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गरीबों के लिए ‘लॉक डाउन’ और अमीरों के लिए ‘दरियादिली’… !

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अगर सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन जैसा असाधारण कदम उठाया तो उसके पीछे ठोस वजह थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के मुताबिक 3 मई तक देशव्यापी रहेगी। लॉक डाउन में फंसे छात्र, निजी और असंगठित क्षेत्र के लोग अपनी-अपनी सरकारों से घर पहुंचाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन ये क्या? इसका प्रोटोकॉल अमीर और गरीब के लिए जुदा हो गया।

पहली तस्वीर राजस्थान के कोटा शहर की है, जहां पढ़ने वाले उच्च एवं मध्यवर्गीय बच्चों को लॉकडाउन में उनके गृह राज्य ले जाने की मोहलत मिल जाती है। जिसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश सरकार के प्रयासों से हुईं।

दूसरी तस्वीर एक 12 साल की आदिवासी बच्ची ‘जमालो मकदम’ की है। जो लॉकडाउन में अपने परिवार के साथ तेलंगाना से छत्तीसगढ़ पैदल निकलती है। लेकिन पिछले दिनों बीजापुर जिले में स्थित अपने गांव से करीब 12 किलोमीटर पहले ही दम तोड़ देती है।

तीसरी तस्वीर लॉकडाउन में फंसे गुजरात के अघोषित विशेष दर्जा प्राप्त लोगों की है। जिनकी उत्तराखंड सरकार AC बसों के जरिए सेफ ‘होम डिलीवरी’ सुनिश्चित कराती है।  खुद अपने प्रदेश के लोगों को कथित तौर पर हरियाणा के जंगलों में छोड़ने की खबरें आईं।

चौथी तस्वीर उत्तर प्रदेश की है। जहां भाजपा के राज्यसभा सांसद जी वी एल नरसिम्हा लॉकडाउन में मसीहा के रूप में सामने आए। वो वाराणसी में फंसे अपने लोगों को AC बसों में बैठा कर आंध्र प्रदेश पहुंचाने में सफल हो जाते हैं।

पांचवी तस्वीर लॉकडाउन के दौरान कर्नाटक में देवगौड़ा परिवार के शाही विवाह समारोह की आंखों के सामने तैरती नजर आती है।

तस्वीरे का छठा प्रकार  लॉकडाउन में फंसे वो लोग हैं जो अपने परिजनों के दाह संस्कार में नहीं शामिल हो पा रहे हैं। वीडियो कॉल से चिता से उठती लपटों को देखकर वहां होने का अहसास करते हैं।

लेकिन इन सबसे जुदा लॉकडाउन की सातवीं तस्वीर  उत्तराखंड की है, जहां भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने की इजाजत मिल जाती है। जबकि अन्यत्र फंसे लोगों को लेकर राज्य सरकार की कोई स्पष्ट राय नजर नहीं आती।

और बाकी बहुतेरी  तस्वीरें तो आपने दिल्ली औऱ अन्य महानगरों में देखी ही होंगी। बदहवास दिहाड़ी मजदूर सिर पर पोटली औऱ कंधे पर अपने ‘बाबू’ को बिठाए, सड़कों पर हजारों मील पैदल चले जा रहे थे। एक ही जुनून था बस किसी तरह गांव पहुंच जाएं। ताकि अगर महामारी के दौर में मौत मयस्सर हो तो कम से कम अपने लोगों के बीच तो रहें।

दरअसल, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोटा में फंसे छात्रों को लाने की शुरुआत की थी, जो बदस्तूर जारी है। जिसके बाद बाकी राज्यों की सरकारों पर दबाव बढ़ गया। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तो बकायदा कहा था कि केंद्र को इस मसले पर एक रुख अपनाना चाहिए था।

जबकि बिहार के मुखिया नीतीश कुमार अप्रत्यक्ष रूप से इसके पक्ष में नहीं रहे। जाहिर है लॉक डाउन में जहां-तहां फंसे लोगों के मन में इन अघोषित अलग-अलग कायदे कानूनों को देखकर आक्रोश होगा।

(Photo-फ़ाइल)

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