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Hindi Diwas अंग्रेजीभाषियों से हिंदी में तू-तड़ाक जो होने लगी है!

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Hindi Diwas भले ही मौजूदा दौर में खबरिया टेलीविजन चैनल चाहे अथवा अनचाहे हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बीच चाहे जितना युद्धोन्माद, हिन्दू-मुस्लिम, गाय-गोबर, प्रोपगेंडा और चिल्ला-चिल्ली की ज्यादा गंध फैला रहे हों।लेकिन 90 के दशक से निजी चैनलों के विस्तार ने हमारे देश में राष्ट्रभाषा हिंदी के जनजागरण में एक रूप में बड़ा योगदान दिया है।

वरना कौन नहीं जानता कि ड्राइंग रूम में अंग्रेजी अखबार या रंगबिरंगी पत्रिका स्टेटस सिंबल हुआ करते थे। लेकिन राष्ट्रीय से ज्यादा क्षेत्रीय स्तर पर न्यूज़ चैनल्स के विस्तार से हिंदी भाषा का चलन, लोकप्रियता और स्वीकार्यता काफी हद तक सामाजिक रूप से बढ़ी है। मेरी बेहद सामान्य सी समझ के हिसाब से शायद राष्ट्रभाषा हिन्दी का इतना जागरण आजादी के बाद सरकारी प्रयासों से भी नहीं हो पाया।

दरअसल, Hindi Diwas पर सरकारी इमदाद से सजने वाली सेमिनार सरीखी महफिलें हिंदी व्याकरण की बहस और विलाप में ज्यादा उलझी रही, जिससे उसका विस्तार प्रभावित हुआ।भले ही भारत में क्षेत्रीय राजनीति और अन्य आकांक्षाओं के दबाव में दक्षिण भारत में हिंदी का विरोध हुआ हो। लेकिन हिंदी फिल्मों के गाने पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण को पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा करीब लाए हैं।

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और इस नेक काम में हिंदी चैनलों के फिल्म बेस्ड तमाशाई कार्यक्रमों की भी बड़ी भूमिका रही है। हां ये बात जरूर है कि प्रोफेसनल एवं अकैडमिक लेबल पर अंग्रेजी का बोलबाला बदस्तूर कायम है। अगर सरल अनुवाद की पुस्तकें ज्यादा आने लगेंगी तो शायद पेशेवर स्तर पर भी हिंदी भाषा का चलन और बढ़ने लगेगा।

कोई जाता भी इस मुगालते में ना रहे कि हिंदी को कोई खतरा है। पंजाबी, भोजपुरी, गुजराती, मारवाड़ी-राजस्थानी, छत्तीसगड़ी, अवधी समेत अन्य भाषाएं बोलने वाले भी हिंदी के ही विस्तारक हैं। और हां, धार्मिक पूर्वाग्रहों के चलते उर्दू का विरोध बिल्कुल मत कीजिए क्यूंकि ये हिंदी की ही बहन है। अगर क्लिस्ट हिंदी के शब्दों की बजाय उर्दू के नफासत भरे शब्दों का इस्तेमाल हो जाए तो कन्वर्जेशनल लैंग्वेज बेहतर हो जाती है।

एक बात थोड़ा लीक से हटकर जरूर कहना चाहूंगा। वो ये कि भारतीय समाज में सदियों से प्यार भरी गालियां और छेड़छाड़ प्रचलन में हैं। जो सम्बन्धित क्षेत्रों में अलग-अलग भाव और अंदाज में बोली जाती रही हैं। जिन्हें दादी, नानी, भावी अथवा अन्य लोगों के मुंह से सुनने का मजा ही कुछ और है। दिलचस्प बात ये है कि उन्हें हिंदी में सुनने जो अपनत्व अथवा आंनद होता है, वो अंग्रेजी अनुवाद में नहीं मिल पाता।

वैसे ये बात सही है कि खबरिया चैनल अपनी उपयोगिता को खुद संकट के डाल चुके हैं। लेकिन उनकी स्क्रीन पर कुछेक साल पहले पता चला था कि अब तो PM मोदी अमेरिका वाले बराक ओबामा से तू_तड़ाक कर लेते हैं!

 

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