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Abki Baar 400 Paar! बीजेपी को दलबदल और ED की जरूरत क्यों?

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Abki Baar 400 Paar: का नारा, BJP में दलबदलुओं की बंपर भर्ती, ED का विपक्ष पर वार जारी है, क्या Modi को अपने नारे पर यकीं नहीं?

By Rahul Singh Shekhawat

भारत लोकसभा चुनाव के रंगों में तरबतर नजर आ रहा है।  जहां, सत्ताधारी भाजपा ने अबकी बार 370 पार और एनडीए 400 पार का नारा दिया। वहीं, कांग्रेस की अघोषित अगुवाई में विपक्षी 27 दलों के  ‘इंडिया’ गठबंधन‘ के जरिए उसके विजयी रथ को रोकने की जुगत में है। हालांकि, बहुजन समाज पार्टी, एआईडीएमके, YSR कांग्रेस, बीजू जनता दल, भारत राष्ट्र समिति, AIMIM और शिरोमणि अकाली दल सरीखे दल प्रत्यक्ष तौर पर किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं हैं।

Abki Baar 400 Paar: भाजपा को जीतने का भरोसा नहीं है?

बेशक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करिश्माई शख्शियत, श्रीराम मंदिर निर्माण और कथित राष्ट्रवाद के दम पर भाजपा के हौसले बुलंद हैं। लेकिन सवाल ये उठता है कि उसे दलबदलुओं और कथित तौर पर विपक्षी दलों में तोड़फोड़ की जरूरत क्यों पड़ रही है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि बीजेपी को जीत के दावों पर पुख्ता यकीन ही नहीं है! इसलिए ही प्रवर्तन निदेशालय (ED), इंकम टैक्स और सीबीआई आदि केंद्रीय जांच एजेंसियों से कथित दवाब डालकर दागियों को मेंबरशिप ड्राइव चलाकर उन्हें टिकट दे रही है?

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अगर अपवाद छोड़ दें तो शायद ही कोई विपक्षी दल होगा जिसके नेता भ्रष्टाचार के कथित आरोपों में जेल में न गए हो! या फिर केंद्रीय जांच एजेंसियों के पूछताछ के घेरे में न आए हों। चंद्र बाबू नायडू, डी के शिवकुमार, संजय राउत, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, के कविता समेत सैकड़ों बड़े- छोटे नेता जेल की हवा खा चुके हैं। इसके उलट भाजपा में शामिल होने पर आरोपियों की जांच ठंडे बस्ते में या फिर उन्हें क्लीन चिट मिल गई।

विपक्ष की विश्वसनीयता खत्म करने की मुहिम!

विपक्षी पूर्व मुख्यमंत्री के अलावा पूर्व और मौजूदा मंत्री, सांसद, विधायक तो पहले से ईडी रडार पर थे। अब उसे सीटिंग सीएम को गिरफ्तार करने से भी परहेज नहीं। ईडी ने हाल में अरविंद केजरीवाल को कथित आबकारी घोटाले में गिरफ्तार किया है। उनसे ठीक पहले कथित लैंड स्कैम में हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री पद रहते उसकी निगहबानी में राज्यपाल को इस्तीफा देने गए।

प्रवर्तन निदेशालय ने राहुल गांधी से ‘नेशनल हेराल्ड’ मामले में 55 घंटे की मैराथन पूछताछ की। फिर सोनिया गांधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं की बारी आई। भ्रष्टाचार के नाम पर पूछताछ और जेल जाने वाले नेताओं की लंबी फेहरिस्त है। बेशक भ्रष्टाचार के खिलाफ निरंतर कार्रवाई होनी ही चाहिए। लेकिन केंद्रीय जांच एजेंसियों ने बीजेपी से एकदम मुंह ही मोड़ रखा है। क्या विपक्ष की विश्वसनीयता खत्म करने की नियत से उन्हें ‘सेलेक्टिव एक्शन’ की हिदायत है?

कहीं अघोषित आपातकाल के हालात तो नहीं!

लोकसभा चुनावों के लिए आदर्श आचार संहिता लागू है। भारत के निर्वाचन आयोग की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े हैं।गैर भाजपा- एनडीए नेताओं के खिलाफ कार्रवाई बदस्तूर जारी है। आयकर विभाग को देश को दूसरी सबसे बड़े दल कांग्रेस के बैंक खाते ऐन चुनावों में फ्रीज करने से गुरेज नहीं! विपक्ष अपने नेताओं पर जांच का शिकंजा कसने या फिर जेल भेजे जाने से विचलित है। क्या यह मोदी सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ ही मुहिम है या फिर देश में अघोषित आपातकाल के हालात बन गए हैं!

राहुल गांधी ने सीधे पीएम मोदी पर कतिपय करीबियों के फायदे के लिए मैच (चुनाव) फिक्स करने का गंभीर आरोप लगाया। क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में हो रहे आम चुनावों में सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए ‘लेवल फील्ड’ है? ‘इंडिया’ गठबंधन ने दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई हालिया रैली में राष्ट्रपति से दखल देने की मांग बुलंद की। सवाल ये है कि इतने भर से हालात में कोई बदलाव आएगा?

इधर मोदी के आरोप, उधर दागी बीजेपी में शामिल!

मुझे नहीं मालूम कि ये संयोग है या फिर कोई प्रयोग लेकिन हर चुनाव से पहले कथित भ्रष्टाचार की आड़ में विपक्षी नेताओं की सेंधमारी शुरू हो जाती है। दिलचस्प ये है कि जिनके खिलाफ खुद बीजेपी ने हल्लाबोल किया उनमें ज्यादातर पार्टी में शामिल होकर राज्यसभा, लोकसभा और विधानसभाओं की शोभा बढ़ा रहे हैं। एक ताजातरीन बड़ा उदाहरण महाराष्ट्र में सीएम अशोक चव्हाण का है। जिन्हें ‘आदर्श सोसायटी घोटाले’ में नाम आने पर सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा। उन्हें बीजेपी ने राज्यसभा भेज दिया। भाजपा में भर्ती हुए दागियों की लंबी फेहरिस्त है।

मोदी सार्वजनिक रूप से 70 हजार करोड़ के कथित भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को ‘नेचुरली करप्ट पार्टी’ कहा। इसके चंद रोज बाद अजीत पवार अपनी पार्टी को दो भाड़ करके महाराष्ट्र की एनडीए सरकार में डिप्टी सीएम बन जाते हैं। इसके पहले एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में कथित रूप से बीजेपी की शह पर शिवसेना में बगाबत हुई। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी सरकार गिरी और शिंदे को सीएम बनाया गया। इस कड़ी में पलटी मार नीतीश कुमार का जिक्र जरूरी है।

मोदी ने बीजेपी को कांग्रेस युक्त कर दिया!

पिछले एक दशक के दौरान बीजेपी को मिली चुनावी सफलता के मद्देनजर उसका नारा ‘मोदी है तो मुमकिन है’ सही साबित हुआ! फिर भी भ्रष्टाचार के आरोपियों और दागियों की मैराथन भर्ती की जरूरत क्यों पड़ रही है? नरेंद्र मोदी ने ‘कांग्रेस मुक्त’ भारत का नारा दिया। लेकिन उनकी कथित सरपरस्ती में पार्टी कांग्रेस युक्त हो गई है।

पीएम Abki Baar 400 Paar, भाजपा ‘अबकी बार 370 पार’ का नारा तो लगा रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं है कि इन्हें खुद अपने दावों पर अंदरखाने पुख्ता यकीं ही नहीं! इसलिए ही सारी नैतिकता ताक पर रख दलबदल और केंद्रीय जांच एजेंसियों के कथित दुरुपयोग करके विपक्ष को नेस्तनाबूद करने की मुहिम जारी है। ताकि एकतरफा माहौल बनाकर लोकसभा चुनाव में जीत सुनिश्चित हो जाए।

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