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कोरोना को हराने के लिए धार्मिक बहस की बजाय मुस्लिम धर्मगुरुओं की मदद ली जाए

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Rahul Singh Shekhawat

मध्यप्रदेश के इंदौर की गलियों में कोरोना के मद्देनजर स्क्रीनिंग करने गई डॉक्टरों की टीम पर पथराव हुआ। उत्तराखंड के नैनीताल में भी कोरोन्टाइन हुए लोगों ने डॉक्टरों के साथ अभद्रता की। इसी तरह बेंगलुरु में आशा वर्करों का विरोध किया गया। उधर, बिहार के मधुबनी और मुंगेर में पुलिस टीम का विरोध। इसी तरह रामपुर समेत कुछेक और ऐसी हरकतें सामने आईं हैं।

ये वाकये दिल्ली में ‘तबलीगी मरकज’ से जमातियों को निकालने के बाद हुए। आखिर कौन हैं ये लोग अपनी मूर्खता से कौम की बदनामी कर रहे हैं? कम से कम दीन को मानने वाले मुसलमान तो नहीं हो सकते हैं। कोई भी दीन से जुड़ी असल जमात तो यह कभी नहीं सीखाएगी। जब एक जानलेवा कोरोना का वायरस ऊंच-नीच और बिना कपड़े देखे ही चिपट रहा है। तो फिर भला इन हालात में ये क्या जाहिलपन है?

जो डॉक्टर अपनी जिंदगी खतरे में डालकर हमारी-आपकी जान बचाने में लगे हैं, आप उन पर हमले कर रहे हो। ऐसा करके ना सिर्फ अपनी और करीबी बल्कि समाज के अन्य लोगों की जान भी खतरे में डाल रहे हैं। मुझे नहीं मालूम इन अक्ल के दुश्मनों को किसने इस तरह जहालत दिखाने के लिए उकसाया होगा।

हो सकता है इसका जवाब ‘तबलीगी जमात’ के मुखिया मौलाना साद के पास हो। लेकिन कोई भी सभ्य और जिम्मेदार समाज इसे बर्दाश्त नहीं करेगा। पहले ही हिन्दू और मुस्लिम दोनों तरफ के कट्टरपंथी खाई बढ़ाने में लगे हैं। ये कड़वी हकीकत है कि इस आचरण से जो खाई बढ़ेगी, उसकी भरपाई मुश्किल होगी। आज अभूतपूर्व संकट इसलिए है क्योंकि कोरोना से मौत के बाद अपनी जगह पर अंतिम संस्कार नहीं करने दिया जा रहा है।

 

हर धर्म में अलग-अलग तरीकों से अपना प्रचार- प्रसार किया जाता रहा है। किताबी तौर पर सभी धर्म नेक नीयत और ईमान की सीख देते हैं। लेकिन कड़वी सच्चाई है कि प्रभावित करने के लिए कट्टरता के बीज बोना अदृश्य हिस्सा रहा है। लेकिन मुझे उदाहरण याद नहीं आते जब मजहबी अंधेपन में डॉक्टरों को ही निशाना बनाया गया हो।

वैश्विक स्तर पर कहर बरपा रहा कोरोना कमोबेश 50 हजार लोगों की जिंदगी निगल चुका है। जिसके प्रकोप से बचने के लिए ‘सोशल डिस्टेंस’ के खातिर भारत में 21 दिन का लॉकडाउन है। जिसकी गंभीरता को समझने की जरूरत है। इस वक्त देशव्यापी लड़ाई इस जानलेवा बीमारी के मंसूबों को एकजुट होकर हराने की है।

ऐसे में समय जरूरी है कि मुस्लिम समाज के धर्म गुरु, मौलाना समेत हर वो शख्स आगे आए, जिनकी बात समाज में सुनी जाती है। इस कड़ी में मशहूर शायर राहत इंदौरी ने लोगों से अपील की है। फतेहपुरी मस्जिद और देवबंद समेत अन्य ने फतवा दिया है कि मस्जिद में नमाज के समय पांच से ज्यादा लोग न हों, लोग घरों में ही नमाज पढ़ें।

सियासी विवादों से दूर रहने वाले मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कुरान का हवाला देते हुए बड़ी संजीदगी से अपील की है। मीडिया को भी मरकज के घटनाक्रम की आड़ में पूर्वाग्रही ‘पॉलिटिकल नैरेटिव’ बनाने से बचना चाहिए। सिरे से उस पुरी कौम को सर्टिफिकेट नहीं दे सकते जहां ‘भारतरत्न’ ए पी जे अब्दुल कलाम और ‘परमवीर चक्र’ वीर अब्दुल हमीद पैदा हुए। हमारे भटकने और धर्म आधारित घृणा भाव से कोरोना को हराने की जंग कमजोर होगी।

(लेखक जाने माने टेलीविजन पत्रकार हैं)

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