By Narayan Bareth
दुनिया आज कार्टून दिवस मना रही है। भारत में राजनैतिक कार्टून का खासा महत्व रहा है। शंकर को भारत में कार्टून विधा का पितामह माना जाता है और आर के लक्ष्मण ने इस विधा को और आगे बढ़ाया। देश में अखबारों की संख्या बढ़ गई ,पन्ने भी बढ़ गए। लेकिन कार्टून ओझल होते जा रहे है। वो भी ऐसे वक्त जब कार्टून गढ़ने के लिए सियासत में बहुतेरे किरदार मौजूद है। शायद कार्टून के लिए माहौल साज़गार नहीं है।
हिंदुस्तान में आपातकाल को छोड़ कर आमतौर पर कार्टून कला के लिए कोई दिक्क्त नहीं रही। यहाँ तक कि ब्रिटिश राज के दौरान भी कार्टूनिस्टों को खुली हवा में सांस लेने का मौका मिलता रहा। बेशक, अंग्रेज हुकूमत अखबारों को निशाने पर रखती थी। मगर कार्टूनिस्ट आज़ाद पंछी थे। ऐसे ही एक कार्टूनिस्ट ने वाइसराय को निशाने पर ले लिया। अंग्रेज हाकिम खफा नहीं हुआ। बल्कि उसने दूसरे दिन एक दूत भेजकर कार्टूनिस्ट को शुक्रिया कहा।
शंकर की कूंची नेहरू और अम्बेकडर को निशाने पर रखती रही। कहते है शंकर ने कोई डेढ़ हजार सियासी कार्टून बनाये। इनमे से कोई चार सो में नेहरू का उपहास था। मगर नेहरू कभी खफा नहीं हुए। वरन एक बार किसी समारोह में शंकर को देखते ही नेहरू ने तारीफना अंदाज में कहा ‘शंकर ,मुझे कभी मत बख्शना ! अब इतना ही फर्क आया है कि नेता एक कार्टूनिस्ट को देखते ही कहेंगे ,इसको कभी मत बख़्शना ! नेहरू ने शंकर के सम्मान में कहा’ ” एक अच्छा कार्टूनिस्ट महज हास्य ही पैदा नहीं करता बल्कि वो किसी घटना को गहराई से देखता है और लकीरो के प्रहार से लोगो को प्रभावित करता है”
”.For a true cartoonist is not just a maker of fun, but one who sees the inner significance of an event and by a few master strokes, impresses it upon others ”
उस दौर के कुछ तीखे और प्रहारी कार्टूनो को NCERT की पाठ्य पुस्तकों में जगह मिली। ताकि विद्यार्थी सबक समझ सके।मगर इस पर कोई हंगामा नहीं बरपा। शंकर ने जब अपनी 27 साल पुरानी ‘शंकरस वीकली ‘ पत्रिका पर पर्दा गिराया, इंदिरा गाँधी ने उन्हें भावपूर्ण खत लिखा। कहा ‘अब हम उस उम्दा सामग्री से महरूम रहेंगे’। पर क्या कर सकते है ? यह आपका फैसला है। इमर्जेन्सी में कार्टून छटपटाते रहे। आर के लक्ष्मण के एक कार्टून चित्र को जब्त कर लिया गया।उन दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति गेराल्ड फोर्ड भारत आने वाले थे।लक्ष्मण ने अपनी कूंची से उन्ही का खाका बना दिया। सरकार को नागवार लगा। लक्ष्मण ने राजीव गाँधी और अडवाणी पर खूब कार्टून बनाये। मगर ये कभी खफा नहीं हुए। अलबत्ता उस वक्त के मुख्य मंत्री मोरारजी देसाई जरूर एक कार्टून पर भड़क गए थे ।
अबू अब्राहम ने इंदिरा गाँधी पर खूब कार्टून बनाये, फब्तियां कसी। मगर उन्हें राज्य सभा में भेजा गया। सुधीर तेलंग राजस्थान के थे। एक बार उन्होंने कही जिक्र किया। बोले ‘यह कंधार विमान अपरहण की बात है। विदेश मंत्री जसवंत सिंह को अफ़ग़ानिस्तान भेजा गया। उन्होंने सिंह को तालिबानी लिबास में चित्रित किया। तेलंग तब हैरान हुए जब खुद सिंह ने फोन किया और मूल कार्टून देखने की इच्छा जाहिर की। बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी को सख़्त मिजाज माना जाता है। तेलंग ने कही उल्लेख किया। बोले जोशी जी ने फोन किया और नाराजगी व्यक्त की ,कहने लगे छह माह हो गए ,उन पर एक भी कार्टून नहीं ।
लगता है भारतीय नेताओ ने खुद पर हंसने का सलीखा खो दिया है। भले ही लोग उन पर हँसते रहे। एक बार ममता बनर्जी एक कार्टून पर भड़क गई और कार्टूनिस्ट को बंद करवा दिया। मेरे जैसे पाठक सुबह अख़बार देखते ही सबसे पहले कार्टून पर नजर डालते है। मगर अब कार्टून का दर्जा और दायरा घट रहा है।जब कार्टून नहीं दिखते है तो मेरे जैसे लोग सियासत की सभा महफ़िल और सम्मेलनों में जाकर तस्सली कर लेते है। वहां कुछ ऐसे किरदार मिल जाते है कि आपका काम चल जाये। राजस्थान में अभी बहुत अच्छे नाम है। जैसे सुधीर गोस्वामी,वाणी ,अभिषेक तिवारी ,सुधाकर,कमल किशोर, चंद्रशेखर। और भी कई नाम है।शरद शर्मा दिल्ली में हाथ आजमा रहे है।
स्व. लक्ष्मण कहते थे ‘कार्टून और रेखाचित्रों के लिए भारत से बेहतर कोई देश नहीं है। मुझे लगता है आप सभी हमारे इन असरदार नेताओ को उपहास और हास्यपूर्ण ढंग से आइना दिखाने पर खुश होते है।
लक्ष्मण को कौए बहुत पसंद थे। कहते थे कौए बहुत बुद्धिमान होते है ,मुझे सियासत में कौए जैसे किरदार कहाँ मिलेंगे। स्व लक्ष्मण तो अब नहीं है। पर क्या यह इत्तेफाक ही है कि कौए घट गए है और नेता बढ़ गए है।
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(नारायण बारेठ राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार हैं। वह लंबे समय तक BBC से जुड़े रहे। इस आलेख में उनके निजी विचार हैं)