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टेढ़ी नजरनजरिया

We the Indian: तो अब ज्यादा ‘उत्सवधर्मी’ हो गए हैं….. हम भारत के लोग!

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By Rahul Singh Shekhawat

सुना है सदाबहार फ़िल्म अभिनेता देव आनंद साहेब कहते थे कि मेरी मौत कोई रोयेगा नहीं और ना ही कोई आंसू बहाएगा। लगता है आज कोरोना ने उनकी आखिरी ख्वाहिश जरूर पूरी कर ही दी होगी। मैं दावा नहीं कर सकता कि मरने वालों के परिजन मातम में आतिशबाजी और पटाखों का शोर सुनकर खुश हुए होंगे।

वैसे सदाबहार देव साहब की मौत संभवतः लंदन में हुई थी। लिहाजा नहीं मालूम कि उनके परिजन रोए थे या कि नहीं। लेकिन, आज देश में कोरोना से मरने वाले लोगों को न्यू इंडिया में राष्ट्रीय स्तर पर अद्भुत सामाजिक सलामी तो मिल ही गई। जिसे देखकर लगता है कि हम भारत के लोग अब और ज्यादा ‘उत्सवधर्मी’ हो गए हैं।

इन दिनों दुनिया के साथ भारत भी जानलेवा वायरस कोरोना से एकजुटता के साथ लड़ रहा है। प्रधानमंत्री ने निराशा के अंधकार से बाहर निकलने के लिए ने दीये जलाने का आह्वान किया। मोदी की एक आवाज पर लोगों ने देश को जगमगा दिया। लेकिन उत्साही लोगों ने आतिशबाजी और पटाखे भी जमकर फोड़े।

क्यूं झूठ बोलूं खुद नरेंद्र मोदी ने ‘दिवाली’ मनाने के लिए नहीं कहा था। कहीं मशाल जुलूस निकाला तो कहीं पर सामुहिक रूप से ‘गो-कोरोना’ कहकर वायरस को डराया। ‘जनता कर्फ्यू’ की सफलता पर ‘घंटा-थाली’ शोभा यात्राएं निकाली गईं। जिसे देखकर लगता है कि हम भारत के लोग अब ‘उत्सवधर्मी’ हो गए हैं।

बेशक, भारतीय संस्कृति में दीया जलाने में कोई बुरी बात नहीं है। लेकिन सवाल उठता है कि खुद सरकार ने कोरोना को महामारी घोषित किया है। जब वायरस से मरने वालों का आंकड़ा शतक बनाने को तैयार है तो फिर देश में ये ‘कोरोना उत्सव’ कैसा? बेशक नकारात्मकता सही नहीं होती लेकिन एकबार अपने परिवेश में जरूर सोचिएगा।

इस देश की हौसले के दम पर बड़ी चुनौतियों से पार पाने की पुरानी तासीर रही है। वजह ये है कि तमाम आपसी विरोध के बावजूद हम एकजुट हो जाते हैं। ये भी सच है कि नरेंद्र मोदी ‘कलयुग’ की 21 वी सदी में राजनैतिक ‘अवतार’ से कम नहीं हैं। उनमें एक आवाज पर जनमानस को इकठ्ठा करने की विलक्षण क्षमता है।

लिहाजा कोरोना कुछ लोगों की जिंदगी लेकर देर सवेर चला भी जाएगा। लेकिन मुझे डर है कि कहीं ये बेमौसमी उत्सवधर्मिता का रोग मनुष्यता को ना निगल जाए। आपने कहा दीया जलाओ और लोगों ने आतिशबाज़ी कर डाली। ये कौन सी क्रोनोलॉजी है, आप ही जानो। लेकिन इसमें मनोविकार के लक्षण नजर आते हैं।

हर दिन कोरोना संक्रमित मरीजों और उससे मौत का मीटर तेज हो रहा है। साफ है कि आने वाला वक्त देश के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण होने जा रहा है। प्रधानमंत्री पर भरोसे का मतलब ये तो नहीं हुआ कि वो महामारी से निपटने के इंतजामों पर बात ही ना करें। कोरोना कोई एक ‘इवेंट’ नहीं बल्कि जानलेवा बीमारी है।

हमारी गंभीरता का आलम ये है कि जनता कर्फ्यू का एलान करने तक वेंटिलेटर औऱ मास्क समेत अन्य उपकरणों का निर्यात जारी था। जबकि पड़ोसी चीन समेत दुनिया में कोरोना से ‘त्राहिमाम’ था। लेकिन बिडम्बना है कि हमारा अब भी घंटा-थाली शोभायात्रा और मशाल जुलूस पर जोर है।

(लेखक जाने माने टेलीविजन पत्रकार हैं)

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