News Front Live, Nainital/Dehradun
कहने की जरूरत नहीं है कि नैनीताल अपनी सुंदर झीलों के लिए देश और दुनिया में मशहूर है। वैसे तो इस जिले में कई छोटी-बड़ी झीलें हैं। लेकिन सरोवर नगरी की नैनी लेक सबके आकर्षण का केंद्र है। देश और विदेश के सैलानी तो उसे निहारने आते रहे हैं। लेकिन अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की भी इस झील पर नजर है।
दरअसल, इसरो सुदूर संवेदी संस्थान (IIRS) के सहयोग से नैनीताल शहर में सतही नैनी झील की गहराई (depth mapping), जैवविविधता और पेयजल की गुणवत्ता केे विश्लेषण करने के काम को अंजाम दे रहा है। जिसके तहत CCTV कैमरों से झील में गिरने वाले नालों व कचरे पर नियंत्रण की निगरानी की जा रही है। इसके लिए 2 कंट्रोल रूम बनाए गए हैं।
दरअसल, संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने पिछले साल स्थानीय प्रशासन को 50 लाख दिए थे। जिसके तहत नैनीताल नगर पालिका को 2 बोट मुहैया कराई गईं। सरोवरनगरी में स्थित 2 कंट्रोल रूम से झील में गिरने वाले नालों व कचरे की CCTV कैमरों से निगरानी करते हैं। बेशक इससे सरोवर नगरी की शान नैनी झील में नालों के जरिये गिरने वाले कचरे में कमी आई है। हालांकि ये नहीं कहा जा सकता कि इस पर पूरी तरह रोक लग गई।
उधर, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ट्वीट किया है कि ‘नैनीताल विभिन्न झीलों की सुंदरता के लिए दुनियाभर में मशहूर है। नैनीताल की सबसे प्रमुख नैनी झील का पहली बार आंतरिक प्रोफाइल विकसित किया जा रहा है। ISRO व सुदूर संवेदी संस्थान (IIRS) के सहयोग से झील की depth mapping, जैवविविधता व पेयजल गुणवत्ता का विश्लेषण किया जा रहा है। झील में गिरने वाले नालों व कचरे पर नियंत्रण की 13 CCTV कैमरों व 2 कंट्रोल रूम से निगरानी की जा रही है।’
आपको बता दें कि बीते 90 के दशक में नैनीताल में ग्रुप हाउसिंग का चलन शुरू हुआ था। इसके साथ ही शहर में अवैध निर्माण में बेतहाशा इजाफा हुआ। इस कड़ी में कंस्ट्रक्शन मैटीरियल समेत अन्य तरह का कचरा नालों के जरिए झील में समाता गया। जिससे इस खूबसूरत झील के पानी की पारदर्शिता और आंतरिक पारिस्थिकीय तंत्र बुरी तरह गड़बड़ाया। इस कड़ी में साल 2004-05 के बाद झील संरक्षण परियोजना के तहत देश में पहली बार नैनी लेक में ‘एरियेशन’ विधि का सहारा लिया गया। जिसके सुखद परिणाम देखने को मिले थे।
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