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Book: महात्मा Gandhi के ‘देवभूमि’ से रिश्ते को फ़्लैश बैक में जानिए !

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गाँधी जी का जीवन दर्शन/विचार,देश एवं समूचे विश्व के लिए प्रासंगिक थे और सदैव रहेंगे।  आज के हालातों में इनकी प्रासंगिकता बढ़ गई है। ऐसे वक्त में गाँधी जी का स्मरण समीचीन हो चला है। वरिष्ठ पत्रकार प्रयाग पाण्डे  की चौथी सुकृति ‘तपोभूमि में गाँधी जी’ गाँधी जी के पुरखों से लेकर उनके जन्म, उनकी शिक्षा-दीक्षा और किस तरह सामाजिक जीवन में उनका पदार्पण हुआ,का संक्षिप्त,पर रोचक उल्लेख हुआ है। राष्ट्रीय परिदृश्य के उपरांत जब गांधी जी का हरिद्वार आगमन का वृतांत आता है तो एक अलग ही जुड़ाव महसूस होता है।

 

स्वामी श्रद्धानंद जी के प्रति उनके मन में जो श्रद्धा थी,वही दिव्य भाव स्वामी श्रद्धानंद जी के मन में भी महात्मा गाँधी जी के प्रति भी था। महात्मा गाँधी जी के विराट व्यक्तित्व से वे प्रभावित थे। महात्मा गाँधी जी ने देवभूमि में पहुँच कर यहाँ के जनमानस पर एक अलग ही छाप छोड़ी। इस उत्तराखंड की माटी से जब भी महात्मा गाँधी लौटे तो वह एक नई ऊर्जा और शक्ति के साथ अपने अभियान में जुटे, उनको हमेशा सकारात्मक प्रेरणा यहाँ के वातावरण यहाँ के जन समुदाय ने दी। यद्यपि हरिद्वार एवं ऋषिकेश के आध्यामिक पक्ष से वे प्रभावित थे, मगर स्वच्छता के प्रति उदासीनता से वे खिन्न भी दिखे।

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उत्तराखंड की इस तपो भूमि में महात्मा गाँधी जी के प्रति जो यहाँ के जनमानस में श्रद्धा और निष्ठा का भाव था वह बताता है कि गाँधी जी का कितना विराट व्यक्तित्व था। उन के साक्षात दर्शन किए बिना भी उनके विचारों आदर्शों को अपने जीवन में उतार कर पहाड़ के लोग स्वराज प्राप्त की लड़ाई लड़ रहे थे, कुली बेगार की प्रथा से पीड़ित जनता ने किस प्रकार महात्मा गाँधी को साक्षी मानकर, उनको अपना नेता मान कर, उनकी अनुपस्थिति के बावजूद भी एक जन संघर्ष को खड़ा किया और सफलता पायी। अहिंसा के मार्ग पर चलकर अपने अभियान को जीत के मार्ग पर प्रशस्त किया।

गाँधी जी पर कई पुस्तकें, कई लेख, कई शोध कार्य हुए हैं। लेकिन उत्तराखंड की दृष्टि से गाँधी जी को लेकर लिखी गई। लेेेकिन यह पुस्तक बयां करती है कि किस तरह गांधी  के जीवन में उत्तराखंड का योगदान रहा। हिमालय के प्रति उनके मन में जो आकर्षण था, यहाँ के लोगों के प्रति जो भाव उनके मन में था, वह उनके पत्रों के माध्यम से जानने को मिलता है।

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गाँधी जी का पहला दौरा जब कौसानी के लिए होता है और जिस तरह हल्द्वानी से ताकुला, नैनीताल, भवाली, गरमपानी,ताड़ीखेत, अल्मोड़ा तथा कौसानी तक की यात्रा वृतांत को पढ़कर कालखंड में पहुंचने का अहसास है। लोगों ने बढ़- चढ़कर समर्पण के भाव से महात्मा गाँधी को सहयोग किया, दान दिया। दरिद्र नारायण की सेवा में अपने आप को समर्पित किया। खादी के आग्रह को सहर्ष स्वीकार करते हुए कताई- बुनाई को महत्व दिया।

इस पुस्तक में उन पुरखों के प्रति और गहरी श्रद्धा का भाव जागृत होता है। अल्मोड़ा के पदम सिंह जी के बारे में और उनकी मृत्यु के बाद जो गाँधी जी पर जो प्रभाव पड़ा और उनके परिवार वालों ने जिस उच्च आदर्श का प्रदर्शन किया,वह हमारे लिए प्रेरणादायी है।

बदरी दत्त पांडे, हर गोविंद पंत , गोविंद बल्लभ पंत,विक्टर मोहन चन्द्र जोशी और बहुत से ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की संघर्ष की गाथाओं से भी कम शब्दों में मगर मुखरित रूप से यह पुस्तक हमको रूबरू करवाती है। इसके इतर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी की छह पीढ़ी पूर्व के पुरखों का संक्षिप्त परिचय,  बचपन,शिक्षा, दक्षिण अफ्रीका का संघर्ष की दास्तान।1915 में भारत वापसी।इसी साल 1915 में पहला हरिद्वार दौरा समेत गाँधी जी के राजनैतिक जीवन से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण धटनाओं का सिलसिलेवार उल्लेख किया गया है।

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इस पुस्तक में गाँधी जी द्वारा 1915 से 1946 तक किए गए उत्तराखंड के सात दौरों और देवभूमि को लेकर उनकी अवधारणा को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। उनके स्वाधीनता संग्राम के दौरान चलाए गए विभिन्न जनांदोलनों को लेकर स्थानीय लोक गायकों द्वारा लिखे और गाए जाने वाले लोकगीतों की झलक भी प्रस्तुत की गई है।

 

गाँधी जी का व्यक्तित्व अंतरराष्ट्रीय था लेकिन उनके विचारों को व्यवहार में लाने वालों में उत्तराखंड का देश में अग्रणीय स्थान पर था। उन्होंने भारत में सार्वजनिक जीवन, स्वच्छता अभियान की शुरुआत और जीवन में एक समय भोजन का कठोर व्रत की शुरुआत हरिद्वार में की। गाँधी जी के 1921 का असहयोग आंदोलन उत्तराखंड में  पूरी तरह कामयाब रहा। जनता ने सदियों पुरानी कुली बेगार सरीखी घृणित कुप्रथा से मुक्ति पाने में सफलता प्राप्त की। यह असहयोग आंदोलन गाँधी जी की गैर मौजूदगी में उनके नाम से चला था।

इस दृष्टि से उत्तराखंड गाँधी जी के असहयोग आंदोलन की प्रयोग भूमि रहा। इस तथ्य को जानकर बापू खुद भी हैरान हुए थे। गाँधी जी विश्व में जिस समाज की परिकल्पना करते थे, उन्हें वह समाज समाज उत्तराखंड में दिखाई दिया। राष्ट्रपिता ने 1929 में कौसानी और 1946 में मसूरी में ही नसीब हुए। उन्होंने  “अनासक्ति योग गीता” की प्रस्तावना के लिए कौसानी को चुना। गाँधी जी पूरे विश्व के प्राणिमात्र को एक परिवार के रूप में देखते थे, लेकिन उनकी हिमालय, उत्तराखंड और यहाँ के निवासियों के प्रति विशेष आत्मीयता थी। गांधी जी की हार्दिक इच्छा थी कि साबरमती आश्रम की तरह एक आश्रम उत्तराखंड में भी बने।

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