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किसान आंदोलन से असहज मोदी सरकार! MSP की गारंटी देगी ?

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By Rahul Singh Shekhawat

किसान आंदोलन नरेंद्र मोदी सरकार को असहज करने का सबब बना है। पंजाब से निकला किसानों का काफिला हरियाणा सरकार के अवरोधों को तोड़ते हुए दिल्ली बॉर्डर पहुंच गया। वह केंद्र के 3 कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ हैं। किसान इन कथित काले कानूनों की वापसी  अथवा अपनी उपज के न्यूनतम समर्थन (MSP) मूल्य की लिखित गारंटी चाहते हैं। अन्नदाता के गुस्से को भांपते हुए आदतन अड़ियल रुख पर अड़ी भाजपा सरकार बातचीत के लिए तैयार हुई है। लेकिन किसान संगठनों ने गृहमंत्री अमित शाह के सशर्त बातचीत के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। लिहाजा सवाल ये उठता है कि क्या केंद्र सरकार MSP की गारंटी देने को तैयार होगी!

किसान आंदोलन से मोदी सरकार असहज !

पिछले दो महीनों से पंजाब में सड़कों पर डटे किसानों ने दिल्ली कूच किया। उनके काफिले को हरियाणा में रोकने के लिए मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने हर संभव प्रयास किए। इस कड़ी में आंसू गैस और पानी की बौछार छोड़ी गई। सरकार ने सड़के खोदने के अलावा कटीले तार लगवा दिए। इस कड़ी में कथित तौर पर भीड़ में ‘खालिस्तान’ समर्थकों की मौजूदगी को मीडिया में प्रचारित किया गया। सारे अवरोधकों को पार करते हुए किसानों का काफिला दिल्ली बॉर्डर पहुंच गया।
जिसका असर ये हुआ कि गृहमंत्री अमित शाह ने बातचीत का ऑफर दे दिया। लेकिन उनकी शर्त ये है कि किसान पहले दिल्ली बॉर्डर छोड़कर बुराड़ी ग्राउंड जाएं। लेकिन किसान संगठनों ने शाह के सशर्त बातचीत के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। उनके पहले कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 3 दिसंबर को वार्ता का प्रस्ताव दिया था।

ये है किसानों के गुस्से की वजह 

संसद में पारित हुए 3 कृषि सुधार विधेयक राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद कानून बन चुके हैं। जिनमें कृषि उपज व्यापार एवं सरलीकरण, कृषक कीमत आश्वासन एवं कृषि सेवा करार अधिनियम और आवश्यक वस्तु(संसोधन) एक्ट शामिल हैं। जिनके खिलाफ पहले तो संसद में विरोध हुआ। और अब किसान सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं।
पंजाब-हरियाणा के किसानों में भारी गुस्सा हैं। पश्चिम उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों के किसान भी शामिल हैं।जिसकी वजह न्यूनतम समर्थन मूल्य के खत्म होने और खेती पर कॉर्पोरेट की मनमानी की आशंका है।

केंद्र सरकार लिखित गारंटी देने से बच रही है !

हालांकि, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने MSP बरकरार रखने का मौखिक आश्वासन दिया है। लेकिन बावजूद इसके सरकार उसकी लिखित गारंटी देने को तैयार नहीं है। दरअसल, इसी वजह से किसानों के मन में न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म होने की आशंका बनी है।  मोदी सरकार और भाजपा संवाद करने की बजाय कांग्रेस पर किसानों को बरगलाने की तोहमत लगाती आ रही है। इन हालात में अविश्वास और आशंकाओं का गहरा होना लाजमी है।
जनाक्रोश भड़केगा तो झुकेगी मोदी सरकार !
वैसे केंद्र सरकार का रुख जिद्दी ही ज्यादा रहा है। ये बात और है जनाक्रोश के बाद वह जरूर डिफेंसिव नजर आई। कोरोनाकाल से पहले हुआ ‘शाहीनबाग आंदोलन’ इसका उदाहरण हैं। इस कड़ी में दूसरी बानगी किसानों के आक्रोश की है। जिनके काफिले का दिल्ली बॉर्डर पर डेरा डालते ही गृहमंत्री अमित शाह ने बातचीत का ऑफर देने में देरी नहीं लगाई। जबकि इसके पहले किसान आंदोलन को कमजोर करने की हरसंभव कोशिशें की गईं।
कहने की जरूरत नहीं कि खट्टर सरकार दिल्ली कूच को विफल करने के लिए पूरा जोर लगाया। उसने हरियाणा की इस तरह नाकाबंदी कर डाली मानो अपराधी आ रहे हैं। IT सेल के जरिए सोशल मीडिया पर अन्नदाताओं के आंदोलन को शाहीनबाग पार्ट-2 बताकर बदनाम किया गया। साथ ही, ये तक प्रचारित किया जा रहा है इस भीड़ में कितने किसान हैं। लेकिन किसानों के बुलंद हौसले के सामने भाजपा सरकार बॉर्डर खोलने पर मजबूर हो गई।
आंदोलन में राजनीति की दस्तक !
शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने कृषि सुधार बिल के विरोध में NDA से नाता तोड़ा। जबकि यह पार्टी तो इस सत्तारूढ़ गठबंधन की संस्थापक थी। दरअसल, लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से उसे भारी शिकस्त मिली। लिहाजा किसानों के आक्रोश में अकालियों ने पंजाब में सियासी जमीन बचाने के लिए BJP से अलग होना बेहतर समझा।
पंजाब-हरियाणा में आंदोलन की कमान किसान संगठनों के हाथों में है। कांग्रेस, अकाली दल और AAP पार्टी ने  संसद में कृषि बिलों के खिलाफ हंगामा किया। इस कड़ी में अब आंदोलन को समर्थन कर रही हैं। संसद में बिल पारित होने के बाद भारत बंद भी किया गया। जिसे उपरोक्त के अलावा समाजवादी पार्टी और लेफ्ट पार्टियों ने भी समर्थन दिया। अब BSP नेता मायावती ने भी ट्वीट करके कहा है कि किसानों के गुस्से के मद्देनजर केंद्र को कृषि कानूनों पर फिर से विचार करना चाहिए।
वैसे हर सामाजिक आंदोलन में राजनीति की थोड़ी बहुत अप्रत्यक्ष भूमिका रही है। आज मोदी सरकार और भाजपा किसान आंदोलन पर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर रही हैं। क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान पर्दे के पीछे  RSS और भाजपा की भूमिका नहीं रही ? सवाल ये उठता है कि क्या केंद्र सरकार आंदोलन किसानों को MSP की गारंटी देने के लिए तैयार होगी !

नए कृषि सुधार कानून फायदेमंद नही हैं !

बेशक नए कानूनों से किसानों को फायदा होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से उनकी आमदनी बढ़ने में मदद मिलेगी। लेकिन जमीनी पहलुओं पर भी गौर किया जाना जरूरी है। इस कड़ी में बहुसंख्यक छोटी जोत वाले किसानों के लिए सेफगार्ड होने जरूरी हैं।  MSP की गारंटी को उसी संदर्भ में देखने की जरूरत है।
मोदी सरकार सरकार का दावा है कि किसानों की बेहतरी के लिए कानून बने हैं। अगर किसान संगठनों से बातचीत करके संसद में सर्वानुमति के प्रयास किए होते तो उसकी नीयत सवाल खड़े नहीं होते।

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