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सिद्धू चाहते क्या हैं ? अमरिंदर को हटा ‘कैप्टन’ न बनने से बेचैन हैं !

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By Rahul Singh Shekhawat
सिद्धू चाहते क्या हैं ? पंजाब में कैप्टन बनाम सिद्धू जंग अंतिम
परिणति पर पहुंचने के बावजूद कांग्रेस में कलह थमने का नाम नहीं ले रही है। वहां कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन कांग्रेस कमेटी चीफ (PPCC) नवजोत सिंह सिद्धू उन पर भी लगातार हमलावर हैं।लिहाजा ये सवाल जायज है कि आखिर सिद्धू चाहते क्या हैं !
कहने की जरूरत नहीं कि राज्य सरकार में कतिपय नियुक्तियों के विरोध में उन्होंने अपने ‘ट्विटर-अकाउंट’ पर पद से इस्तीफा चस्पा कर दिया। दिलचस्प ये है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हालिया कांग्रेस वर्किंग कमेटी मीटिंग में कहा कि नेता मीडिया का सहारा न लें। जिससे बेअसर सिद्धू ने अगले ही दिन ट्वीटर पर सुलह के लिए अघोषित आखिरी ‘अल्टीमेटम’ के साथ 13 पन्नों का सोनिया को लिखा फिर एक खत चस्पा कर डाला।

अमरिंदर Out, चन्नी In लेकिन अभी सिद्धू ‘ओपनर’ नहीं !

गौरतलब है कि अमरिंदर ने कथित रूप से ‘अपमानित’ महसूस होने पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था। उन्होंने नवजोत को देश की ‘सुरक्षा के लिए खतरा’ बताते हुए बतौर सीएम स्वीकार नहीं करने का ऐलान भी किया। जिसकी रोशनी में हाईकमान ने ‘दलित कार्ड’ के तौर पर चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया। एक ‘जट सिख’ एवं एक हिंदू समेत दो उप मुख्यमंत्री भी बनाए गए।
विधायकों के बढ़ते विरोध के मद्देनजर कैप्टन को हटाने के निर्णय के पीछे राहुल गांधी खड़े हुए थे। उनके मिशन को प्रदेश प्रभारी महासचिव हरीश रावत ने चतुराई से अंजाम दिया। जिन्होंने पहले सुनील जाखड़ की जगह नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए अमरिंदर सिंह को बमुश्किल राजी किया था। फिर हाईकमान के इशारे पर मुख्यमंत्री बदलने के मुश्किल काम को अंजाम दिया।
सीधे सपाट कहें तो कैप्टन को ‘आउट’ करने के बावजूद कांग्रेस ने सिद्धू को फिलहाल ‘ओपनर’ बनाने से परहेज किया गया। क्या आम चुनाव से साढ़े चार-पांच महीने पहले हुआ नेतृत्व परिवर्तन पंजाब में सरकार बचाने में मददगार साबित होगा ? इसके जवाब के लिए तो 2022 के जनादेश का इंतजार करना पड़ेगा।

आखिर सिद्धू चाहते क्या हैं ? बिना बैटिंग के CM ट्रॉफी !

कहने की जरूरत नहीं है कि खुद नवजोत सिंह की महत्वाकांक्षा मुख्यमंत्री बनना है। जिसके लिए उन्होंने कैप्टन का ‘नायब’ बनने से इंकार कर दिया था। लेकिन उनके हटने के बाद अप्रत्याशित रूप से चरणजीत की लाटरी लग गई। यानी अब सिद्धू को उनके सीएम रहते हुए 2022 चुनाव में सियासत की पिच पर ‘ओपनर’ साबित करने की चुनौती होगी।
गौरतलब है कि पंजाब में करीब 32 फीसदी दलित मतदाता हैं। लिहाजा कांग्रेस चुनाव जीतने में कामयाब होने की सूरत में भी चरणजीत के सिर से ताज हटाकर  सिद्धू को पहनाना आसान होगा। शायद यही वजह है कि येन केन प्रकरण वश नवजोत सिंह हाईकमान और चन्नी दोनों पर दवाब बनाने की रणनीति अपनाते नजर रहे हैं।
हालांकि, सिद्धू सीडब्ल्यूसी बैठक से ठीक पहले प्रभारी हरीश रावत और संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल से मिले। उसके बाद पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात हुई। नवजोत तो साफ नहीं बोले लेकिन रावत ने इस्तीफा वापस लेने की बात कही। लेकिन सोनिया की दो टूक नसीहत के बावजूद ट्वीटर पर सुलह का आखिरी अल्टीमेटम देना साबित करता है कि वह शांत नहीं हुए।

सिद्धू को ज्यादा तरजीह हाईकमान पर भारी !

नवजोत सिंह सिद्धू क्या चाहते हैं, यह तो वो ही जाने। लेकिन कांग्रेस किसान आंदोलन के केंद्र पंजाब में सिद्धू की एक वर्ग में लोकप्रियता और चन्नी रूपी दलित कार्ड से सत्ता में वापसी की जुगत में लगी है। जिसकी रोशनी में रावत ने नवजोत को भी चेहरा बताया। जिससे उनके पूर्ववर्ती प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ नाराज भी हुए। इस कड़ी में कांग्रेस को सफाई देनी पड़ी ।
सिद्धू के गैर जिम्मेदाराना तेवर उनके विरोधियों को आशंकाओं को सही साबित करने का काम कर रहे हैं। गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर ओल्ड गार्ड और यंग जेनरेशन के खींचतान के दौर से गुजर रही है। कैप्टन की विदाई भी उसी प्रक्रिया की एक कड़ी है।
लेकिन सिद्धू ने इस्तीफा देकर हाईकमान को दुविधा में डाल दिया। वजह ये कि उनके लिए ही अमरिंदर को हटाने का बड़ा जोखिम लिया गया था। सिद्धू के इस उतावलेपन से नाराज हुए हाईकमान ने उन्हें ज्यादा भाव नहीं दिया। लेकिन सीडब्ल्यूसी से पहले लंबे समय बाद राहुल गांधी उनसे जरूर मिले थे।
तो सोनिया की नसीहत से बेअसर हैं गुरु !
गौरतलब है कि सोनिया गांधी ने हालिया कांग्रेस वर्किंग कमेटी CWC की बैठक में पार्टी के असंतुष्ट नेताओं को नसीहत देते हुए कहा कि मीडिया की बजाय सीधे मुझसे ही बात करें। जिसके ठीक पहले सिद्धू की दिल्ली में लंबे समय बाद राहुल गांधी से मुलाकात हुई। प्रभारी हरीश रावत ने उनके इस्तीफा वापस लेने की बात कही।
अब ये इत्तेफाक है या फिर कुछ लेकिन नवजोत का सोनिया को लिखा 13 पन्नों का अघोषित अल्टीमेटम वाला एक खत मीडिया में सामने आया। सीडब्ल्यूसी के बाद G23 तो ठंडा पड़ता नजर आ रहा है। लाख टके का सवाल है कि ताली ठोकवाने वाले गुरु शांत होंगे। सवाल वाजिब है कि आखिर सिद्धू चाहते क्या हैं ?
क्या कांग्रेस के लिए पंजाब में राहें आसान हैं ?
कांग्रेस के लिए चिंता की बात ये है की कैप्टन ने भाजपा से तार जोड़ लिए हैं। लेकिन कांग्रेस छोड़ने का ऐलान करने के बावजूद वह उसमें शामिल नहीं होंगे। वजह ये है कि तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसान के निशाने पर मोदी सरकार और बीजेपी दोनों हैं। अमरिंदर उनके साथ खड़े होकर पंजाब में राजनीति नहीं कर पाएंगे। लिहाजा वह अप्रत्यक्ष सहयोग एवं अलग पार्टी बनाकर कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
अलबत्ता कांग्रेस के इतनी राहत जरूर है कि किसान आंदोलन
से उपजे गुस्से से भाजपा की हालत पतली है। साथ ही राज्य में शिरोमणि अकाली दल गठबंधन टूटने से मजबूत स्थिति में नहीं हैं। उधर, पंजाब में चेहरे की कमी झेल रही आम आदमी पार्टी AAP संगठनात्मक दृष्टि से बहुत मज़बूत नहीं है। अब देखना है सिद्धू ताली ठुकवा पाएंगे ! यह आने वाला वक्त बताएगा।

(लेखक वरिष्ठ टेलीविजन पत्रकार हैं)

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