By Akhilesh Dimri
Demonetisation Day ये नोटबंदी की पाँचवीं बरसी है,
मैं इस अवसर पर पुराने पांच सौ और हजार के नौटों की शहादत पर उनका भावपूर्ण स्मरण करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
हे प्रश्नगत नोटों ……!
काला धन और विकास के नाम पर पाँच वर्ष पहले आज की तिथि को हुआ।
तुम्हारा सर्वोच्च बलिदान इस मुल्क के लिए नजीर है।
विकास के दीवानों नें भी तुम्हारी इस शहादत का खूब वाचन किया।
तोरण पताकाएँ लगाईं गयी जय जयकार बोली गयी बुलवाई गयी जो गाहे बगाहे आज तक बदस्तूर जारी है।
पर अंत में हुआ ये कि भात भात कहते हुए कोई बच्ची मर गयी।
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हे प्रश्नगत नोटों……!
मैं जिस सूबे का बाशिंदा हूँ वहाँ मुझ जैसे ही कुछ और बाशिंदे अपने नाकारपन की खीज उतारने के लिए,
सरकार और सिस्टम के खिलाफ एक नारा बड़े जोर शोर से लगाते हैं।
शहीदों हम शर्मिंदा हैं तुम्हारे कातिल जिंदा हैं, और इसी सूबे के सत्ताधीश अपने भाषणों में एक बात जरूर कहते हैं
शहीदों के सपनों का उत्तराखण्ड …..!
इन दोनों बातों के सामान ही बेईमानी और नाकारापन मुझे तुम्हारी शहादत के बाद भी दिखाई देती है।
और मातृशक्ति के सम्मान के नाम पर अब तो राजनीति के अर्थशास्त्र में नीड बेस सिद्धांत भी प्रतिपादित हो गया है।
खैर….! हालांकि तुम्हारी शहादत को ढोल पीट कर यह बताने की कोशिश की जाती रहेगी कि ये शहादत इस देश की सबसे नेक शहादत है।
लेकिन जब भी नजरों के सामने भात भात कहते हुए किसी बच्ची के मरने का घटनाक्रम गुजरेगा।
तो अकेले में ही सही पर अपनी शहादत के बाद भी तुम्हे अफ़सोस जरूर होता होगा।
खैर मैं आज के Demonetisation Day की व्यापकता व उपयोगिता देखते हुए इस तिथि विशेष को “सनक जयंती” के रूप में मनाए जाने का अनुरोध करता हूँ।
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