Rahul Singh Shekhawat
राजस्थान के जयपुर में कैंसर पीड़ित राजेंद्र की मौत हो गई। चूंकि घर में कोई और नहीं था लिहाजा मोहल्ले के मुसलमानों ने अंतिम संस्कार करवाया। वो बकायदा ‘राम नाम-सत्य है’ कहते हुए अर्थी को कंधे पर ले गए। जयपुर में ना तो गंगा और ना ही जमुना बहती है। लेकिन लॉकडाउन में ‘गंगा-जमुनी’ तहजीब की नायब मिसाल निकलकर सामने आई।
वो भी तब जबकि कोरोना महामारी की आशंका में ही अपनों की लाश लेने इंकार करने के किस्से सुनने में आ रहे हैं। जानलेवा कोरोना के इस दौर में हर दिन दिलचस्प वाकये सामने आ रहे हैं और मुमकिन है कि आगे भी आएं। जिंदगी जीने की मियाद तो तयशुदा होती है। लेकिन इंसानियत कभी नहीं मरती, चाहे उसे मारने की कितनी कोशिशें की जाएं।
अगर आप एक आस्तिक भारतीय हैं तो स्वाभाविक रूप से श्रीराम आपके लिए भगवान हैं। आप नास्तिक भी हैं तो भी उनके ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ चरित्र को एक आदर्श समाज का सिंबल मान सकते हैं। मेरी एक सामान्य के हिसाब से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने विचारों से श्रीराम के इस पक्ष को ईमानदारी के साथ आगे किया।
शायद यही वजह रही कि उनकी सभा में ना सिर्फ हिंदू बल्कि मुसलमान समेत अन्य सभी शिद्दत के साथ रामधुन ‘रघुपति राघव राजा राम….’ गाया करते थे। लेकिन आजादी के बाद शुरू हुई राम की सियासी नीलामी के बाद हालात बदलते गए। आज कोरोना के दौर में फौरी तौर पर ही सही किंतू भारतीय समाज की अनायास विविधता समग्रता परिलक्षित हुई है।
दरअसल, भारतीय समाज का मूल चरित्र यही रहा है। मुझे बचपन की याद है जब दुआ-सलाम के रूप में ‘राम-राम जी’ चलन में था। लेकिन 80 से 90 के दशक के बीच राम-नाम की सियासी तिज़ारत शरू हुई। हालत ये हो गए कि सियासत के एक कोने में हिचक तो दूसरे में उसके नारे को बेचने की शुरुआत हो गई।
अगर बात यहीं खत्म हो जाती तो भी गनीमत थी, बदकिस्मती से उन्हें लादने की सियासी फितरत ने जन्म ले लिया। खैर छोड़िए आज की बात पर ही वापस आता हूं! जिस समाज में जय श्रीराम के जयकारे लगते रहे हों। वो आज कोरोना की दहशत में एक हिंदू के अंतिम संस्कार आने से कतरा रहा है।
जबकि इंसानियत के तकाजे पर मुसलमानों को अपने पड़ोसी के मरने पर ‘राम नाम-सत्य है’ कहते हुए कंधे पर अर्थी ले जाने पर कोई एतराज नहीं है। बहरहाल, अभी कोरोना युग में बहुतेरी नई बातें सामने आएंगी। लिहाजा मायूसी छोड़िए हिम्मत के साथ सामना कीजिए। इस महामारी से निपटने के बाद समाज के नए आयाम सामने आएंगे।
(लेखक जाने माने टेलीविजन पत्रकार हैं)
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