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विरोध का प्रोटोकॉल नहीं ! त्रिवेंद्र को Kedarnath के ‘दर्शन’ नहीं !

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विरोध का प्रोटोकॉल नहीं होता !

(Editor’s Note) केदारनाथ धाम में त्रिवेंद्र को ‘दर्शन’ नहीं करने दिए गए। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत प्रदेश BJP अध्यक्ष मदन कौशिक और मंत्री डॉ धन सिंह रावत के साथ गए थे। बताया जाता है कि वह PM मोदी के दौरे के मद्देनजर व्यवस्थाओं का कथित रूप से जायजा लेने गए थे।

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लेकिन तीर्थ पुरोहितों ने उन्हें न सिर्फ खरी खोटी सुनाई बल्कि धाम के बिना दर्शन किए लौटा दिया। दरअसल, त्रिवेंद्र सरकार ने ही देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का गठन किया था।  जम्मू कश्मीर के Shrine Board की तर्ज पर व्यवस्थाओं में सुधार के लिए इसे बनाया गया।

देवस्थानम बोर्ड में चार धाम समेत 51 मंदिर शामिल किए गए थे। लेकिन तीर्थ पुरोहित समाज ने मंदिरों पर कथित सरकारी नियंत्रण की कवायद का शुरु से ही विरोध कर दिया था। इस कड़ी में पुरोहितों ने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र को केदारनाथ दर्शन किए बिना बैरंग लौटा दिया।

By Akhilesh Dimri

विरोध का प्रोटोकॉल भूल गए तीर्थ पुरोहित !

सोशल मीडिया पर देखा कि केदारपुरी में दो नेताओं का खूब बहिष्कार हुआ , वायरल वीडियो में , वापस जाओ वापस जाओ, गो बैक गो बैक चोर है चोर है आदि आदि नारे भी लगाए जा रहे थे, लोकतंत्र की यही खूबसूरती है कि जनता को यदि ऐसा लगता है तो गाहे बगाहे वह ऐसा कह बोल सकती है ।

खैर इस प्रकरण के बाद एक नयी बहस चुपचाप पैर पसारेगी कि मंदिर किसी के निजी नहीं हैं , आप विरोध कर सकते हैं लेकिन किसी को दर्शन करने से नहीं रोक सकते, कोई कौन होता है किसी को दर्शन करने से रोकने वाला ..? जो हुआ वह सही नही ऐसा नहीं किया जाना चाहिए आदि आदि…!

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बिल्कुल सही है जी कि मंदिर किसी के निजी नहीं है किसी को दर्शनों से भी नहीं रोका जाना चाहिए सही बात है क्यों रोकें …? पर जब सवाल इस बात का हो कि जिसे रोका गया वो कौन है ..? उसने ऐसा क्या किया कि उसे दर्शन करने से भी रोक दिया गया तो उसका उत्तर और इस सवाल का उत्तर कि कोई कौन होता है किसी को दर्शन से रोकने वाला ….? का उत्तर कमोबेश एक ही है।

बोर्ड गठन में पुरोहितों को भरोसे में लिया !

मंदिर सदियों से बिना नागा परम्परागत तरीके से व्यवस्थाओं के तहत चले आ रहे है, जिनके लिए जरूरी व्यवस्थाओं को बिना हितभागियों की सहमति किसी व्यक्ति की फजूल की सनक और घमंड के कारण बदल दिया जाए तो विरोध होगा और होना भी चाहिए बल्कि और खुल कर होना चाहिए ।

अब बात उस देवस्थानम बोर्ड की जिसके लिए यह सब विरोध हो रहा है , कहाँ है वो देवस्थानम बोर्ड …? कितनी बैठक हो गयी उसकी …? पिछले डेढ़ सालों की उपलब्धियां क्या है उस बोर्ड की जो यह पर्सेशप्सन बना सकती कि देवस्थानम बोर्ड सच में बेहतर होगा …? हकहुक़ूक़ धारियों से गतिरोध खत्म करने के लिए कितनी बार बोर्ड के अधिकारियों ने चर्चा की …? वे कौन से निर्णय लिए गए जो यात्रियों की सुविधाओं के लिए मील का पत्थर साबित होंगे …? कुछ तो हो जिसे बता कर सरकार कह सके कि देवस्थानम बोर्ड यूँ सही है …!

देवस्थानम बोर्ड की कार्यशैली पर सवाल !

ये वही देवस्थानम बोर्ड है जिसने अपने निकम्मेपन के चलते कोरोना काल में भगवान बद्रीविशाल के कपाट खुलने की तिथियों में परिवर्तन करने पर विवश कर दिया क्योंकि ये निकम्मे रावल जी को सही समय पर केरल से नहीं बुला पाए…? यह वही देवस्थानम बोर्ड है जिसने कोविड 2 के बाद हाल में ही मंदिरों में दर्शन के लिए आन लाइन ई पास को जारी किया और देश के कोने कोने से आये यात्री परेशान होते रहे …? यही वह देवस्थानम बोर्ड है जिसके अधिकारी कोविड काल के बाद माननीय उच्च न्यायालय में प्रस्तुत करने के लिए एक ढंग का जवाब न दे सके …!

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अगर देवस्थानम बोर्ड की असलियत यही है जो दिखाई दे रही है तो एकदम बकवास है यह बोर्ड भंग हो जाना चाहिए इसे या फिर सरकार सिद्ध करे कि इसकी जरूरत क्या है …? यह उपयोगी कैसे है …? इसने कौन कौन से झंडे गाड़ लिए …? वो देवस्थानम बोर्ड जिसमे प्रतिनियुक्ति के नियमों का माखोल उड़ रहा हो और किसी को दिखाई न दे रहा हो केवल लालफीताशाही के लिए बना देवस्थानम बोर्ड …?

पुरोहितों का पूर्व CM को दर्शन से रोकना कितना जायज !

अगर यह सूबा किसी की एरोगेंसी और मूर्खताओं को मौन स्वीकृति देने के लिए बना है तो गलत लगने पर विरोध न हो, अगर इस सूबे में गलत के खिलाफ उठने वाले स्वरों के मूल में मुर्दा हो चुका समाज है तो विरोध न हो लेकिन अगर नहीं तो विरोध जायज है समाज जिंदा है तो विरोध जायज है और होना ही चाहिए ताकि सत्ता के घमंड में डूबे अहंकारी शाशकों को आइने में अपनी असलियत देखने को मिल सके।

सनद रहे विरोध का प्रोटोकॉल नहीं होता क्योंकि वो होता ही तब है जब कि जिसके खिलाफ किया जा रहा हो उसने धैर्य की सारी सीमाओं को पार कर दिया हो, वैसे भी क्रांति याने रिवोल्यूशन का गोल्डन रूल यही है कि देयर इज नो गोल्डन रूल फार रिवोल्यूशन।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और इस आलेख में उनके निजी विचार हैं)

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