By Rahul Singh Shekhawat
नीतीश कुमार ‘निवाला’ बने ! बिहार में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और लोकजनशक्ति पार्टी (LJP) की नूराकुश्ती को देखकर तो यही लगता है। अभी तक चिराग पासवान NDA का हिस्सा हैं। लेकिन उन्होंने नीतीश के जनता दल यूनाइटेड (JDU) के खिलाफ उम्मीदवार उतारे हैं। वह खुलकर कह रहे हैं कि विधानसभा के चुनाव परिणाम आने के बाद लोजपा और भाजपा की सरकार बनेगी।
जबकि बीजेपी और जेडीयू साथ चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं नीतीश कुमार एनडीए के मुख्यमंत्री पद का चेहरा हैं। अगर बिहार में राजग अथवा महागठबंधन में किसी को बहुमत नहीं मिला। तो कांग्रेस-भाजपा छोड़कर क्षेत्रीय स्तर पर अन्य दलों के उलट-पलट से इंकार नहीं किया जा सकता। इन हालात में लालू-रामविलास की गैरमौजूदगी में पहला चुनावी दंगल दिलचस्प हो गया है।
नीतीश कुमार निवाला बने, भाजपा का निपटाने का गेम प्लान !
कहने की जरूरत नहीं है कि नीतीश ने पूर्व में नरेंद्र मोदी के विरोध में NDA छोड़ा था। वह 2015 में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस के साथ चुनाव लड़के महागठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री बने। लेकिन लालू प्रसाद यादव परिवार पर कथित भ्रष्टाचार के मामलों की आड़ में ‘सुशासन बाबू’ फिर BJP के साथ चले गए। सियासी हलकों में उस पैंतरेबाजी का बदला लेने की चर्चा है। भाजपा की चिराग को आगे करके नीतीश से हिसाब चुकता करने की रणनीति है।
ये है नीतीश कुमार को कमजोर करने की थ्योरी
थ्योरी ये है कि विधानसभा में BJP अकेले सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे। इस कड़ी में ‘वोट कटुआ’ के तौर पर पासवान की LJP का सहारा लिया गया। ताकि जनता दल यूनाइटेड को नुकसान पहुंचाया जाए। गौरतलब है कि चिराग ने बीजेपी के सामने प्रत्याशी उतारने से परहेज किया। भाजपा ने रणनीति के तहत VIP सरीखी पार्टी को अपने कोटे से सीटें दी हैंं।
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ये भी कम दिलचस्प नहीं कि उसके पोस्टरों में नीतीश कुमार गायब रहे। हालांकि पहले चरण के लिए मतदान से पूर्व लगा दिया। लब्बोलुआब ये है कि ‘सुशासन बाबू’ को विधानसभा में संख्याबल के तौर पर कमजोर कर दिया जाए। फिर सरकार बनाने को जरूरत पड़ने पर नए सिरे से ‘पोस्ट पोल अलायंस’ किया जाए। हालांकि सवाल ये भी बनता है कि नीतीश को हराकर भाजपा अपना नुकसान क्यों करेगी।
लेकिन नीतीश भाजपा की मजबूरी हैं !
भाजपा के आत्मविश्वास का आधार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता है। जबकि कमजोरी राज्य में मुख्यमंत्री के तौर सशक्त चेहरे की है। पार्टी हमेशा नीतीश के ‘नायब’ रहे सुशील मोदी के चेहरे पर दांव नहीं खेल सकती। इसलिए उसे NDA के फेस के तौर पर चुनाव के दौरान नीतीश कुमार की जरूरत है। बावजूद इसके कि 15 सालों की एन्टी इमकंबेंसी है। लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों का गुस्सा अलग रहा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शायद ही कभी इस कदर सियासी चक्रव्यूह में फंसे हों।
तो चुनाव के बाद NDA बिखर जाएगा !
बेशक भाजपा ने जोर देकर कहा कि सीट चाहे कम आए या फिर ज्यादा। नीतीश कुमार ही बिहार में एनडीए सरकार के CM बनेंगे। मान लीजिए भाजपा सिंगल लार्जेस्ट पार्टी बनकर उभरे। साथ ही जेडीयू की सीट ज्यादा घट जाएं। तो क्या भाजपा अन्य पार्टियों को साथ नहीं लेगी?
अगर RJD विधानसभा में सबसे ज्यादा विधायक जीतकर आएं तो सरकार बनाने का प्रयास नहि करेगा। हां ये तय है कि Congress और भाजपा एक पायदान पर नहीं आएंगे। वैसे भी इन दो दलों को छोड़कर बाकी पूर्व में एक दूसरे के साथ रहे हैं। त्रिशंकु जनादेश की स्थिति में पाला बदल से इंकार नहीं किया जा सकता।
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बहरहाल, चुनाव पूर्व सर्वे एनडीए सरकार की वापसी बता रहे हैं। लेकिन महागठबंधन के चेहरे तेजस्वी यादव की रैलियों में भीड़ से होश फाख्ता हैं। आमतौर पर संयमित रहने वाले नीतीश कुमार की झुंझलाहट इसकी बानगी है। इसलिए सियासी हलकों में बहस हैै कि पहली बार नीतीश कुमार निवाला बने हैं।
(लेखक जाने माने वरिष्ठ टेलीविजन पत्रकार हैं)
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