By Narayan Bareth
उस शिकागो रेडियो को !यूँ तो नानक मोटवानी एक व्यापारी थे,लेकिन मोटवानी ने अपनी तिजारत को जंगे आज़ादी के नाम समर्पित कर दिया।1942 की बात है। गाँधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया। वतनपरस्ती हिलोरे मारने लगी।उसी वक्त सेनानियों को अपनी बात पहुंचाने के लिए रेडियो की जरूरत महसूस हुई। उसके लिए नानक मोटवानी ने उपकरण का बंदोबस्त किया।
सहसा तरंगों से आकाशवाणी हुई – ये कांग्रेस रेडियो है ,आप 42 . 34 मीटर से भारत में किसी स्थान से सुन रहे है।ये स्वर उषा मेहता के थे। वे उस वक्त 22 साल की थी। गांधी को देख कर खुद को स्वाधीनता संग्राम के नाम कर दिया/ अंग्रेज परेशान हो गए। पर कुछ वक्त तक इस भूमिगत रेडियो का पता नहीं चला। वे जगह बदल बदल कर प्रसारण करते रहे। इस काम में डॉ लोहिया और सुचेता कृपलानी जैसे लोग भी लगे हुए थे।सबके नाम बदल गए गए। कृपलानी बहन जी और लोहिया को डॉक्टर नाम मिला।लेकिन वही हुआ जिसका अंदेशा था। किसी अपने ने जासूसी कर दी। सब पकड़े गए। उषा मेहता चार साल जेल में रही। नानक मोटवानी को एक माह जेल में काटना पड़ा।ये प्रसारण सारे जहाँ से अच्छा से शुरू होता था और वंदे मातरम से विराम देता था।
नानक सिंध के लरकाना में पैदा हुए ,फिर व्यापार उन्हे और परिवार को सक्खर ,कराची और फिर मुंबई ले आया।उनका टेलीफोन उपकरणों का काम था। वे गांधी से अभिभूत थे। वे देखते कि गांधी और स्वाधीनता सेनानी सभाओ में बोलते है तो उनकी वाणी ठीक से लोगो तक नहीं पहुंचती/ मोटवानी ने लाउडस्पीकर सिस्टम का काम हाथ में लिया। जब बापू लाउडस्पीकर से अवाम से मुखातिब हुए ,आवाज का जादू दुगना हो गया। बापू ने मोटवानी की जमकर तारीफ की।1931 में कांग्रेस का कराची अधिवेशन होना था। उसमे पूर्ण स्वराज्य का आह्वान किया गया। खुद पटेल ने मोटवानी से आग्रह किया कि लाउडस्पीकर का काम आपको देखना है।मोटवानी से इतना अच्छा इंतजाम किया कि स्थानीय अखबारों में तारीफ हुई।
मोटवानी इस काम को इस क़दर डूब कर करते थे कि छोटी छोटी चीज खुद देखते थे। इसके लिए देश भर में 200 कर्मचारी रखे। जहां भी आयोजन होता ,शिकागो रेडियो हाजिर रहता।यह सिलसिला 30 साल चला। हर माह करीब छह आयोजन होते। मोटवानी नेहरू ,गाँधी ,पटेल सबके दुलारे हो गए / शिकागो रेडियो एक पहचान और प्रतिष्ठा बन गया। मोटवानी इसके लिए कोई पैसा नहीं लेते थे। 1960 के बाद पहली बार उन्हें पैसा देना शुरू किया गया।
इतिहास ने जब कुछ अहम घटनाओं को दर्ज किया तो उसमे शिकागो रेडियो हाजिर रहा। नेहरू का 14 /15 अगस्त ,1947 के दिन नियति से साक्षात्कार Tryst with Destiny सम्बोधन दुनिया के बेहतरीन भाषणों में शुमार किया जाता है।तब टैलिप्राम्प्टर नहीं होता था/ नेहरू के सामने रेडियो शिकागो ही था। 1959 में रामलीला मैदान में अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर के सम्बोधन में भी यही शिकागो रेडियो था।लता जी ने ‘ए मेरे वतन के लोगो गाया तो जरिया यही रेडियो शिकागो बना।
आज विश्व रेडियो दिवस है।हम मोटवानी और उनके परिवार को हजार हजार सलाम भेजते है / ये इतिहास के वो उजले किरदार है,जिनका उल्लेख आते ही सिर श्रद्धा और सम्मान से झुक जाता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पूर्व में लंबे समय तक BBC में कार्यरत रहे। इस आलेख में उनके निजी विचार हैं)
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