By Rahul Singh Shekhawat
UPA का नेतृत्व अब कौन करेगा ? हाल में मराठा क्षत्रप शरद पवार को कमान सौंपने की खबरें मीडिया में आईं। सवाल ये है कि क्या वास्तव में सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) के नए चैयरपर्सन की खोज चल रही है?
दरअसल, उनकी अस्वस्थता के चलते कांग्रेस और यूपीए दोनों की सक्रियता प्रभावित है। जिसके मद्देनजर इस गठबंधन को सक्रिय खेवनहार की जरूरत है। किसान आंदोलन इस बात का उदाहरण है। कहीं विपक्ष की कोई रणनीतिक सक्रियता दिखती है!
आपको बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की विदाई के बाद, सोनिया गांधी के नेतृत्व में 2004 में यूपीए बना। उस दौरान कांग्रेस संख्या बल के हिसाब से सबसे बड़ी पार्टी थी। डॉ मनमोहन सिंह के नेतृत्व में केंद्र में 2014 तक 10 साल यूपीए की सरकार रही।
तो इसलिए निकली UPA का नेतृत्व तलाशने की बात !
ये वक्त की दरकार है कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देनी है तो नए सिरे से मजबूत करना ही पड़ेगा। चूंकि अस्वस्थ चल रही मौजूदा एवं संस्थापक चेयरपर्सन सोनिया गांधी कांग्रेस को भी स्थायी अध्यक्ष ढूंढने को कह चुकी हैं। हालांकि खुद उन्होंने गठबंधन का नेतृत्व छोड़ने की बात नहीं की है। लेकिन विपक्ष के सामने यह देर-सवेर स्थिति जरूर पैदा होगी।
लिहाजा एक ऐसा खेवनहार चाहिए जो हिंदी बेल्ट और दक्षिण में सेतु बन सके। लाख टके का सवाल ये है कि क्या कांग्रेस में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का नेतृत्व करने वाला दूसरा नेता है? अगर राहुल गांधी दुबारा कांग्रेस की बागडोर संभालते हैं। तो यूपीए को भी उनका नेतृत्व स्वीकार होगा ! अगर नहीं, तो फिर यहीं से UPA के नेतृत्व के लिए शरद पवार का नाम सामने आता है।
सनद रहे कि मोदी-शाह की जोड़ी ने संगठित तरीक़े से जातियों को पछाड़कर धार्मिक आधार पर वोटबैंक तैयार किया है। इन्होंने 2014 से अकल्पनीय चुनावी सफलताएं हासिल की हैं।आत्मविश्वास का आलम ये है कि सत्ता पक्ष किसानों को कथित ‘खालिस्तानी’ करार देने के खतरों से भी नहीं डर रहा। जिससे मुुकाबला करने के लिए यूपीए को अब मजबूत खेवनहार की जरूरत है।
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आखिर शरद पवार का ही नाम क्यों उछला !
एनसीपी नेता शरद महाराष्ट्र में अप्रत्याशित रूप से उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में बनी ‘महाविकास अघाड़ी गठबंधन’ सरकार के सूत्रधार हैं। उन्हें यूपीए की बागडोर सौंपने के पीछे थ्योरी है कि सोनिया के बाद इस गठबंधन के सबसे कद्दावर नेता हैं। वह दक्षिण भारत समेत अन्य राज्यों के मोदी विरोधी क्षेत्रीय दलों को एक मंच पर ला सकते हैं।
मराठा क्षत्रप के लंबे सियासी सफर के चलते दलगत सीमाओं से ऊपर राष्ट्रीय-क्षेत्रीय नेताओं से करीबी रिश्ते हैं। वह मोदी विरोधी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तेलंगाना के सीएम के सी चंद्रशेखर राव को साध सकते हैं। गौरतलब है कि राव मोदी के खिलाफ देश में क्षेत्रीय दलों का मोर्चा बनाने की कवायद कर चुके हैं। आंध्रप्रदेश में मौजूदा CM जगमोहन रेड्डी और तेलगुदेशम सुप्रीमो चंद्र बाबू नायडू और में किसी एक को खींचा जा सकता है।
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शरद पवार की विश्वसनीयता पर हैं सवाल !
आपको बता दें कि शरद कांग्रेस तोड़कर पहली बार महाराष्ट्र के CM बने थे। इसी तरह सोनिया के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस से अलग होकर NCP बना ली। हालांकि उन्होंने बाद में गांधी की आधीनता स्वीकार करने में जरा हिचक नहीं दिखाई। फिर कांग्रेस-एनसीपी की महाराष्ट्र में 15 साल सरकार रही। वह खुद मनमोहन सिंह सरकार के 10 साल के कार्यकाल में मंत्री रहे।
पवार का देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में BJP सरकार बनवाने में योगदान रहा। वह कभी भी नरेंद्र मोदी पर बहुत ज्यादा हमलावर नहीं रहे। चाहे वह संसद हो या उसके बाहर। जिस तरह राहुल गांधी रहते हैं। मराठा क्षत्रप हमेशा ‘प्लान बी’ साथ रखते हैं।
खुद उनके भतीजे अजीत पवार की बगाबत किसी रहस्य से कम नहीं रही। कोई थाह भी नहींं लेेे सकता कि मराठा क्षत्रप कब और किधर पलटी मार दें। शिवसेना के सांसद संजय राउत ने उस वक्त कहा था कि पवार साहेब को समझने के लिए दस जन्म भी कम हैं।
क्या कांग्रेस में सोनिया के बाद UPA के लिए कोई विकल्प है ?
अगर बात कांग्रेस की करें तो गुलाम नबी आजाद एक विकल्प हो सकते हैं। वह दिल्ली की लंबी सियासत के साथ जोड़तोड़ में माहिर हैं। लेकिन देश में चरम पर पहुंची हिंदुत्व की राजनीति के दौर में कांग्रेस शायद ही उनके नाम का रिस्क लेगी। वैसे गुलाम नेतृत्व को लेकर खत लिखने वाले 23 नेताओं में शामिल थे।
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी जरूर चाहेंगी उनके बाद UPA का नेतृत्व संभालने वाला नेता राहुल गांधी की के लिए भविष्य में नुकसानदायक ना हो। इस लिहाज से राजस्थान के मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी एक बेहतर विकल्प हैं। वह सोनिया के भरोसे पर वह 3 बार CM और 3 बार राष्ट्रीय महासचिव बने हैं।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी विचारणीय हो सकते हैं। बतौर प्रभारी वह पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू के बीच तल्खी कम करने एक हद तक कामयाब रहे हैं। रावत इंटक, सेवादल और प्रदेश की कमान संभाल चुके हैं। कांग्रेस में जमीनी और खांटी नेता अशोक और हरीश मुख्यमंत्री रहते मोदी-शाह की जोड़ी से जूझते रहे हैं।
पवार के अलावा अन्य गैर-कांग्रेसी नेता UPA का विकल्प बन सकता है !
इस कड़ी में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के सी चंद्रशेखर राव का नाम विचारणीय हो सकता है। वह तेलगुदेशम नेता और आंध्र प्रदेश के पूर्व CM चंद्र बाबू नायडू की पकड़ ढीली होने के बाद राष्ट्रीय राजनीति में दखल बढ़ाने को आतुर भी दिखतेे हैं। राव की पार्टी ना सिर्फ UPA-1 का हिस्सा थी बल्कि वह खुद केंद्र में मंत्री थे। उन्होंनेे 2019 के चुनावों से पहले भी क्षेत्रीय दलों का मोर्चे बनाने के प्रयास भी किए। इस कड़ी में वेस्ट बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी प्रबल मोदी-शाह विरोधी तो हैं। लेकिन उनका स्वभाव गठबंधन के राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता में आड़े आता है।
वैसे शरद यादव ‘वाइल्ड कार्ड एंट्री’ विचारणीय हो सकते हैं। वह नीतीश कुमार से अलग होने से पहले NDA के संयोजक रहे हैं। उनकी पुत्री ने विधिवत रूप से कांग्रेस में शामिल होकर बिहार में चुनाव लड़ा था। गठबंधन को ऐसे खेवनहार की जरूरत है जो साथी दलों में सर्वस्वीकार्य हो और सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता रखता हो।
बहरहाल, हिंदी बेल्ट में जड़ जमा चुकी भाजपा पूर्वोत्तर से गुजरते हुए दक्षिण में पैर जमाने की तैयारी में है। जमीन पर उतरे बिना सिर्फ ट्वीटर और सोशल मीडिया के जरिये मुकाबला मुश्किल है। पिछली चुनावी हार और कमजोरियों के बावजूद ‘पैन-इंडिया’ कांग्रेस को अपनी जिम्मेदारी तय करनी होगी। अगर खुद नेतृत्व के गंभीर संकट से जूझ रही कांग्रेस ऐसा नहीं करेगी तो यूपीए में बिखराव से इंकार नहीं किया जा सकता।
(लेखक जाने माने वरिष्ठ टेलीविजन पत्रकार हैं)