By Dr Pramod Pahwa
O My God ! बेशक किसी भी तरीके की मनसुआत या नशा हराम है, शराब उसमें अव्वल नंबर पर समझी जा सकती है।
मगर कुछ हलकों मे कभी कभी कसम तोड़ना मजबूरी बन जाती है।
विदेशी यात्राओं और डिप्लोमेटिक मेल मुलाक़ातो के दौरान wine उसका अहम हिस्सा होती है।
सिर्फ ईरान, सऊदी या अफगानिस्तान जैसे कुछ मुल्को को छोड़कर ( सड़क पार वाले भी परहेज नहीं करते )इनमे अक्सर वाइन परोसी जाती है।
जिसमे नशा नहीं होता और स्वाद ऐसा होता है जैसे हमारे घरो की बासी छाछ का होता है।
क्योंकि हमे कभी पसंद नहीं आई तो हम बिस्मिल्ला करके गिलास बदल लेते थे।
वोडका हुई तो ठीक नहीं तो जो भी हो।
सभी का स्वाद और नशा अपने अपने देश के हिसाब से अलग अलग होता है,
यूरोप का एक देश है सर्बिया जिसका एक ब्रांड है “राकीजा”
इसका स्वाद तो कोई खास नहीं होता मगर खोपड़ी पर ऐसे चढ़ती है जैसे अपने यहां की शुद्ध देशी या संतरा मस्त वगैरहा।
कभी कभी बदमाशी करते हुए कुछ डिप्लोमेट चुन्निया खींचने के उद्देश्य से डार्क रूम में प्रेजेंटेशन से पहले इसका स्वाद चखा देते हैं।
कमजोर दिमाग़ नेता हो और अक्ल से कमजोरी के साथ साथ कायर भी हो,
तो अक्सर गलती से इसे बासी छाछ समझ कर गटक तो जाता हैं।
लेकिन फिर डार्क रूम में देखी गई फिल्म से उसको अपनी तबियत का ख़्याल रखने की नौबत जरूर याद आ जाती है।
O My God! श्रद्धेय अटल जी की इस संदर्भ मे जितनी प्रशंसा की जाये कम है।
वजह सर्बिया और उसकी राकीजा भी उनके सामने घुटने टेक कर तोहफा हाजिर कर देती थी।
इसलिए विदेश सेवा वालों को बहुत चुस्त दुरुस्त और किसी भी हालत से निपटने का प्रशिक्षण दिया जाता है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और इस आलेख में उनके निजी विचार हैं)
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