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Nitish U turn: ‘विकल्पहीन’ नीतीश का फायदा या विपक्ष की संजीवनी !

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By Rahul Singh Shekhawat

Nitish U turn एक बार फिर नीतीश कुमार बिहार में एनडीए से अलग होकर महागठबंधन का हिस्सा हो गए हैं। उन्होंने राजद समेत अन्य दलों के समर्थन से 8वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। तेजस्वी यादव Tejashwi Yadav दूसरी बार उनके नायब यानि डिप्टी सीएम बने। कांग्रेस Congress, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा HUM आदि सरकार में शामिल हैं। जबकि भाकपा माले समेत वामपंथी Left दल को बाहर से समर्थन दे रही हैं। 2024 से पहले हिंदी बेल्ट के बिहार Bihar में हुई सियासी उठापठक के दूरगामी मायने हैं।

Nitish U turn: तो इसलिए हुए BJP से अलग!

दरअसल, बीजेपी पिछले विधानसभा चुनावों में चिराग पासवान Chirag Paswan को मोहरा बनाकर JDU की ताकत घटाने में कामयाब हो गई।  उसने चुनाव पूर्व वादे के मुताबिक नीतीश को मुख्यमंत्री तो बना दिया। लेकिन कथित तौर पर जेडीयू को तोड़ने की साजिश रच रही थी। जिसके लिए Modi Cabinet में मंत्री रहे आरसीपी सिंह RCP Singh को मोहरा बनाया गया। जिसे बखूबी भांप चुके नीतीश कुमार खुद पर नकेल कसने से लगातार असहज थे।

पिछले दिनों महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे Uddhav Thackeray के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार गिराई गई। बीजेपी की सरपरस्ती में एकनाथ शिंदे ने शिवसेना में विभाजन को अंजाम दिया। चर्चा उठी कि अगला नंबर बिहार Bihar का है। जहां जदयू में तोड़फोड़ करके भाजपा नीतीश कुमार को निवाला बनाएगी। इस कड़ी में जे पी नड्डा राज्य में कार्यकर्ताओं के बीच क्षेत्रीय पार्टियों के सिमटने का दावा करते नजर आए। लेकिन ऐसा होने से पहले ही नीतीश NDA से नाता तोड़कर दुबारा महागठबंधन में शामिल हो गए।

हालांकि एनडीए से अलग होने की पृष्ठभूमि की झलक रोजा अफ्तार के वक्त दिखी। उसके पहले जातीय जनगणना के मुद्दे पर भी नीतीश और तेजस्वी की जुगलबंदी नजर आई। तयशुदा शेड्यूल के हिसाब से देश में 2024 में आम चुनाव होने हैं। फिर 2025 में बिहार विधानसभा के चुनाव भी होंगे। सीधे तौर पर कहें तो बीजेपी शासित सूबों की फेहरिस्त कम हो गई। लेकिन इसके इतर हिंदी बेल्ट के बड़े राज्य बिहार में सियासी उठापठक के दूरगामी मायने हैं।

मोदी शाह की दुखती रग है बिहार !

वजह ये कि बिहार में राज्यसभा की 16 सीटें हैं और लोकसभा में निर्वाचित 40 सांसद MP पहुंचते हैं। बेशक भाजपा ने राज्य में संख्याबल के हिसाब से बड़ा विस्तार तो कर लिया। लेकिन वह गठबंधन के बिना सरकार बनाने की स्थिति में नहीं पहुंच पाई है। आरएसएस RSS के नेटवर्क और मजबूत संगठन के बावजूद राज्य पर भगवा राजनीति Safron Poltics का रंग में नहीं चढ़ सका। उल्टे नीतीश कुमार के चेहरे पर निर्भरता रही है।

भले ही भाजपा उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी SP और बहुजन समाज पार्टी BSP को कमजोर करने में सफल हो गई। लेकिन बिहार की राजनीति की धुरी 1990 से समाजवादी पृष्ठभूमि के लालू यादव और नीतीश के इर्द गिर्द घूमती रही है। पाला बदल के बावजूद नीतीश की व्यक्तिगत छवि बेदाग है, वहीं तेजस्वी यादव लालू की छाया से बाहर निकलते हुए युवाओं में खासे लोकप्रिय हुए हैं। यकीनन चुनावी जीत की गारंटी बन चुके मोदी शाह की जोड़ी को ये दर्द सालता ही होगा।

नीतीश फिर पलटी मारेंगे !

सब जानते हैं कि लालू परिवार के कई सदस्यों पर भ्रष्टाचार के केस चल रहे हैं। जिसे आधार बनाकर नीतीश ने साल 2017 में महागठबंधन छोड़ा था। लिहाजा सवाल है कि क्या वह तेजस्वी के साथ सहज रह पाएंगे? राजद ने सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद नीतीश को सीएम स्वीकार किया है। जिसके एवज में वह मंत्रिमंडल में ज्यादा हिस्सेदारी चाहेंगे। वहीं, कांग्रेस और जीतनराम मांझी के नेतृत्व वाली हम की अपनी उम्मीदें होंगी।

अहम सवाल ये है कि आखिर क्या गारंटी है कि नीतीश फिर से पलटी नहीं मारेंगे। दरअसल अब उनके पास अब बहुत ज्यादा विकल्प नहीं हैं। नीतीश की पार्टी जदयू के पास कोई बहुत बड़ा जनाधार नहीं है। मोदी शाह युगीन विस्तारवादी भाजपा के दौर में वजूद बनाए रखना ही बड़ी चुनौती है। नीतीश ने पार्टी में सेकेंड लाइन लीडरशिप खुद ही नहीं पनपने दिया। उन्होंने एकाधिकार के लिए जॉर्ज फर्नांडीज और शरद यादव सरीखे नेताओं को साइड कर दिया था।

अब नीतीश के पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं !

इसके उलट तेजस्वी ने अपने पिता लालू की सक्रियता सीमित होने के बाद राष्ट्रीय जनता दल का मजबूती से नेतृत्व किया है। इस बार फिर नीतीश पालाबदल (Nitish U turn) करते हुए मुख्यमंत्री तो बन गए। लेकिन आगे उनके लिए उनकी राहें जरा भी आसान नहीं हैं। वजह ये है कि भाजपा भी अब उनको ढोने की बजाय आत्मनिर्भर होने के मूड में है। उधर, जदयू की हैसियत इतना बड़ी नहीं है कि वह आगे अपने दम पर सरकार बनाने का सपना देखे।

वैसे 8 बार सीएम बनने के बाद नीतीश के सामने अब 2024 Polls के मद्देनजर प्रधानमंत्री पद की संभावनाएं तलाशने का विकल्प है। यह महत्वाकांक्षा NDA के साथ रहकर पूरी होना मुमकिन नहीं थी। बस यही कुछ बातें हैं जो महागठबंधन के टिकने की उम्मीदें जगाते हैं। जब विस्तारवादी भाजपा जबड़ा खोलकर जेडीयू को निगलने के लिए तैयार बैठी हो तो नीतीश के पास बहुत ज्यादा विकल्प कहां थे? बहरहाल, बिहार में Nitish U turn से मोदी से मुकाबले के लिए विपक्ष को एक संजीवनी मिली है।

(लेखक वरिष्ठ टेलीविजन पत्रकार हैं)

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