Bhopal
ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़कर भाजपा में विधिवत शामिल हो गए हैं। साथ ही 6 मंत्रियों समेत उनके 22 समर्थक विधायक सदस्यता से इस्तीफ़ा दे चुके हैं। जिससे मध्यप्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। भाजपा राज्य के मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम के मद्देनजर नई सरकार के गठन को लेकर सक्रिय हो गई है। सवाल ये उठता है कि क्या मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की जोड़ी कांग्रेस सरकार बचाने में सफल हो पाएगी?
पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का इस्तीफे होते ही कांग्रेस में उनके समर्थक 22 विधायकों ने भी अपनी सदस्यता से सामूहिक त्यागपत्र देने में देर नहीं लगाई। सभी ने अपने इस्तीफे राज्यपाल और स्पीकर को मेल से भेज दिए थे। जिसके चलते मध्यप्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई है। अब सबकी नजरें कमलनाथ और दिग्गीराजा के कौशल पर है। अगर इस्तीफा देने वाले सिंधिया खेमे के विधायक अपने रुख पर कायम रहते हैं तो कमलनाथ सरकार का गिरना तय है।
दरअसल, 230 सदस्यीय मध्यप्रदेश विधानसभा में कांग्रेस के 114 एमएलए हैं। जबकि भारतीय जनता पार्टी के 107 विधायक हैं। सवा साल पहले कमलनाथ के नेतृत्व में 4 निर्दलीय, 2 बहुजन समाज पार्टी और एक समाजवादी पार्टी के समर्थन से सरकार बनी थी। सिंधिया के समर्थक 22 विधायकों के इस्तीफों के बाद कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई है। सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी भाजपा दोनों अपने अपने विधायकों की घेराबंदी करके सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा रही हैं।
कहा जाता है कि मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का कथित तौर पर नियंत्रण रहता है। उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री की रेस से बाहर करके कमलनाथ का ‘राजनीतिक’ कराने में अहम रोल अदा किया था। जिसके बाद से ‘महाराज’ लगातार मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए दबाव बनाते रहे। लेकिन, सिंधिया की इस राह में भी कमल-दिग्गी की जुगलबंदी लगातार आड़े आती रही है। खुद ज्योतिरादित्य 2019 में गुना से लोकसभा चुनाव हारने के बाद पार्टी में अलग थलग से पड़ गए थे।
गौरतलब है कि ज्योतिरादित्य ने मोदी सरकार के धारा 370 हटाने के फैसले जा समर्थन किया था। उसके बाद अपने ट्वीटर हैंडल से कांग्रेस का परिचय हटा दिया था। जिसके बाद से लगातार उनके कांग्रेस छोड़ने और भाजपा से सांठगांठ की अटकलें चल रही थीं। मध्यप्रदेश में हो रहे राज्यसभा सीटों के चुनाव में अपने टिकट की संभावनाएं धूमिल होती देख ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस छोड़कर लंंबे समय से चल रहीं अटकलों को हकीकत में तब्दील कर दिया। इस राजनीतिक घटनाक्रम से कमलनाथ सरकार के भविष्य पर खतरा मंडरा रहा है।
हालांकि खुद मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सदन में बहुमत साबित करने का दम भर रहे हैं। सवाल ये उठता है कि आखिर इस आत्मविश्वास के पीछे क्या आधार क्या है? सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद उनके समर्थक कुछ विधायकों के वापस लौटने की आस है। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस सरकार बच पाएगी। या फिर ज्योतिरादित्य अपनी दादी विजया राजे सिंधिया के डी पी मिश्रा सरकार को गिराने वाले इतिहास को कमलनाथ सरकार को गिराकर अपने नाम दर्ज करने में सफल हो जाएंगे।
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