By Rahul Singh Shekhawat
EWS Quota सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को दिए जा रहे आरक्षण Reservation के हक में फैसला सुनाया। है। चीफ जस्टिस समेत पांच सदस्यीय पीठ ने 3-2 बहुमत के आधार पर फैसला दिया है। यह मोदी सरकार के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण देने के फैसले पर न्यायिक मुहर है।
सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने पूर्व में रिजर्वेशन सीलिंग लिमिट 50 प्रतिशत से ज्यादा करने से इंकार किया था। लेकिन अब उससे ज्यादा आरक्षण देने को तैयार हो गया। कहीं यह फैसला आगे विभिन्न जातीय समूहों को अपनी मांग मनवाने का राजनीतिक आधार तो नहीं बनेगा!
EWS Quota पर सुप्रीम मुहर!
हालांकि मुख्य न्यायाधीश (CJI) सहित दो जज ईडब्ल्यूएस को आरक्षण के हक में नहीं थे। वह एससी, एसटी और ओबीसी को इसकी कैटिगरी से बाहर करने के खिलाफ थे। हालांकि ऐसा करने पर दोहरे आरक्षण की पेचीदा स्थिति भी पैदा होती। जो व्यवहारिक तौर पर उचित नहीं।
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आपको बता दें कि 8 लाख रुपए से कम आमदनी वाला परिवार ईडब्ल्यूएस के दायरे में आता है। पांच एकड़ से कम कृषि योग्य भूमि और 1000 वर्ग फीट से कम आवासीय घर होना चाहिए। नगर पालिका क्षेत्र में 100 और गैर अधिसूचित क्षेत्र में 200 गज से कम का प्लॉट हो।
गौरतलब है कि पिछड़े वर्ग में भी आठ लाख रुपए से ज्यादा आय वालों को आरक्षण का लाभ का नहीं मिलता। उसके उपर क्रीमी लेयर (Crimy Layer) में गिनती होती है। मतलब ओबीसी और आर्थिक आधार पर गरीब सवर्णों की ‘इंकम सीलिंग’ एक समान है। क्या भविष्य में सभी आरक्षण पर क्रीमी लेयर की परिभाषा का क्राइटेरिया एक हो सकता है?
आरक्षण के बावजूद असमानता बरकरार!
पहले संविधान ने अनुसूचित जाति (SC) के लिए 15 और जनजाति (ST) को 7.5 फीसदी आरक्षण दिया। फिर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था हुई। जिसके पक्ष और विपक्ष में हमेशा बहस होती रही है। कथित तौर आरएसएस पृष्ठभूमि के लोग अप्रत्यक्ष विरोध में रहे। इसके बावजूद मोदी सरकार ने संविधान के 103 वे संशोधन के तहत 2019 में ईडब्ल्यूएस रिजर्वेशन देकर चुनावी दांव खेला।
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संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर ने समाज के वंचित और शोषित तबके के लिए दस साल के लिए आरक्षण व्यवस्था की। जिसकी अवधि पूरी होने पर हर सरकार आगे बढ़ाती रही। फिर अटल बिहारी के कार्यकाल में प्रमोशन में रिजर्वेशन लागू किया गया। इसके बावजूद आरक्षित वर्ग में शामिल सभी जातियों को एक समान लाभ नहीं मिला। आखिर कोटा सिस्टम बेमियादी तो नहीं रह सकता! क्या इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं है?
रिजर्वेशन सीलिंग बढ़ाने से उठेंगी नई मांग!
अगर सीधा सपाट कहें तो 49.5 प्रतिशत आरक्षण पहले ही था। अब सुप्रीम कोर्ट ने गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसदी पर मुहर लगा दी। दोनों को मिलाकर 59.5 आरक्षण हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने ‘ईडब्ल्यूएस कोटे’ के पक्ष में फैसले में चाहे जो तर्क दिए हों। लेकिन पूर्ववर्ती इंदिरा साहनी केस के निर्णय में खुद उसकी बनाई 50 फीसदी सीलिंग लिमिट खत्म हो गई।
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सवाल उठता है कि कहीं यह फैसला जातीय समूहों को अपनी मांग मनवाने का राजनीतिक आधार तो नहीं देगा! सभी जानते हैं कि जाट, गुर्जर, मराठा और पाटीदार समाज आरक्षण को लेकर आंदोलन कर चुके हैं। पिछड़े वर्ग की सियासत पर टिके बिहार और यूपी के क्षेत्रीय दल ‘जातीय जनगणना’ चाहते हैं।
आरक्षण व्यवस्था की समीक्षा की जरूरत!
बेशक आज भी सदियों से शोषित एक बड़े दलित तबके, पिछड़े और जनजाति को आरक्षण की जरूरत है। लेकिन ये भी कड़वी हकीकत है कि उन्हें दिए गए आरक्षण से कुछेक जातियों को ज्यादा फायदा हुआ। फिर कालांतर में कथित सवर्ण समाज भी आर्थिक तौर पर कमजोर हुआ। जिसके चलते यूपीए सरकार के कार्यकाल में ‘ईडब्ल्यूएस कोटा’ की कवायद शुरू हुई थी।
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इस पर कोई एकमत नहीं हो सकता है कि आरक्षण का आधार जातिगत हो या आर्थिक पिछड़ापन। लेकिन उसकी संवैधानिक व्यवस्था लागू होने के बाद भी बरकरार असमानता और क्रीमी लेयर की समीक्षा होनी चाहिए। बहरहाल न्यायालय के विवेक पर सवाल खड़े नहीं किए जा सकते हैं। लेकिन EWS Quota पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से समाज में एक नई बहस जरूर छिड़ेगी।
(लेखक वरिष्ठ टेलीविजन पत्रकार हैं)