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उत्तराखंड

Muzaffarnagar तिराहा कांड: उत्तराखंड आंदोलन में पुलिसिया बर्बरता की दास्तां!

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By Rahul Singh Shekhawat

देश और दुनिया 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर उन्हें शिद्दत से याद करती है। लेकिन उत्तराखंड में इस रोज राज्य आंदोलन के दर्दभरे जख्म हरे हो जाते हैं। दरअसल साल 1994 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश UP पुलिस ने मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) तिराहे पर राज्य आंदोलकारियों पर गोली चलाईं, जिसमें 7 शहीद हुए और दर्जनों घायल हुए। इतना ही नहीं, उत्तराखंड आंदोलन को कुचलने के लिए औरतों के साथ बलात्कार भी किया गया।

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अहिंसा के पुजारी बापू के जन्मदिन पर घटित हुआ यह शर्मनाक वाकया हमेशा के लिए काला अध्याय हो गया। उससे कहीं ज्यादा अफसोस कि बात ये है कि राज्य गठन के दो दशक बीतने के बाद भी मुजफ्फरनगर तिराहा कांड के किसी दोषी को सजा नहीं मिल पाई है। जबकि BJP – Congress के बीच बारी-बारी सत्ता जरूर बदलती रही। दिलचस्प बात ये है कि इस दरम्यां क्षेत्रीय उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) भी दो सरकारों का हिस्सा रह चुका है।

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ये दर्दभरी दास्तां 1 और 2 अक्टूबर 1994 की रात्रि की है जब आंदोलकारी दिल्ली कूच कर रहे थे।  लेकिन उत्तर प्रदेश की पुलिस को अहिंसावादी आंदोलन मंजूर नहीं था।तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार की गुलाम पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए मुजफ्फरनगर तिराहे पर फायरिंग कर दी। कसूर सिर्फ इतना ही था कि वो यूपी से अलग एक पृथक पहाड़ी राज्य (Hill State) की मांग बुलंद करने के लिए देश की राजधानी स्थित जंतर मंतर जा रहे थे।

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लेकिन पुलिसिया दमन की दास्तां आंदोलनकारियों को तीतर बितर करने के लिए गोलियां चलाने पर ही खत्म नहीं हुई। आंदोलनकारियों में शामिल महिलाओं की इज्ज़त तक लूटी गई। अहिंसा के पुजारी के ‘Bapu’ के जन्मदिन पर जब उत्तराखंडी जनमानस सुबह उठा तो इस कांड की खबर ने अंतर्मन को झकझोर कर रख दिया। इस तरह देश और दुनिया 2 अक्टूबर को बापू की जयंती मनाती है। लेकिन उत्तराखंड के हर साल पुराने जख्म हरे हो जाते हैं।

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आपको बता दें कि उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी संघर्ष समिति ने 1995 के दौरान Allahabad Highcourt में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की थी। जिसने उस क्रूर अध्याय की जांच सीबीआई CBI को सौंपी। इस कड़ी में मुजफ्फरनगर में उसकी कोर्ट का गठन किया गया। लेकिन तारीख पर तारीख केे सिलसिले से ज्यादा आगे नहीं बढ़ सकी। सीधे सपाट कहें तो मुजफ्फरनगर तिराहा कांड के गुनहगारों को सजा नहीं हो पाई।

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इस कड़ी में आंदोलनकारी रविंद्र जुगरान ने 2018 में फिर एक पीआईएल दायर करके CBI से दस्तावेज और रिपोर्ट मंगाए जाने की गुहार लगाई। उससे बड़ी तकलीफ ये है कि मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को सजा दिलवाना सूबे की सत्ता में काबिज रही कांग्रेस-भाजपा की सरकारों की कभी प्राथमिकता नहीं नजर आई।  राज्य आंदोलन की अगुवाई करने वाली UKD  ने भी सत्ता की चाशनी चाटने के बावजूद शहीदों के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई।

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उधर, आंदोलकारियों के एक तबके की लड़ाई पेंशन और सुविधाओं तक सीमित हो गई। दरअसल, ये वो हालात हैं जिनके चलते मुजफ्फरनगर तिराहा कांड को अंजाम देने वाले गुनाहगार 26 साल बाद भी आजाद हैं। अलबत्ता सरकार, विपक्ष और आंदोलनकारी संगठन इस काले अध्याय की बरसी पर हर साल मुजफ्फरनगर के शहीद स्मारक पर श्रद्धांजलि की रस्मअदायगी करते आ रहे हैं।

(लेखक जाने माने टेलीविजन पत्रकार हैं)

 

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