By Bhupesh Pant
पिछले काफ़ी समय से गोदी मीडिया की चिल्लपों और सत्ता के पक्ष में तलवा चाटू प्रतियोगिता ने रीढ़ युक्त पत्रकारों और ख़बरों की समझ रखने वाले दर्शकों को न्यूज़ चैनलों से दूर किया है। दर्शक सोशल मीडिया में ऐसे विकल्प तलाश रहे हैं, जो अपने मन की नहीं उनके बुनियादी मुद्दों और समस्याओं पर बात करे।
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इसके बावजूद न्यूज़ चैनलों में कोई फ़र्क पड़ता नहीं दिखता। तमाम चैनलों के बीच चापलूसी के समानुपातिक क्रम में टीआरपी (TRP) का खेल ज़बर्दस्त तरीके से ज़ारी रहता है। फिर अचानक ही एक सर्कसनुमा चैनल दूसरे कई सालों से आगे, तेज़ चाटुकार चैनल को पछाड़ कर सत्ता की टीआरपी अपने नाम करवा देता है तो मुझे संदेह होने लगा है।
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मेरे घर में टीवी पर न्यूज़ तो सालों से बंद है लेकिन बच्चों के लिये कार्टून चैनल लगाने के लिये जब भी टीवी खोलता हूँ तो केबिल की सेटिंग सीधे अब टीआरपी में नंबर वन बन चुके रिपब्लिक भारत को 10-15 सेकंड के लिये खोल देती है। इस दौरान रिमोट जाम हो जाता है।
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न तो चैनल बदला जाता है और न ही चीख चिल्लाहट कम हो पाती है। उसके बाद चैनल खुद ब खुद नेटवर्क 18 में शिफ्ट हो जाता है। 4-5 सेकंड बाद ही मेन्यू बटन काम कर पाता है और आप कार्टून चैनल तक पहुँच पाते हैं।
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कार्टून से न्यूज़ का संबंध जोड़ कर कृपया कार्टूनों का अपमान न करें। लेकिन ये प्रक्रिया किसी न्यूज़ चैनल को जबर्दस्ती दिखा कर टीआरपी जुटाने का तरीका तो नहीं? कहीं केबिल नेटवर्क की इस तरह की सेटिंग का इस चैनल की टीआरपी से कोई संबंध तो नहीं?
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(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं व्यंगकार हैं और इस आलेख में उनके निजी विचार हैं)
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