Rahul Singh Shekhawat
क्या ग्वालियर के ‘महाराज’ ज्योतिरादित्य सिंधिया का अब भारतीय जनता पार्टी से मोहभंग होने लगा है? या फिर यह मध्यप्रदेश में उपचुनाव के मद्देनजर चहेतों को टिकट के लिए दबाव की रणनीति का हिस्सा भर है। इन संभावनाओं के बीच असली सच क्या है ये तो महाराज ही जानते होंगे। लेकिन उनके ट्विटर एकाउंट के प्रोफाइल पर भाजपा का ज़िक्र ना होना ट्रेंड करने लगा।
दरअसल, पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के ट्विटर अकाउंट पर जनता का सेवक और क्रिकेट प्रेमी लिखा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि उनका भाजपा में ‘महाराज’ बनने का ख्वाब अब टूटने लगा है। वैसे कयास ये भी हैं कि यह मध्यप्रदेश में उपचुनाव में टिकटों के मद्देनजर समर्थक की अनदेखी के मद्देनजर उनकी ‘प्रेशर बिल्डिंग एक्सरसाइज’ हो सकती है। इन दोनों ही सम्भावनाओं को सिरे से तो खारिज नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कि इसके पहले सिंधिया ने कांग्रेस में रहते अपनी कथित उपेक्षा से नाराज होकर अपने ट्वीटर प्रोफाइल से राजनीतिक परिचय हटाकर जनता का सेवक और क्रिकेट प्रेमी ही लिखा था। जिसके बाद वह विधिवत रूप से मार्च में भाजपा में शामिल हो गए। इसी कड़ी में उनके समर्थक 6 मंत्रियों समेत 22 कांग्रेस विधायकों ने इस्तीफे दे दिए थे। जिसकी परिणति स्वरूप मध्यप्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिर गई।
जिसके बाद शिवराज सिंह चौहान नेतृत्व में भाजपा सरकार बन गई। उधर, ज्योतिरादित्य सिंधिया को फौरन राज्यसभा का उम्मीदवार बना दिया गया। लेकिन इस बीच कोरोना संकट काल शुरू हो गया। हालांकि, सरकार के शपथ ग्रहण के एक महीने बाद चौहान की सरकार में उनके समर्थक तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत को मंत्री बनाया गया। लेकिन कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे बाकी 4 लोग शपथ के मुहर्त का इंतजार कर रहे हैं।
मध्यप्रदेश में कई बार मंत्रिमंडल विस्तार की खबरें आईं लेकिन अंदरूनी खींचतान के चलते ये मुमकिन नहीं हो पाया। उधर, भाजपा में सिंधिया विरोधी खेमा उन पर निशाने साधने लगा है। यहां तक कि भावी उपचुनाव में उनकी बजाय शिवराज के चेहरे पर चुनाव लड़ने जैसे भी बयान आए। सिंधिया पर 6 पूर्व मंत्रियों समेत इस्तीफा देने वाले कांग्रेस के सभी बागी 22 पूर्व विधायकों को टिकट दिलवाने का नैतिक दबाव है।
कहने की जरूरत नहीं है कि पिता माधव राव सिंधिया की असमय मौत के बाद ज्योतिरादित्य पहले कांग्रेस के टिकट पर सांसद निर्वाचित हुए और फिर मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री बने। पहले वह मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में वापसी के बाद मुख्यमंत्री की रेस में पिछड़े। फिर 2019 के आम चुनाव में मध्यप्रदेश की अपनी परंपरागत ‘गुना’ सीट से हार गए।
जिसके बाद ज्योतिरादित्य पीसीसी चीफ बनने और फिर राज्यसभा टिकट के ख्वाहिशमंद थे। लेकिन कथित तौर पर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की सियासी जुगलबंदी में उसकी गुंजाइश कम थी। उस लंबी रस्साकशी के बीच महाराज ने बीती होली के दिन भाजपा का दामन थाम लिया।
सिंधिया खुद मोदी सरकार में मंत्री बनने का इंतजार कर रहे हैं। वजह ये कि उन्होंने फकत राज्यसभा में बैठने के लिए ही तो कमलनाथ सरकार नहीं गिरवाई। वहीं इस्तीफ़ा देने वाले सभी पूर्व मंत्रियों को शिवराज कैबिनेट में जगह मिलने पर कोहरा छटा नहीं था। अब उपचुनाव में टिकट मिलने पर ही आशंका जताई जा रही है। इस बीच मध्य प्रदेश में एक पूर्व सांसद और उनके पिता के बालसखा कहे जाने वाले एक पूर्व मंत्री कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं।
ज्योतिरादित्य भाजपा में ‘महाराज’ का वो रूतबा हासिल करते नजर नहीं आ रहे जो कभी कांग्रेस था। वैसे भी मोदी-शाह को छोड़ दें तो भाजपा के सिस्टम में किसी एक व्यक्ति विशेष का हावी होने आसान नहीं। अब सवाल ये उठता है कि क्या वह मौजूदा हालात से समझौता करने को तरजीह देते हुए ‘वेट एंड वाच’ की रणनीति अख्तियार करेंगे
या फिर महाराज किसी अन्य राजनीतिक विकल्प पर विचार करेंगे। एकदम तो वापस कांग्रेस का रुख करना व्यवहारिक नहीं लगता। ऐसे में क्षेत्रीय पार्टी की हिम्मत जुटाना एक विकल्प बचता है। जैसे कभी उनके स्वर्गीय पिताजी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से मतभेद होने पर मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस बनाई थी। इस विकल्प पर तो उन्हें कांग्रेस छोड़कर अपनी पहचान भाजपा में विलीन करने से पहले सोचना था।
हालांकि, खुद ज्योतिरादित्य ने बिना कुछ कहे ट्वीट करके लिखा है कि झूठी खबरें सत्य से ज्यादा जल्दी फैलती हैं। बेशक उन्होंने ट्विटर पर कयासबाजी का अप्रत्यक्ष खंडन कर दिया है। लेकिन इसके बावजूद भी ये याद रखना होगा कि राजनीति उन सम्भावनाओं का खेल है, जहां ना कोई स्थायी मित्र होता है और ना ही दुश्मन। फिलहाल राज्य के उपचुनाव में टिकट वितरण और मंत्रिमंडल विस्तार पर नजर रखनी होगी।