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अर्थव्यवस्था

Economy: अतीत के गलत निर्णय और जिद से लगातार गिर रही अर्थव्यवस्था !

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By Pramod Sah

अगर भारतीय अर्थव्यवस्था में पिछले दो-तीन सालों से आ  बुरी खबरों के बीच कुछ पुराने प्रयोगों पर नजर डालें तो एक ऐसे जिद्दी मरीज की तरह नजर आती है। वह डॉक्टर से अपनी शर्त पर इलाज करवाना चाहता है और ठीक होने के लिए किसी परहेज को मानने के बजाय मर्ज बढ़ाने के ही उपाय करता है। फिर फायदा ना देख ईलाज के पुराने पर्चे, एक्स-रे रिपोर्ट ,सी.टी स्कैन का बंडल लेकर नए डॉक्टर की बैंच पर धंस जाता है। अपने को स्वस्थ दिखाने का जतन करता है।

आईए उस मर्ज की कहानी 8 नवंबर 2016 से समझते हैं। जब मरीज ने डॉक्टर को तमंचे पर डिस्को करा दिया, दिन के 11:00 बजे कहा कि नोटबंदी का फैसला किया जा चुका है। दस्तखत करो डॉक्टर भी जिद्दी था और उसने कहा शुगर के पेशेंट को मैं रसगुल्ला नहीं लिख सकता। मरीज ने कहा रसगुल्ला मुझे पसंद मैं खाऊंगा ही खाऊंगा। लिखो – लिखो डॉक्टर ने कंपाउंडर से पर्ची पर दस्तखत करा दिए। उसका क्लीनिक पर बने रहना अब असंभव था सो डाक्टर ने क्लीनिक छोड़ दी। डॉक्टर पर दवा कंपनियों से मिलने का आरोप लगाया गया।

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उस दस्तखत के परिणाम अब आ चुके हैं 99.3 मुद्रा के हिसाब देने के बाद हिसाब किताब बंद कर दिया। जबकि 22 हजार कोऑपरेटिव बैंक का, नेपाल जिंबाब्वे भूटान से माल आना बाकी है। नेपाल से खटपट का यह भी एक कारण है। जिस तीन लाख करोड़ की जाली मुद्रा को बाहर करने की बात थी 6 लाख करोड़ से ज्यादा हमारे खून में घुस गई। मौद्रिक तरलता यानी नकद रुपए में लगभग 40% की बढ़ोतरी हो गई। बाकी क्या कहना। अब नए डॉक्टर पसंद के लाए गए .. उर्जित पटेल । डॉक्टर तो डॉक्टर होता है दवा तो कड़वी देगा ।

 

अब 2017 में मरीज को पंचकर्म की सलाह दी गई और जुलाई  में भारत को फिर आधी रात नई आजादी का आवाह्न मिला। कर लो दुनिया मुठ्ठी में की तर्ज पर हजारों साल से शिल्पकारों, दस्तकारों और किसानों की मिश्रित और असंगठित अर्थव्यवस्था में सब कुछ संगठित कर राजकोष की आमद दिन। दिन दूनी-रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ाने का संकल्प करटे हुए GST लाया गया। 165 साल पुरानेे कर के सिद्धांत में भी कोई बड़े जाहिर दोष नहीं है। लेकिन दवा देने से पहले मरीज की भौगोलिक परिस्थिति तो देखने की अनदेखी की गई।

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मौर्य साम्राज्य में ‘श्रेणी’ फिर कालांतर में शिल्पी और शिल्पग्राम ग्राम की अवधारणा के साथ ग्रामीण श्रम, कला और दस्तकारी को लगातार भारतीय अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनाए रखा गया था। आधुनिक भारत में असंगठित क्षेत्र कहलाया जो वर्किंग हैंड का 95% था । उसे संगठित करने की धुन ने जीएसटी के इंजेक्शन ने सुन्न कर दिया।  मझौले, छोटे दुकानदार , कुटीर उद्योगों ने अपने शटर गिरा दिए। तब हम यह भूल गए पश्चिम के देश जब कच्छा भी नहीं पहनते थे। तब से हम व्यापार और व्यापार कर की बात करते रहें हैं । हम यह जानते हैं कि जब भी किसी राजा ने कर को तिभागा किया यानी 30% से ऊपर किया तो वहीं का मजदूर किसान राजा के आगे भी खडा हो गया।

 

दुनिया की सबसे बड़ी कर दर 28 फीसदी भारत देश में लागू होने के बाद एक इतिहास बन गया। आप डॉक्टर की तब भी नहीं मान रहे थे। घर में जमा पूंजी से माल निकालने की सलाह उसने नहीं मानी और वह भी चल दिया। फिर तुमने मीठी गोली देने वाले डॉक्टर अर्थशास्त्र में इतिहास का आदमी बैठा कर नया कीर्तिमान बना दिया। कड़वा तुम्हें नहीं पसंद था। एक के बाद एक, डाक्टर भागते गए। भागने वाले डॉक्टरों में अरविंद सुब्रमण्यम अरविंद पनगढ़िया जैसे बड़े नाम जुड़ गए। इधर मर्ज भी लगातार बढ़ता गया।

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कभी नाड़ी देख ईलाज करने वाले आसमानी पगड़ी के सुषैन वैद्य को लोग याद करने लगे। वेद जी ने जब 2004 में अर्थव्यवस्था की नस पकड़ी थी तब उसका साइज 709.1 बिलियन डॉलर था। वह  3 साल में 40 फीसदी बढ़ा कर उसे ट्रिलियन में ले आया। अब गाना बज रहा ना ट्रिलियन-ट्रिलियन। उसमें वैद्य का बड़ा योगदान है । 2007 में 1.217 लाख डालर कर दी। वह जिन्हें 2014 विदाई के मात्र 7 साल की एफडी में इसे दुना 2.039 ट्रिलियन डालर करके 5 ट्रिलियन का स्वप्न देखने लायक बना कर क्लीनिक छोड़ी ।

 

बहरहाल, अब हमारे 2.8 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य से पीछे जाने की संभावना बन गई है। कोरोना ने हमें तगड़ा झटका देते हुए 23.9 फीसदी घटा दिया। दुनिया के और देश भी घटे हैं लेकिन उतना नहीं जितना कि हम। हमें नहीं गिरना चाहिए था क्योंकि हमारा आधार आज भी असंगठित क्षेत्र है। जिसकी खेती किसानी बुनियाद है। दुनिया मे सर्विस सेक्टर पर आधारित अर्थव्यवस्थाओं के घटने के कारण है। लेकिन हमारा सबसे बड़ा कारण हमारी जिद है।

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हमारे मर्ज का इलाज होना चाहिए, जल्दी होना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि डाक्टरों का पैनल बनाया जाए ।फिलहाल 4-6 डॉक्टर जो हमें दिखते हैं उनसे जरूर बात होनी चाहिए। वैसे हमारी कौन सुनेगा लेकिन अगर फिर भी सुनो तो अभिजीत बनर्जी, अरविंद सुब्रमण्यम, अरविंद पनगढ़िया, रघुराम राजन, उर्जित पटेल सबको दिखाओ। सब को बैठाकर सीटी स्कैन, एमआरआई सबकी रिपोर्ट दिखाओ तब बढ़िया पर्चा बनाओ। वरना तो हरि अनंत हरि कथा अनंता ‘एक्ट ऑफ गॉड’ है ही।

 

(लेखक उत्तराखंड पुलिस सेवा UPS के अधिकारी हैं और इस आलेख में उनके निजी विचार हैं)

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