News Front Live, Dehradun
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत को समझना बहुत मुश्किल है। वह अक्सर फेसबुक एवं ट्वीटर से मिसाइल दागते रहते हैं। दिलचस्प बात ये कितने कई बार ये अंदाज लगाना बहुत मुश्किल है कि उनके निशाने पर सरकार है या खुद अपनी पार्टी के लोग। कहने की जरूरत नहीं है कि इन दिनों हरदा PCC चीफ प्रीतम सिंह और नेता विपक्ष डॉ इंदिरा हृदयेश के निशाने पर हैं।
इस कड़ी में उन्होंने अपने अधिकृत एकाउंट पर पोस्ट करते हुए लिखा कि, ‘मैं एक राजनैतिक नर्तक हूं। सत्यता यह है कि, जितने चुनाव जीता हूं, अब उससे एकाध ज्यादा हार गया हूं, यदि इसमें मेरी नेतृत्व में हुई हार को जोड़ लिया जाय, तो हार की संख्या एकाध ज्यादा निकलेगी। घुंगरू के कुछ दाने टूट गये, तो इससे नर्तक के पांव थिरकना नहीं छोड़ते हैं।
सामाजिक और राजनैतिक धुन कहीं भी बजेगी, कहीं भी संगीत के स्वर उभरेंगे, तो हरीश रावत के पांव थिरकेंगे। समझ नहीं पा रहा हूं कि, किस मंदिर में जाऊं और कौन सा नृत्य करूं कि, मेरे खबरची भाई, मेरे उत्तराखंड के भाई-बहन, अपने-पराये, सबको मेरा नृत्य अच्छा लगे, खैर कोरोनाकाल में मैं, नृत्य की उस थिरकन को खोज कर रहा हूं।’
साफ है कि रावत अपनी हार-जीत का जिक्र करते हुए खुद को राजनीतिक नर्तक कह रहे हैं। जिसका सार ये है कि वह हारें या जीतें लेकिन नाचना यानी राजनीति नहीं छोड़ेंगे भले ही हारते हुए कुछ घुंघरू टूट गए हों। लेकिन जब हरीश का ये कहना कि समझ में नहीं आ रहा कि किस मंदिर में नाचने जाकर नृत्य करूं सस्पेंस पैदा करता है।
क्या हरीश रावत खुद कांग्रेस में विरोधी खेमे से असहज हैं। या फिर नया राजनीतिक विकल्प बनाने की सोच रहे हैं। हरदा के मन मे क्या है ये तो वो ही जाने लेकिन ऐसा करेंगे उसमें संदेह है। वजह ये कि उनके हाथों से दो बार उत्तराखंड की सत्ता फिसली लेकिन कांग्रेस से अलग नहीं हुए। जो भी रावत के पास शब्दों का खजाना है और इशारों में ही अपने और परायों को असहज करते रहते हैं।
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