असुरक्षित, असंगठित, गरीब मजदूरों की विवशता का बेशर्म-क्रूर मज़ाक़!
Srikant Saxena किसी तरह चालीस बयालीस दिनों तक अपनी रोज़ी-रोटी से लेकर गांठ की अंतिम पाई तक गंवाकर और शायद कुछ दिन अपनी ग़ैरत को भुलाकर दूसरों के फेंके रोटी के टुकड़ों पर गुज़र-बसर करने के बाद श्रमदेवता आख़िर अपने गाँव चल पड़े। पैदल या फिर टूटी-फूटी साईकिल पर, परिवार समेत,सैकड़ों मील का सफर तय … Read more