By Sushil Upadhyay
Vaccination Claims अभी अक्तूबर माह में देश ने सौ करोड़ टीके लगने का जश्न मनाया। इसे दुनिया में सबसे अलग तरह की उपलब्धि बताया गया। और केवल एक पहलू देखें तो यह वास्तव में बड़ी उपलब्धि है, लेकिन आंकड़ों की असलियत एक अलग ही दिशा में संकेत कर रही है। इस पूरी प्रक्रिया को भारत सरकार के दावों के संदर्भ में देखना ठीक होगा। सरकार ने घोषणा की थी कि इस साल देश के 18 वर्ष से ज्यादा के सभी लोगों को दोनों टीके लग जाएंगे। इस दायरे में करीब 110 करेाड़ की आबादी थी। इस लिहाज से 220 करोड़ टीके लगाए जाने हैं।
इसमें 12 से 18 साल के वे 14 करोड़ बच्चे शामिल नहीं हैं, जिनके लिए अब वैक्सीन आ चुकी है और कई देशों में लग भी चुकी है। इन 14 करोड़ को भी 28 करोड़ डोज लगाई जानी हैं। यानि देश में कुल 248 करोड़ डोज लगाई जानी हैं। हालांकि, ये 28 करोड़ डोज इस वर्ष के घोषित लक्ष्य से अलग हैं। इस एक साल की अवधि में करीब एक करोड़ लोग ऐसे हैं जो 18 साल से ज्यादा के समूह में शामिल हो जाएंगे। इनके लिए भी अतिरिक्त दो करोड़ डोज की जरूरत होगी। कुल मिलाकर भारत में 250 करोड़ डोज लगनी हैं।
Vaccination Claims और हकीकत !
भारत ने 21अक्तूबर को 100 करोड़ का लक्ष्य हासिल किया। देश में 2 फरवरी, 21 से स्वास्थ्यकर्मियों का टीकाकरण शुरू हुआ और 262 दिन में इस लक्ष्य को प्राप्त किया। टीकाकरण की मौजूदा गति के हिसाब से देखें तो शेष बचे 150 करोड़ टीके लगने में 393 दिन लग जाएंगे। इस अर्थ यह है कि अगले साल नवंबर तक ही सभी लोगों को Vaccination Claims को हासिल किया जा सकेगा। और यदि मौजूदा रफ्तार को दोगुना कर लें तो भी 196 दिन यानि लगभग साढ़े छह महीने लगेंगे।
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इसका अर्थ यह होगा कि मई के आखिर तक ही पूरी आबादी को टीका लगने की स्थिति बन पाएगी। यह तिथि भी भारत सरकार द्वारा निर्धारित डेडलाइन से काफी पीछे होगी। ऐसा नहीं है कि देश के पास टीकाकरण की क्षमता नहीं है, इसी अभियान के दौरान 17 सितंबर, 21 को एक दिन में ढाई करेाड़ टीके लगे थे। ऐसे तो कई दिन रहे हैं, जब एक दिन में टीकोें की संख्या एक करोड़ या इससे भी अधिक रही है।
रफ्तार बढ़ाकर पूरे हों पाएंगे लक्ष्य !
टीकाकरण की गति बढ़ाने का मामला केवल भारत सरकार द्वारा निर्धारित डेडलाइन को हासिल करने से जुड़ा हुआ नहीं है। बल्कि इसके साथ दो-तीन और महत्वपूर्ण बातें जुड़ी हुई हैं। पहली बात, आगामी दिनों में 2 से 12 साल की करीब 20 करोड़ की आबादी को भी टीका लगना है। यानि अगले साल इन 40 करोड़ डोज को भी शामिल करना होगा।
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दूसरी बात, दुनिया के कई देशों में बूस्टर डोज (टीकाकरण के एक साल बाद तीसरी डोज) दी जाने लगी है। भारत को भी देर-सवेर बूस्टर डोज का अभियान शुरू करना होगा। भारत में विगत दस अप्रैल तक 10 करोड़ लोगों को टीके लग चुके थे। इस दृष्टि से आगामी अप्रैल तक इन सभी लोगों को सिंगल बूस्टर डोज देनी होगी। तीसरी बात, रूस और यूरोप के कई देशों में करोनो फिर गति पकड़ रहा है। इसकी चपेट में मुख्यतः वे ही लोग आ रहे हैं, जिन्होंने एक भी डोज नहीं ली है।
मौजूदा गति में Vaccination Claims पूरे होना मुश्किल !
बात साफ है, यदि महामारी से बचना है तो टीकाकरण की गति को बढ़ाना ही होगा। मौजूदा गति रोजाना औसत करीब 38 लाख टीके की है। इस गति से भारत में टीकाकरण के लक्ष्य को हासिल करना बेहद मुश्किल साबित होगा। अभी तक शेष बचे सभी लोगों (इनमें 12 से 18 साल तक के बच्चों को भी शामिल कर लेते हैं) को यदि 31 मार्च तक टीका लगाना हो तो 21 अक्तूबर (जिस दिन 100 करोड़ का लक्ष्य हासिल हुआ) से 31 मार्च के 161 दिनों में 150 करोड़ डोज (12 से 18 साल तक के बच्चों सहित) लगाने के लिए रोजाना 93-94 लाख की गति से आगे बढ़ना होगा।
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राजनीतिक आधार पर सही-गलत का दावा करना हमेशा आसान होता, लेकिन Vaccination Claims की सच्चाई से रूबरू होना मुश्किल नजर आ रहा है। आंकड़े बता रहे हैं कि भारत में अभी एक तिहाई आबादी को ही दोनों टीके लग सके हैं। शेष में से कुछ प्रतिशत को एक टीका लगा है। कुछ राज्यों में टीकाकरण की स्थिति काफी खराब है। केवल पांच राज्य ऐसे हैं, जहां आधी आबादी को दोनों टीके लग गए हैं। वैसे, फिसड्डी राज्य उन नौ राज्यों से भी सबक ले सकते हैं जिन्होंने पर अपनी सारी आबादी को कम से कम एक टीका जरूर लगा दिया है।
भारत की क्षमता पर कोई शक नहीं है !
हूयह बात एक बार फिर स्पष्ट करनी जरूरी है कि भारत में क्षमता की कमी नहीं है क्योंकि जिन लोगों ने एक ही दिन में ढाई करोड़ टीके लगाए, वे किसी दूसरे देश से नहीं आए थे, लेकिन जब यही संख्या नवंबर के पहले सप्ताह में 30 लाख रोजाना पर सिमट जाती है तो चिंता होनी स्वाभाविक ही है। तब इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि किन लोगों ने सौ करोड़ के लक्ष्य का जश्न बनाया और किन लोगों ने नहीं मनाया!
इसके लिए प्राइड टीम इंडिया, मेड इन इंडिया, ऐतिहासिक पल, आत्मनिर्भर भारत जैसी भारी-भरकम शब्दों से भी कोई फर्क नहीं पड़ता। एकमात्र तरीका मौजूदा औसत गति को कम से कम दो-ढाई गुना करना ही होगा। अब इस गति के बढ़ने की उम्मीद इसलिए भी की जा सकती है क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोवैक्सीन को मान्यता दे दी है। वैसे, अब टीकाकरण के लिए अलग तरह की रणनीति पर भी काम करने की जरूरत है।
स्कूली बच्चों का टीकाकरण जरूरी !
देश में सभी काॅलेज और विश्वविद्यालय आफलाइन खुल गए हैं। बेहतर होगा कि परिसरों में पूर्ण टीकाकरण का अभियान चलाया जाए।इसकी अगली कड़ी में 12 से 18 साल के बच्चों के लिए सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी स्कूलों में टीकाकरण किया जाए। लोगों में टीका न लगवाने की अनिच्छा से निपटना भी बहुत जरूरी है। यह प्रवृत्ति कम शिक्षित और पढ़े-लिखे, दोनों प्रकार के लोगों में मौजूद है।
इसका बड़ा उदाहरण उत्तराखंड की राजधानी देहरादून है, जहां दूसरे टीके के लिए लोग आगे ही नहीं आ रहे हैं। करीब 6 लाख दूसरे टीके में लापरवाही कर रहे हैं, जबकि इसकी तुलना में कम साक्षरता वाले हरिद्वार जिले में यह संख्या महज 3 लाख है, जबकि दोनों जिलों की आबादी लगभग बराबर है। ऐसे लोग भी लक्ष्य हासिल करने की राह में बड़ी बाधा हैं।
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वस्तुतः सब कुछ अनुकूल हो सके तो तब जिंदगी आज की तुलना में ज्यादा सहज होगी और हम यह दावा करते हुए और प्रभावपूर्ण लगेंगे कि भारत ने दुनिया में सबसे अधिक टीके लगाए हैं। फिलहाल तो यह दावा इसलिए सही नहीं है कि हमारा पड़ोसी चीन 250 करोड़ टीके लगा चुके होने का दावा कर रहा है। और जब तक सभी लोगों को टीके न जाएं तब तक इस दावे का भी कोई अर्थ नहीं है कि भारत अगले साल तक 500 करोड़ टीके तैयार करने की स्थिति में होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और इस आलेख में उनके निजी विचार हैं)
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