By Rahul Singh Shekhawat
यशपाल आर्या गेम चेंजर बनेंगे ! उत्तराखंड के बड़े ‘दलित फेस’ यशपाल (YashpalArya) मंत्री पद छोड़कर अपने पुत्र संजीव आर्या (Sanjeev Arya) के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। विधायक पिता पुत्र के ठीक Uttrakhand Election 2022 से पहले पार्टी छोड़ने से भारतीय जनता पार्टी (BJP) को झटका लगा है।
दरअसल आर्या न सिर्फ बीजेपी में असहज थे बल्कि ‘किसान आंदोलन’ के मद्देनजर अपने निर्वाचन क्षेत्र बाजपुर में सहमे थे। उनके जाने से अभी तक बेहद आक्रामक रही सत्ताधारी भाजपा अचानक डिफेंसिव नजर आ रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी समेत बीजेपी के सभी अन्य सभी नेता यशपाल के पार्टी छोड़ने पर नपा तुला बोलते नजर आए। पूर्व सीएम हरीश रावत के आर्या के स्वागत में गर्मजोशी से कांग्रेस (Congress) में नए अंदरूनी समीकरण उभर रहे हैं।
तो 2022 चुनाव में यशपाल आर्या गेम चेंजर बनेंगे !
गौरतलब है कि यशपाल पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात के बाद अपने पुत्र संजीव आर्या के साथ कांग्रेस में शामिल हुए हैं। वह खुद उधमसिंहनगर के बाजपुर और पुत्र संजीव नैनीताल से बीजेपी के विधायक निर्वाचित हुए थे। यशपाल ने धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री पद छोड़कर कांग्रेस में घर वापसी की है। उनकी निर्विवाद रूप से उत्तराखंड में सबसे बड़े दलित चेहरे के तौर पर पहचान रही है।
यशपाल आर्या साल 2002 से 2007 तक नारायण दत्त तिवारी सरकार के कार्यकाल के दौरान विधानसभा अध्यक्ष रहे। उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते ही कांग्रेस 2012 में सत्ता में वापस आई थी। यशपाल पहले विजय बहुगुणा और फिर हरीश रावत सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे बने थे। इस कड़ी में वह BJP के धामी से पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत के मंत्रिमंडल में शामिल हुए। आर्या उत्तराखंड बनने से पहले दो बार उत्तर प्रदेश (UP) में खटीमा के विधायक निर्वाचित हुए थे।
Read सोनिया G23 से बोली मैं हूं अध्यक्ष, मुझसे बात करो
बताया जाता है कि हरीश रावत के सीएम रहते उनके तत्कालीन सलाहकार से आर्या की अनबन रही। इसके साथ ही पुत्र के लिए टिकट की बात नहीं बनने पर वह 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे। यशपाल उत्तराखंड कांग्रेस में रावत के बाद सबसे वरिष्ठतम नेताओं में शुमार हैं। उनके बाद इस फेहरिस्त में पांच बार के विधायक नेता विपक्ष प्रीतम सिंह आते हैं।
प्रभारी देवेंद्र यादव की मुहिम में हरीश रावत की सहमति !
आपको बता दें कि उत्तराखंड में कमोबेश 18 फीसदी ‘दलित वोट बैंक’ है। जिसके मद्देनजर यशपाल की घर वापसी में प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव की बड़ी भूमिका रही। ताकि दलित समुदाय एक बार फिर से कांग्रेस का रुख कर सके। जिससे कांग्रेस के लिए 2022 का चुनावी दंगल जीतने की राह आसान होगी। आर्या की कांग्रेस वापसी में राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत की सहमति रही। हालाकि प्रीतम खेमा भी इसका श्रेय ले रहा है।
कहने की जरूरत नहीं कि हरीश ने सरकार गिराने वाले बागियों की घर वापसी में माफी मांगने की शर्त रखी है। जिसके चलते एक बीजेपी विधायक उमेश शर्मा ‘काऊ’ को गांधी के आवास से बैरंग लौटना पड़ा था। गौरतलब है कि रावत न सिर्फ पूर्व सीएम बल्कि चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष भी हैं। वह आर्या की पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ मुलाकात के दौरान मौजूद रहे। इतना ही नहीं, हरीश के दिल्ली स्थित घर पर उनकी धर्मपत्नी ने यशपाल और संजीव आर्या का तिलक लगाकर स्वागत किया।
गौरतलब है कि यशपाल कांग्रेस सरकार विधानसभा में गिराने के दौरान बागियों के साथ नहीं थे। इसलिए रावत उनके लिए कभी बहुत ज्यादा आक्रामक नहीं रहे। सूत्र बताते हैं कि हरदा ने राहुल गांधी से मुलाकात के वक्त आर्या की दिल खोल कर तारीफ करते हुए अपने तत्कालीन कतिपय सलाहकार की मिस हैंडलिंग का भी जिक्र किया। आर्या के स्वागत में रावत की गर्मजोशी कांग्रेस में नए अंदरूनी समीकरण के भी संकेत दे रही है।
बागियों की ‘घर वापसी’ कांग्रेस की कमजोरी की दास्तां !
कहने की जरूरत नहीं है कि 9 कांग्रेस विधायक 2016 में हरीश रावत सरकार के तख्तापलट का प्रयास करके BJP में चले गए थे। जिसके एक साल बाद 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी की इस कदर शर्मनाक हार हुई कि 11 सीटों पर सिमट गई। इस कड़ी में दिवंगत नेता विपक्ष डॉ इंदिरा हृदयेश और प्रदेश अध्यक्ष रहते प्रीतम ने 2022 चुनावों के मद्देनजर मजबूती के लिए बागियों की घर वापसी का तुर्रा छेड़ा था।
जानकर जानते हैं कि पार्टी की मजबूती के कहीं ज्यादा हरीश रावत की पकड़ कमजोर करने की भी रणनीति थी। वैसे बागियों की वापसी का राग कांग्रेस की लचरता और कमजोरी की पुष्टि करता है। जिनके भाजपा में जाने के बाद पार्टी के पास एक नई लीडरशिप तैयार करने का मौका था। लेकिन बतौर अध्यक्ष साढ़े चार साल के अपने कार्यकाल में प्रीतम सम्बंधित 9 सीटों के नए जमीनी प्रत्याशी तैयार नहीं करा पाए।
बता दें कि AAP मुफ्त बिजली और रोजगार भत्ते का शिगूफा छोड़कर उत्तराखंड में लड़ रही है। लिहाजा कांग्रेस नहीं चाहती कि दिल्ली की तर्ज पर उसे सूबे में डेंट करके भाजपा को फायदा पहुंचाए। बहरहाल, कांग्रेस को यशपाल और उनके विधायक पुत्र संजीव के सा लौटने से उत्तराखंड में संजीवनी मिली है। यह आने वाला वक्त बताएगा कि दलित वर्ग को पार्टी में खींचकर 2022 में यशपाल आर्या गेम चेंजर साबित हो पाएंगे या फिर नहीं।
(लेखक जाने माने वरिष्ठ टेलीविजन पत्रकार हैं)
(Photo: साभार कांग्रेस FB पेज)
Comment here