस क्रूर गोलीकांड के बाद खटीमा में ‘शहीद स्मारक’ बनाया गया। इस बर्बर गोलीकांड की बरसी पर हर साल 1 सितंबर को राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ता श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। हालांकि आमजन के  मनमानस को यह सवाल जरूर कौंधता है कि क्या शहीदों के सपने साकार हो गए !

 

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