An Accidental PM डॉ मनमोहन सिंह पारंपरिक या पेशेवर राजनेता नहीं थे। वह पहले एक्सीडेंटल फाइनेंस मिनिस्टर और फिर प्राइम मिनिस्टर बने। लेकिन उन्होंने बेहद शांत स्वभाव से खुद को न सिर्फ एक असरदार बल्कि यादगार ‘सरदार’ साबित किया। बेशक उनके अर्थशास्त्र से भारत एक वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनकर उभरा। डॉ सिंह ने एक विशेष राजनीतिक परिस्थिति में प्रधानमंत्री बनने के बाद कई दलों की एक गठबंधन सरकार का सफल नेतृत्व किया।
By Rahul Singh Shekhawat
भारत 90 के दशक की शुरुआत में विषम अर्थिक मुसीबतों से घिरा था। जिससे उबरने को तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया। उन्होंने आर्थिक सुधारों के तहत इंस्पेक्टर राज को खत्म करके अर्थव्यवस्था को बाजार के लिए खोल दिया।
An Accidental PM of India!
मनमोहन सिंह कांग्रेस के नेतृत्व में 2004 में गठित हुई यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री बने। उनके कार्यकाल में पहली बार देश की जीडीपी ने 8 फीसदी से ऊपर छलांग मारी। मनरेगा, सूचना का अधिकार कानून, किसानों की कर्जमाफी और अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील हुई। उन्होंने अपनी सूझबूझ से भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक आर्थिक मंदी की मार से भी बचाया।
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सभी जानते हैं कि तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी यूपीए संसदीय दल की नेता चुनी गई थी। उन्होंने अपनी जगह मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। लेकिन देश के मतदाताओं ने उनके पांच साल की उपलब्धियों को देखकर ही 2009 के चुनावों में दुबारा जनादेश दिया। फिर खाद्यय सुरक्षा कानून, शिक्षा का अधिकार आया। उनके कार्यकाल में ही आधार आया।
नेहरू ने लोकतांत्रिक बुनियाद रखी, मनमोहन ने आर्थिक तरक्की की लिखी इबारत!
पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद डॉ मनमोहन सिंह कांग्रेस के दूसरे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने लगातार दूसरा कार्यकाल पूरा किया। जहां, नेहरू ने आजादी के बाद लोकतांत्रिक भारत के आधारभूत ढांचे की बुनियाद रखी। वहीं, डॉ सिंह देश के लिए आर्थिक शिल्पकार साबित हुए। उनके अर्थशास्त्र के प्रयोगों से मध्यम वर्ग ने जमीन पर ख्वाब पूरे होते देखे हैं। मध्य वर्ग के अच्छे दिन आए और निम्न अथवा बेहद सामान्य वर्ग को एक बेहतर जीवन की गारंटी मिली। बेशक एक लोकतांत्रिक देश के पीएम के तौर पर नेहरू की अंतरराष्ट्रीय छवि गढ़ी। मनमोहन ने भी बतौर अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री एक ग्लोबल इमेज बनाई।
हालांकि उनके दूसरे कार्यकाल के उत्तरार्द्ध में 2जी स्पेक्ट्रम, कोल ब्लॉक आबंटन समेत अन्य कथित घोटालो की गूंज उठी। बीजेपी और आरएसएस के बैकअप से महाराष्ट्र के समाजसेवी अन्ना हजारे ने कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली में राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ा। जिसे पर्दे के पीछे बीजेपी और आरएसएस का सपोर्ट था। जिससे मनमोहन सरकार की छवि खराब हुई। नतीजतन कांग्रेस को 2014 में शर्मनाक हार का मुंह देखना पड़ा था।
विनम्र सरदार लेकिन दृढ़ता से निर्णय लिए यादगार!
मनमोहन सिंह के सार्वजनिक जीवन की पंजाब यूनिवर्सिटी अर्थशास्त्र के प्रोफेसर से शुरुआत हुई। फिर वाणिज्य और वित्त मंत्रालय में सलाहकार बने। भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर, यूजीसी चैयरमैन, योजना आयोग के उपाध्यक्ष का ओहदा संभाला। वह न सिर्फ वित्त मंत्री, प्रधानमंत्री, राज्यसभा में नेता विपक्ष बल्कि कमोबेश 32 साल राज्यसभा सदस्य रहे। देश ने करीबन दो-तीन दशक तक उनके दस्तखत वाले नोट प्रचलन में देखे हैं। भारत छोड़िए दुनिया में शायद ही किसी दूसरे राजनेता का ऐसा बायोडाटा हो। An Accidental PM
इसके बावजूद एक जुमला बेहद आम रहा कि मनमोहन सिंह तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के कठपुतली पीएम थे। लेकिन उनके निर्णय दृढ़ और स्पष्टता की तस्दीक करते हैं। यूपीए-1 सरकार के कार्यकाल में लेफ्ट ने अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील के मुद्दे समर्थन वापस लिया। लेकिन डॉ सिंह ने सरकार दांव पर लगाकर परमाणु समझौता किया। उन्होंने वाणिज्य मंत्रालय में सलाहकार रहते तत्कालीन मंत्री के साथ मुद्दों पर अडिगता में इस्तीफे की पेशकश की।
डॉ मनमोहन सिंह बोले दुनिया ने गंभीरता से सुना!
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था कि ‘जब मनमोहन सिंह बोलते हैं तो दुनिया सुनती है’। लेकिन भारत के परिपेक्ष्य में उनकी छवि इसके विपरीत बनी। दरअसल, कम बोलना भारतीय राजनीति की अघोषित व्यवहारिक अहर्ताओं में बड़े अवगुण से कम नहीं। मुझे लगता है कि मनमोहन ने खुद को पीएम की जिम्मेदारियों तक सीमित कर लिया। राजनीतिक मामलों पर वोकल नहीं होने से खुद उन्हें और कांग्रेस दोनों को नुकसान हुआ। वह मौके पर तथ्यात्मक बोलते थे। मसलन, उन्होंने ‘नोटबंदी’ के निर्णय को ‘आर्गनाइज्ड लूट’ करार दिया। उनकी जीडीपी में गिरावट की भविष्यवाणी सच साबित हुई।
मोदी में सवालों का खौफ, मनमोहन ने जवाब दिए बेखौफ!
नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री रहते आज तक एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस का साहस नहीं जुटाया। लेकिन मनमोहन सिंह कभी भी तल्ख सवालों और आलोचना का जवाब देने से पीछे नहीं हटे। उन्होंने ‘कमजोर पीएम’ के सवाल पर अपनी आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि ‘हिस्ट्री विल बी मोर काइंडर टू मी देन द मीडिया’। चूंकि एक नायाब शख्सियत के मालिक डॉ मनमोहन सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। लिहाजा अब उनके कथन के आंकलन का वक्त शुरू हो गया है।