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Parali Burning & Air Pollution: जलती पराली, सुलगते सवाल! जिम्मेदार कौन?

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(Parali Burning & Air Pollution) केंद्र सरकार ने खेतों में पराली जमाने पर जुर्माने की राशि  ₹30000 तीस हजार रुपए तक बढ़ा दी है। हरियाणा सरकार ने पिछले दिनों किसानों की गिरफ्तारी, ‘रेड एंट्री’ और फसल अगले दो साल मंडियों में न बेचने देने सरीखे तुगलकी आदेश जारी कर दिए। जिससे पूरे देश के किसानों आक्रोश है। एक बार फिर उनसे जुड़े संगठन सरकार के खिलाफ गोल बंद हो रहे हैं।

By Dr. Rajaram Tripathi

हरियाणा सरकार  की दमनकारी नीतियां किसानों और सरकार के बीच की खाई पाटने की बजाय बढ़ाएंगीं। इससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होगी, बल्कि उनका आक्रोश भी बढ़ेगा। भाजपा सरकार के तुगलकी मध्यकालीन फरमानों को देखकर लगता है कि नीति-निर्माताओं ने अपना दिमाग खूंटी पर टांग दिया है।

Parali Burning & Air Pollution

बेशक पराली किसी भी हालत में जलाया जाना नहीं चाहिए। यह एक गंभीर पर्यावरणीय मुद्दा है। लेकिन केवल किसानों की गलती मानकर दमनचक्र चलाना भी उचित नहीं है। किसानों के सामने कई जमीनी व्यावहारिक समस्याओं को समझना अत्यंत आवश्यक है। वह धान की कटाई के तुरंत बाद अगली फसल के लिए खेत तैयार करने की जल्दी में होते हैं। यदि पराली को सड़ने के लिए खेत में छोड़ेंगें तो काफी समय लगेगा। जिससे  उन्हें दूसरी फसल का नुकसान होता है।

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किसानों की पराली के प्रबंधन के लिए आवश्यक संसाधनों में निवेश करने लायक आर्थिक क्षमता नहीं है। नॉर्वे के जलवायु विशेषज्ञ एरिक सोल्हेम के मुताबिक “सस्टेनेबल खेती का विकास तभी संभव है जबकि किसानों की आवश्यकताओं के मद्देनजर पर्यावरणीय नीतियां बनाई जाएं। किसान पर्यावरण का दुश्मन नहीं है, इसका साथी है।” यह विचार स्पष्ट करता है कि किसानों को दोषी ठहराने के बजाय उन्हें टिकाऊ समाधान प्रदान करना आवश्यक है।

विकल्पों की खोज और सरकार की भूमिका :

पराली की समस्या के समाधान के लिए किसानों के साथ  विचार-विमर्श करना चाहिए। यह सरकार का दायित्व है कि वह किसानों के लिए हितकारी और व्यवहारिक टिकाऊ विकल्प तैयार करे। उन्हें तकनीकी सहायता, संसाधन और आर्थिक सहायता प्रदान की जानी चाहिए। ताकि पराली जलाने के समुचित विकल्पों को अपना सकें।

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पंजाब और हरियाणा में पहले से कई पायलट प्रोजेक्ट्स भी चल रहे हैं। जहां पराली से जैविक खाद बनाई जा रही है। उसे ऊर्जा के उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन यह समाधान तब तक सफल नहीं होंगे जब तक किसानों को इसका उपयोग करने के लिए पर्याप्त आर्थिक सहायता, जरूरी संसाधन और तकनीकी मार्गदर्शन नहीं मिलेगा।

किसानों को जेल और उद्योगपतियों को बेल?

पराली को पर्यावरणीय मुद्दे से जोड़कर किसानों को जेल में डालने की कठोर दमनात्मक कार्यवाही की जा रही है। लेकिन महानगरों में दौड़ रहे करोड़ों वाहन और विषाक्त धुआं छोड़ने वाले कारखानों के मालिकों को जेल डालने की हिम्मत कौन दिखाएगा? भारी तादाद में कारखाने पर्यावरण के नियमों, ग्रीन ट्रिब्यूनल को छकाते हुए जीवनदायिनी नदियों में गंदगी और जहर उड़ेल रहे हैं। वायुमंडल में लगातार 24 घंटे जहरीला धुआं भर रहे हैं। लेकिन आज तक सरकार ने किसी  उद्योगपति को पर्यावरण के मुद्दे पर जेल में नहीं डाला है।

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चूंकि किसान अकेला है, गरीब है, बेसहारा है, इनमें एकजुटता का अभाव है। उसका चौधरी चरणसिंह जैसा कोई राजनीतिक आका नहीं है। इसीलिए सरकार जब चाहे उसकी गर्दन दबोच लेती है और उस पर लट्ठ बजा देती है। नेताओं के खिलाफ सारे मामलों को राजनीतिक बताकर वापस ले लेती है।  आंदोलनों में जेल गए किसान साथी आज भी जेलों में सड़ रहे हैं। उनकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं है। जिससे किसानों में धीरे-धीरे सरकार के ख़िलाफ़ गुस्सा बढ़ता जा रहा है। आगे चलकर यह स्थिति विस्फोटक हो सकती है।

सर्वमान्य समाधान की आवश्यकता:

पराली की समस्या से छुटकारा पाने के लिए एक सामूहिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। पर्यावरण सुरक्षा और किसानों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित नीति बनाई जानी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ भी मानते हैं कि किसी भी पर्यावरणीय नीति की सफलता तभी संभव है जबकि उसे सामाजिक और आर्थिक रूप से उचित ढंग से लागू किया जाए। किसानों को पराली जलाने के बजाय अन्य विकल्पों पर विचार करना चाहिए। सरकार को कठोर रवैये पर पुनर्विचार करके किसान संगठनों और विशेषज्ञों के साथ मिलकर इस गंभीर समस्या का समाधान खोजना चाहिए।

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(लेखक अखिल भारतीय किसान महासंघ (AIFA) के राष्ट्रीय संयोजक हैं। इस आलेख में उनके निजी विचार हैं।)

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