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Making of Sardar! तो गांधी के शिष्य पटेल ऐसे बने ‘सरदार’..!

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By Pramod Sah

(Making of Sardar) ‘भारत रत्न’ वल्लभ भाई पटेल गुजरात के नादियाड में एक किसान परिवार में 31 अक्टूबर 1875 को पैदा हुए थे। वह भारतीय राजनीति और समाज के आकाश में सरदार और लौह पुरुष के नाम से प्रसिद्ध हुए। वह 15 दिसंबर 1950 को दिवंगत होने तक एक ध्रुव तारे की तरह चमकते रहे। बल्लभ भाई (Sardar Vallabhbhai Patel)  महात्मा गांधी से मात्र 6 वर्ष छोटे थे। जिनसे  उनकी 1916 में गुजरात भवन में मुलाकात हुई।

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उस दौरान गांधी ने अहिंसा और ब्रह्मचर्य जैसे उपायों से अंग्रेजों से आजाद होने के उपायों की चर्चा की। फौजदारी मामलों के मशहूर वकील बल्लभ भाई ने अपने मित्र मावलंकर के साथ गांधी की खूब मजाक उड़ाई। जोकि खुद गांधी के प्रशंसक थे।  पटेल ने कहा कि अंग्रेजो के खिलाफ ब्रह्मचर्य और अहिंसा जैसे शस्त्रों से नहीं लड़ा जा सकता। भारत में ऐसी बातें करने वाले महात्मा पहले से ही बहुत हैं।

Making of Sardar ऐसे बने सरदार!

महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi)  से पटेल इस कदर प्रभावित हुए कि 1920 के असहयोग आंदोलन में अपनी चलती वकालत छोड़ दी। उसी साल गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष बने। इससे पहले महात्मा गांधी बल्लभ भाई को खेड़ा में किसान आंदोलन का नेतृत्व दे चुके थे। जहां पटेल खरे उतरे थे। 1928 में बारदोली सत्याग्रह,  किसान आंदोलन पूरी तरह वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में लड़ा गया। जंहा पटेल ने किसानों की संपत्ति को अपने विवेक और चातुर्य से कुडक होने से बचा लिया। साथ ही अंग्रेजों को 22 से 30% तक बढ़ा हुआ लगान वापस करने के लिए विवश कर दिया। जिसके बाद महात्मा गांधी ने गुजरात के किसानों के बीच वल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि से विभूषित किया। (Making of Sardar)

 पहले गांधी के शिष्य, फिर बने आज्ञाकारी बैल!

1917 में महात्मा गांधी ने देश में किसानों के विरुद्ध अन्याय का सबब बने चंपारण में नील आंदोलन का सफल नेतृत्व किया। जिसने अंग्रेजों को कानून वापस करने के लिए विवश किया। जिसके बाद सरदार पटेल महात्मा गांधी से प्रभावित हो गए।

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उस दौरान जब अंग्रेजों के प्रति निष्ठा का प्रस्ताव पास किया जा रहा था। तब महात्मा गांधी ने उस सभा में इस प्रस्ताव को फाड़ कर फेंक दिया। उस घटना ने सरदार को गांधी का ही शिष्य बना दिया। एक वकील के रूप में अपनी जेंटलमैन सूट-बूट वाली छवि को बदलते हुए खादी का कुर्ता पैजामा धारण कर लिया।

पटेल 1929 से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) में राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय हुए। वह 1930 में कंराची अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष बने। जहां सरदार पटेल का रुझान भारतीय परंपरा और धर्म परंपरा में अधिक था। वहीं जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) पश्चिम और समाजवादी विचार के दर्शन से अधिक प्रभावित थे। गांधी ने इन दोनों का भारत की आजादी में बखूबी इस्तेमाल करते हुए अपने दो आज्ञाकारी बैलों की उपाधि दी।

पटेल इसलिए नहीं बन पाए प्रधानमंत्री!

इस कड़ी में 1946 में महत्वपूर्ण कांग्रेस अध्यक्ष का निर्वाचन हो रहा था। उस दौरान अध्यक्ष को ही भारत का प्रधानमंत्री होना तय था। सरदार के पक्ष में प्रांतीय कार्यकारिणी के 15 में से 12 प्रांतों का समर्थन था। जबकि जवाहरलाल नेहरू के पक्ष में कोई भी राज्य कार्यकारिणी नहीं थी।

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लेकिन गांधी ने वल्लभ भाई को चुनाव से बाहर होने के लिए निर्देशित किया। उनका विचार था कि नेहरू अंतरराष्ट्रीय दबावों को बेहतर तरीके से हैंडल कर पाएंगे। जिसे महात्मा के नेहरू के प्रति झुकाव के तौर पर परिभाषित किया गया। आज भी इस पर वाद विवाद रहता है।

रियासतों को भारत में विलय कराकर बने लौह पुरुष!

सरदार पटेल की असली परीक्षा भारत की आजादी के वक्त देसी रियासतों की एकीकरण में होनी थी। महात्मा गांधी के परामर्श से 565 रियासतों को देश में शामिल कराने जिम्मा उन्हें सौंपा गया। जिसे वल्लभ भाई ने एक मिसाल के तौर पर अंजाम दिया।

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अंतरिम सरकार के वक्त 1946 में भारत और पाकिस्तान का बंटवारा तय हुआ। तत्कालीन वॉइस राय लॉर्ड माउंटबेटन समझ चुके थे कि 5 रियासतें भारत के एकीकरण में संकट उत्पन्न करने वाली हैं। जिनमे जम्मू कश्मीर, जूनागढ़, जोधपुर ,त्रावणकोर तथा हैदराबाद शामिल थी। (Making of Sardar)

सरदार ने माउंटबेटन को गलत साबित कर दिया!

लेकिन माउंटबेटन की उस धारणा को  पटेल ने अपने सचिव बी पी मेनन की कूटनीतिक चालों के साथ निर्मूल साबित किया।
भारत के एकीकरण के महान कार्य को अंजाम देने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल ‘लौह पुरुष’ कहलाए। राष्ट्र के एकीकरण और निर्माण की प्रक्रिया में सरदार पटेल अपने स्वास्थ्य की लगातार उपेक्षा की। जिसके परिणाम स्वरूप 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में उनका देहांत हुआ।

लेकिन तब तक वह एक आजाद और मजबूत भारत की मजबूत बुनियाद रख चुके थे। हालांकि दुनिया की सबसे ऊंची आधार सहित 240 मीटर ऊंची पटेल की मूर्ति गुजरात में स्थापित हुई है। जिसकी ऊंचाई से सरदार पटेल के कद को नहीं मापा जा सकता क्योंकि भारतीय राजनीति के आकाश में उनका कद अनन्त है। (Making of Sardar)

(लेखक उत्तराखंड में पुलिस अधिकारी हैं और इस आलेख में उनके निजी विचार हैं )

Photo: साभार/ Fb

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