By Rahul Singh Shekhawat
हिमालय महज एक खूबसूरत पहाड़ ही नहीं बल्कि मानव सभ्यता पर एक बड़ी नैतिक, सामाजिक और भावनात्मक जिम्मेदारी है। अगर आपने जिंदगी में एक बार भी यहां सैर सपाटा किया है, तो फिर उसके संरक्षण का दायित्व बन जाता है। जिसके लिए आपको साल में एक दिन के लिए पर्यावरण या फिर कहें हिमालय दिवस किसी सरकारी अथवा NGO के मजमों जाने की जरूरत नहीं है।
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सिर्फ उस अहसास और सुकून को याद करने की जरूरत है, जो कभी पहाड़ में प्रवास के दौरान मिला हो। और हां, हिमालय के संरक्षण के लिए बहुत लंबे चौड़े भाषण या ड्रामे की जरूरत बिल्कुल नहीं है। ये काम उनके लिए छोड़ दीजिए जिनकी हिमालय के नाम पर दुकानें चलती हैं। हिमालय को सिर्फ सरकारों के ऊपर छोड़ने का पाप मत कीजिए।
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वो उसका सिर्फ उतना ही संरक्षण कर पाएंगी जितना कि उसके आधीन संचालित हो रहे नगरनिगम या नगरपालिका हमारे शहरों की साफ-सफाई या कतिपय देखभाल कर पाते हैं। हिमालय के नाम पर आंसू बहाने वालों के अलग अलग गिरोह भी संचालित हो रहे हैं। सभी तो नहीं लेकिन उनमें एक बड़े तबके के आर्थिक हित जुड़े होते हैं।
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लिहाजा उनके ढकोसले और सालाना अथवा वक्त बेवक्त विलाप से सचेत रहें। दूरस्थ पहाड़ो में रहने वाले लोग ही हिमालय के असली संरक्षक हैं। मेरी सीमित समझ के हिसाब से उन्हें हिमालय संरक्षण कार्यक्रम में सरकारी स्तर पर प्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। मुझे व्यक्तिगत तौर पर बड़ी तकलीफ तब होती है, जबकि हिमालय के सौदागर उन्हें संरक्षण के तौर तरीके समझाने लगते हैं।
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माफ कीजिएगा, लेकिन हिमालय के हितैषियों का ये वो तबका है, जो सुविधायुक्त भीड़वाले शहरों में रहना पसंद करता है। बहरहाल, आपको मन में हिमालय के प्रति एक वैसा भाव जगाना है, जो महबूब या महबूबा के लिए होता है। कुदरत की बेशकीमती धरोहर जैव विविधता और पहाड़ रूपी समग्र हिमालय के संरक्षण में अपने स्तर पर योगदान देने की आज से ही शुरुआत कीजिए।
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दरअसल, आज पहाड़ो पर मेरी ‘टेढ़ी नजर’ इसलिए टेढ़ी पड़ी क्योंकि पिछले एक दशक से 9 सितंबर को उत्तराखंड हिमालय दिवस मनाता है। इस कड़ी में वैश्विक स्तर पर 5 जून को पर्यावरण दिवस का आयोजन होता है। विकास के नाम पर हिमालय का वैज्ञानिक तरीकों और एक सीमा तक ही दोहन होना चाहिए। उसके संरक्षण के तमाशे में वहां रहने वाले लोगों के मूलभूत हित बिल्कुल प्रभावित नहीं होने चाहिए।
(लेखक जाने-माने टेलीविजन पत्रकार हैं)
(Photo: Ratan Singh Aswal)
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