Chandrayaan-3 Sucessful चंद्रयान 3 की चांद के दक्षिण छोर पर लैंडिंग हो गई। अमेरिका, रूस, चीन के बाद चांद पर पहुंचने वाला भारत चौथा देश है। इस ऐतिहासिक मौके पर, भारत के ‘मिशन मून’ की कहानी पर लेखक की नजर।
By Pankaj Chaturvedi
भारत का अंतरिक्ष अभियान आज विश्व में नया इतिहास लिख चुका है। यदि इसरो के पूर्व अध्यक्ष वसंत गोवारिकर पुस्तक — “इसरो की कहानी” (प्रकाशक नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया) पढ़ें, तो सुखद लगेगा कि जिस संस्था को शुरू करने के लिए हमारे वैज्ञानिकों ने एक श्रमिक की तरह अथक परिश्रम किया था। आज उसकी परिणति चन्द्र यान अभियान-3 के रूप में दुनिया के सामने हैं ।
Chandrayaan-3 की रणनीति के तहत दक्षिण छोर पर लैंडिंग!
चंद्रयान- 3 को भारत में निर्मित जीएसएलवी मार्क III रॉकेट अंतरिक्ष में लेकर जा रहा हैं। इस अभियान के तीन मॉड्यूल्स हैं – लैंडर, ऑर्बिटर और रोवर.लैंडर का नाम रखा गया है- विक्रम और रोवर का नाम रखा गया है- प्रज्ञान। 13 भारतीय पेलोड (ओर्बिटर पर आठ, लैंडर पर तीन और रोवर पर दो पेलोड तथा नासा का एक पैसिव एक्सपेरीमेंट (उपरकण) हैं।
चंद्रमा के दक्षिण हिस्से का चुनाव बहुत रणनीति के तहत किया गया है। यहाँ अच्छी लैंडिग के लिए जरुरी प्रकाश और समतल सतह उपलब्ध है। इस मिशन के लिए पर्याप्त सौर ऊर्जा उस हिस्से में मिलेगी। साथ ही वहां पानी और खनिज मिलने की भी उम्मीद है। इसरो ने कहा, ”हम वहां की चट्टानों को देख कर उनमें मैग्निशियम, कैल्शियम और लोहे जैसे खनिज को खोजने का प्रयास करेगें।
इसके साथ ही वहां पानी होने के संकेतो की भी तलाश करेगें और चांद की बाहरी परत की भी जांच करेंगे”। चंद्रयान-3 के हिस्से ऑर्बिटर और लैंडर पृथ्वी से सीधे संपर्क करेंगे। लेकिन रोवर सीधे संवाद नहीं कर पाएगा। ये 15 साल में चांद पर जाने वाला भारत का तीसरा मिशन है। सन 2019 का मिशन विक्रम के ठीक तरीके से सतह पर न उतर पाने के कारण पूर्ण सफल नहीं हुआ था।
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इसरो की दो दशकों के मेहनत रंग लाई है!
जान लें कि भारत के अंतरिक्ष विज्ञान विभाग की यह उपलब्धि कोई एक-दो साल का काम नहीं है। भारत सरकार ने नवंबर 2003 में पहली बार भारतीय मून मिशन के लिये इसरो के प्रस्ताव चंद्रयान -1 को मंज़ूरी दी। चन्द्र्रयान-1 को पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, यानी PSLV-C 11 रॉकेट के ज़रिये सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्री हरिकोटा से लॉन्च किया गया था।
इसका महत्वपूर्ण पहला पायदान 15 साल पहले सफलता से सम्पूर्ण हुआ था। भारत ने 22 अक्तूबर, 2008 को पहले चंद्र मिशन के तहत चंद्रयान-1 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया था।पांच दिन बाद 27 अक्तूबर, 2008 को चंद्रमा के पास पहुँचा था। वहाँ पहले तो उसने चंद्रमा से 1000 किलोमीटर दूर रहकर एक वृत्ताकार कक्षा में उसकी परिक्रमा की। उसके बाद वह चंद्रमा के और नज़दीक गया और 12 नवंबर, 2008 से सिर्फ 100 किलोमीटर की दूरी पर से हर 2 घंटे में चंद्रमा की परिक्रमा पूरी करने लगा।
इस मिशन को 2 साल के लिये भेजा गया था। लेकिन 29 अगस्त, 2009 को इसने अचानक रेडियो संपर्क खो दिया। इसके कुछ दिनों बाद ही इसरो ने आधिकारिक रूप से इस मिशन को ख़त्म करने की घोषणा कर दी थी। उस वक्त तक अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा की 3400 से ज़्यादा बार परिक्रमा पूरी कर ली थी। वह चंद्रमा की कक्षा में 312 दिन तक रहा और परिष्कृत सेंसरों से व्यापक स्तर पर डेटा भेजता रहा। इस वक्त तक यान ने अधिकांश वैज्ञानिक मकसदों को पूरा कर लिया था।
चंद्रयान 1 के प्रक्षेपण ने भारत की साख बढ़ाई!
इस मिशन से पृथ्वी के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा के रहस्यों को जानने में न सिर्फ भारत को मदद मिली बल्कि दुनिया के वैज्ञानिकों के ज्ञान में भी विस्तार हुआ। प्रक्षेपण के सिर्फ आठ महीनों में ही चंद्रयान-1 ने मिशन के सभी लक्ष्यों और उद्देश्यों को हासिल कर लिया। आज भी इस मिशन से जुटाए आँकड़ों का अध्ययन दुनिया के वैज्ञानिक कर रहे हैं। इस मिशन से दुनिया भर में भारत की साख बढ़ी थी।
चंद्रयान कई रहस्यों से पर्दा उठाएगा ?
इस बार का सफल प्रक्षेपण और चंद्रमा की सतह पर उतरने और उससे पहले 22 जुलाई 2019 को प्रक्षेपित हुए चंद्रयान -२ के उद्देश्य भी जानना जरुरी है। यह उपग्रह चन्द्रमा की साथ पर उतर कर चंद्रमा की सतह में मौजूद तत्त्वों का अध्ययन कर यह पता लगायेगा कि उसके चट्टान और मिट्टी किन तत्त्वों से बनी है। साथ ही साथ वहाँ मौजूद खाइयों और चोटियों की संरचना का अध्ययन, चंद्रमा की सतह का घनत्व और उसमें होने वाले परिवर्तन का अध्ययन, ध्रुवों के पास की तापीय गुणों, चंद्रमा के आयनोंस्फीयर में इलेक्ट्रानों की मात्रा का अध्ययन। चंद्रमा की सतह पर जल, हाइड्रॉक्सिल के निशान ढूंढने के अलावा चंद्रमा के सतह की त्रिआयामी तस्वीरें लेना आदि कार्य यह अभियान करेगा । Chandrayaan-3 Sucessful
इसरो के मुताबिक़ पृथ्वी और चंद्रमा के बीच हममें से अधिकतर लोग जितना सोचते हैं उससे कहीं ज्यादा समानतायें हैं। इन समानताओं के अध्ययन से हम धरती को बेहतर समझ सकेंगे। हम चंद्रयान-3 के जरिये यह करने की उम्मीद रखते हैं।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और इस आलेख में उनके निजी विचार हैं )
साभार / पंकज चतुर्वेदी/ एफबी वॉल
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