(Uttarakhand Chintan@25) पुष्कर सिंह धामी Pushkar Singh Dhami) उत्तराखंड के सबसे नौजवान मुखिया बने हैं। उनकी 2025 तक सशक्त और समृद्ध राज्य बनाने की ख्वाहिश है। जिसे पूरी करने के लिए पहाड़ों की रानी मसूरी Mussoorie में ‘चिंतन -मंथन’ की एक महफिल सजी। मुख्यमंत्री के अलावा मंत्री, IAS- IPS समेत राज्य एवं जिलास्तरीय आला नौकरशाह मौजूद रहे। इस मौके पर धामी ने कहा कि अफसरों को फाइलों पर निर्णय लेने की बजाय उलझाने आदत छोड़नी पड़ेगी।
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उनके सुर में सुर मिलाते हुए मुख्य सचिव (CS) एस एस संधू (S S Sandhu) बोले कि फैसला लेने से डरने वाले अधिकारी फाइलों में हां की बजाय नहीं लिखते हैं। संधू ने ऐसे नौकरशाहों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) लेकर घर बैठने की सलाह दे डाली। उन्होंने ताकीद किया कि सरकारी तंत्र में हमें No कहने की तनख्वाह नहीं मिलती। मुख्य सचिव ने कहा कि फाइलों पर चिड़िया बैठाने के खातिर तो क्लर्क ही काफी हैं। उन्होंने अफसरों को अहम छोड़कर समाधान कर्ता बनने का आह्वान किया।
By Akhilesh Dimri
Uttarakhand Chintan@25 के लिए माइंडसेट में बदलाव जरूरी !
पावर पॉइंट प्रजेंटेशन से ज्ञान बघारते कुछेक नौकरशाहों को अगर छोड़ दें तो वह पब्लिक सर्वेंट से ज्यादा कंसलटेंट लगते हैं। दरअसल, ब्यूरोक्रेटिक ढांचे की बुनियादी खामी यही है कि वह अपने बेसिक फलसफे पर भी खरा उतरना नहीं चाहता। चिंतन कैसे करेंगे पर नहीं बल्कि क्यों नही हुआ के मूल सवाल का होना चाहिए। तड़कते भड़कते पावर पॉइंट प्रजेंटेशन को जैसा है वैसा स्वीकार लेना निखालिस बेईमानी है।
सत्ता और नौकरशाही के बीच की दीवार के पीछे चल क्या रहा है? आप चाहे जितना जोर लगा लीजिये, उसे पीछे बैंच पर बैठ कर नहीं समझ पाएंगे। आपको हकूमत का बुलंद इकबाल करके फ्रंट में आकर समझना पड़ेगा। समझदार दुनियां वाले किसी की मौजूदगी को पीछे बैंच पर बैठने से नहीं मापते। आगे बैठकर ही बॉडी लैंग्वेज से पता चलता है कि तिलों में कितना तेल है। सुना है कि उठने, बैठने और पहनने के भी प्रोटोकॉल होते हैं।
तो कुछेक अफसरों ने उम्मीदें जिंदा भी रखी हैं !
अतीत के अनुभवों के मद्देनजर कोई यह भविष्यवाणी नहीं कर पाएगा कि आखिर मसूरी मंथन से अमृत कब मिलेगा। और यह निकलेगा भी या नहीं। इसके इतर नौकरशाही जनता से संवाद को तवज्जो देना शुरू करे तो यकीनन बंद कमरों में पावर पॉइंट प्रजेंटेशन बेस्ड चिंतन की जरूरत पड़ेगी ही नहीं। सूबे में कुछेक अधिकरियों की जिलों में तैनाती के दौरान व्यवहार को लोग याद करते हैं।
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जिसका पिथौरागढ़, उत्तरकाशी के पूर्व एवं पौड़ी के मौजूदा जिलाधिकारी आशीष चौहान (Ashish Chauhan)और पौड़ी के पूर्व एवं नैनीताल के वर्तमान डीएम धीराज गर्बयाल Dhiiraaj Garbyal) उम्दा उदाहरण हैं। इस फेहरिस्त में रुद्रप्रयाग के पूर्व जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल (Mangesh Ghildiyal) भी शामिल हैं। जिन्होंने लगातार संवाद स्थापित करते हुए सरकार को जनता के नजदीक पहुंचाने का काम किया। जो इस नवोदित राज्य की जरूरत है। (Uttarakhand Chintan@25)
चिंतन नहीं जन संवाद से बदलेगी तस्वीर !
नौकरशाहों को छोड़िए मंत्री समेत अन्य जनप्रतिनिधि तक अपने निर्वाचन क्षेत्र से बाहर संवाद और संपर्क में दिलचस्पी नहीं रही है। उत्तराखंड के कुछेक साहेबान का जलवा यूट्यूब और सोशल मीडिया पर जिंदाबाद है। कई नौकरशाह ऐसे हैं जिनके खिलाफ जांच लंबित है। उनकी रिपोर्ट दबाने में माहिर अफसर साहेबान वजीर ए आला की आंखों के तारे बने हैं। फिर चाहे कितने चिंतन शिविर लग जाएं। उसके मंथन से जो भी अमृत निकलेगा, उसकी छीना झपटी तो केवल दो स्तम्भों के बीच में ही होती रहेगी। ये बताने की जरूरत नहीं कि स्तंभ कौन से होंगे।
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मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव ने नौकरशाही की कार्यप्रणाली पर कोई नई बात नहीं कही। पहले भी कई मर्तबा दीगर मौकों पर कहा गया।। इस कड़ी में अभूतपूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत (Tirath Singh Rawat) ने अफसरों की बाबत कहा था कि “भले ही वे नियम कायदों की किताब पढ़ते रहें, लेकिन मैं आवाम के चेहरे पढूँगा”। अब मुख्य सचिव संधू ने माना कि नौकरशाह इगोस्टिक हैं। जिसकी वजह यह कि मौका पड़ने पर सजा देने और समझाने के मौकों को गंवाया ही है। (Uttarakhand Chintan@25)
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(लेखक उत्तराखंड के स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और इस आलेख में उनके निजी विचार हैं)
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